नई दिल्ली: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साल 2008 के गोरखपुर हेट स्पीच मामले की रिपोर्टिंग से मीडिया को रोक दिया है. इस मामले में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मुख्य आरोपी हैं. कोर्ट ने ये आदेश मीडिया में सुनवाई को लेकर आ रही गलत और भ्रामक खबरों को देखते हुए लिया है. कोर्ट ने आदेश दिया कि जब तक मामले में फैसला नहीं आ जाता तब तक मीडिया में सुनवाई से संबंधित किसी भी खबर को दिखाया व प्रकाशित नहीं किया जाए. बताया जा रहा है कि कोर्ट का ये आदेश सात नवंबर को जारी किया गया था.
इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित खबर के मुताबिक, सात नवंबर को इस संबंध में कोर्ट से आदेश पारित किया गया था. जिसमें दो जजों की हाईकोर्ट बैंच ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा इस बात की ओर ध्यान दिलाया गया है कि गोरखपुर मामले में मीडिया में कोर्ट के संदर्भों को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है, इसे देखते हुए कोर्ट मामले में मीडिया पर रोक लगाने को बाध्य हो गया है.
न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और अखिलेश चंद्र की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि, मामले में सुनवाई के दौरान अतिरिक्त अधिवक्ता जनरल को मनीष गोयल द्वारा जानकारी दी गई कि इस मामले की दिन-प्रतिदिन की कार्यवाही की गलत रिपोर्टिंग मीडिया द्वारा की जा रही है, जिसके कारण बहुत अधिक शर्मिंदगी पैदा हो रही है.
पीठ ने राज्य के वकील मनीष गोयल और ए के सांद के बीच मामले पर सुनवाई के दौरान हुई बहस के बाद ये फैसला सुनाया है. आदेश में बताया गया कि, इससे पहले भी इस संबंध में हमें अवगत करवाया गया था, तब कोर्ट की ओर से मौखिक रूप से किसी भी तरह की भ्रामक या गलत खबर नहीं दिखाए जाने संबंधी आदेश दिए थे. लेकिन मनीष गोयल के जरिए अखबरों में छपी मामले से संबंधित गलत खबरों को दिखाए जाने के बाद हम आदेश देने के लिए बाध्य हैं कि कोई भी गोरखपुर में नफरत फैलाने वाले भाषण के मामले में फैसला आने तक कोर्ट की किसी भी कार्यवाही को प्रकाशित नहीं करेगा.
इससे पहले सुनवाई में कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को समन जारी करते हुए उन्हें एक दशक पहले गोरखपुर में हुए सांप्रदायिक दंगों से जुड़े सभी दस्तावेज लाने का निर्देश दिया था. इन दंगों में तत्कालीन स्थानीय सांसद और मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को आरोपी के तौर पर नामजद किया गया था.यह आदेश उन दंगों के संबंध में गोरखपुर के कैंट पुलिस थाने में दर्ज कराई गई एफआईआर में शिकायतकर्ता परवेज परवाज और उस मामले में गवाह असद हयात द्वारा दाखिल एक याचिका पर पारित किया गया था.
इस याचिका में यह आशंका जताई गई है कि राज्य पुलिस की इकाई सीबीसीआईडी जो दंगों की वर्तमान में जांच कर रही है संभवत: निष्पक्ष जांच न करे इसलिए अदालत से यह जांच एक स्वतंत्र एजेन्सी को सौंपे जाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था. इससे पहले इन याचिकाकर्ताओं के वकील एसएफए नकवी ने एक उचित जांच कराने की सीबीसीआईडी की क्षमता पर संदेह जताया था.