काहिरा: मिस्र की एक अदालत ने लीबिया में इस्लामिक स्टेट (आईएस) से जुड़ने और काप्ट्स इसाई समुदाय के 21 लोगों के सिर काटने जैसे अपराध में शामिल सात लोगों को शनिवार (25 नवंबर) को मौत की सजा सुनाई. आधिकारिक समाचार एजेंसी मेना ने एक अभियोजक के हवाले से बताया कि मुलजिमों ने नए लोगों की भर्ती करने एवं परीक्षण देने और आतंकवादी गतिविधियों की योजना बनाने के लिए लीबिया की सीमा के करीब मार्सा माट्रोह प्रांत के उत्तरी तटीय शहर में एक गुट का गठन किया.
काहिरा फौजदारी अदालत ने इस फैसले पर गैर-बाध्यकारी इस्लामिक कानूनी राय के लिए देश के सर्वोच्च धार्मिक प्राधिकरण, ग्रैंड मुफ्ती को आतंकवादी समूह के सात सदस्यों की फाइलें भेजी हैं. अदालत में न्यायाधीश ने कहा कि आरोपी उग्रवादियों ने काहिरा, अलेक्जेंड्रिया, मरास माट्रोह और मिस्र के बाहर 2012 से अप्रैल 2016 तक आतंकवादी हमलों में हिस्सा लिया. समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, मिस्र के 21 कॉप्ट्स की हत्या में भी शामिल कुछ आतंकवादी 2015 के फरवरी तक लीबिया में काम कर रहे थे.
वहीं दूसरी ओर मिस्र के अशांत उत्तरी सिनाई क्षेत्र में एक मस्जिद पर हुए जानलेवा आतंकी हमले में मरने वालों की संख्या बढ़कर 305 हो गयी. मिस्र के सरकारी अभियोजक नबील सादिक ने एक बयान में कहा कि मृतकों में 27 बच्चे शामिल हैं. सादिक ने कहा कि हमले में 128 लोग घायल हो गए. यह देश में हुआ अब तक का सबसे घातक आतंकी हमला है. शुक्रवार (24 नवंबर) को जुमे की नमाज के दौरान भारी हथियारों से लैस आतंकियों ने अल-अरीश शहर की अल-रौदा मस्जिद में बमबारी और गोलीबारी की.
बयान के अनुसार हमले में 25 से 30 आतंकी शामिल थे और उन्होंने इस्लामिक स्टेट का झंडा लहराया. इसमें बताया गया कि आतंकियों ने हमले में पांच वाहनों का इस्तेमाल किया और नमाजियों के सात वाहनों में आग लगा दी. घायल लोगों के अनुसार कुछ आतंकी नकाबपोश थे और सब ने सेना जैसी वर्दी पहनी थी. स्थानीय लोगों का कहना है कि इस मस्जिद में सूफी विचार को मानने वाले लोग आते थे. इस्लामिक स्टेट सूफियों को काफिर मानता है.