डॉ.दीपक अग्रवाल
गंगा को पतित पावनी और मोक्षदायनी माना जाता है। गंगा मात्र एक नदी ही नहीं है बल्कि हिंदुओं की आस्था से जुड़ी है। यह भी अटल सत्य है कि चांद, सितारों, सूरज, प्रकृति, नदी आदि को किसी देश और धर्म की सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता है। इनका लाभ सभी को बराबर मिलता है।
अनेक धार्मिक अवधारणाओं में गंगा नदी को देवी के रूप में निरुपित किया गया है। कई तीर्थस्थल गंगा किनारे बसे हैं, जिनमें वाराणसी और हरिद्वार सबसे प्रमुख हैं। गंगा नदी भारत की सबसे पवित्र नदी है। यह मान्यता है कि गंगा में स्नान करने से मनुष्य के सारे पापों का नाश हो जाता है। मरने के बाद लोग गंगा में राख विसर्जित करना मोक्ष प्राप्ति के लिए आवश्यक समझते हैं, यहाँ तक कि कुछ लोग गंगा के किनारे ही प्राण विसर्जन या अंतिम संस्कार की इच्छा भी रखते हैं। इसके घाटों पर लोग पूजा अर्चना करते हैं और ध्यान लगाते हैं।
गंगाजल को पवित्र मानते हैं तथा सभी संस्कारों में उसका होना जरूरी है। पंचामृत में गंगाजल को अमृत मानते हैं। अनेक पर्वों और उत्सवों का गंगा से सीधा सम्बन्ध है। उदाहरण के लिए मकर संक्रांति, कुम्भ और गंगा दशहरा के समय गंगा में नहाना या केवल दर्शन ही कर लेना बहुत महत्त्वपूर्ण समझा जाता है। इसके तटों पर अनेक प्रसिद्ध मेलों का आयोजन किया जाता है और अनेक प्रसिद्ध मंदिर गंगा के तट पर ही बने हुए हैं।
गंगा नदी विश्व में अपनी शुद्धीकरण क्षमता के कारण जानी जाती है। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस नदी के जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं। नदी के जल में प्राणवायु (ऑक्सीजन) की मात्रा को बनाये रखने की असाधारण क्षमता है; किन्तु इसका कारण अभी तक अज्ञात है।
लेकिन औद्योगिक कचरे के साथ-साथ प्लास्टिक कचरे की बहुतायत ने गंगा जल को बेहद प्रदूषित किया है।
गंगाजल न स्नान के योग्य रहा, न पीने के योग्य रहा और न ही सिंचाई के योग्य। गंगा के पराभव का अर्थ होगा, हमारी समूची सभ्यता का अन्त। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गंगा नदी में प्रदूषण पर नियंत्रण करने और इसकी सफाई का अभियान चलाया है। उन्होंने जुलाई 2014 में भारत के आम बजट में नमामि गंगा नामक एक परियोजना आरम्भ की।