डॉ. दीपक अग्रवाल/भोलानाथ मिश्र
मौजूदा परिवेश में बेटियां बेटों से अधिक काबिल साबित हो रहीं हैं। हर क्षेत्र में बेटियां परचम लहरा रही हैं। अर्थी को कंधा और अंतिम संस्कार तक बेटियां कर रहीं हैं। इसीलिए बेटियां का संरक्षण आज की जरूरत है।
मनुष्य जीवन मे पुत्र की कामना हर व्यक्ति की पहली व अंतिम इच्छा होती है और जिन्हें भगवान पुत्र नहीं देता है वह अपने को दुर्भाग्यशाली मानते हैं। लोग पुत्र प्राप्ति के लिए के अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देते हैं। मान्यता है कि पुत्र के बिना मनुष्य को मरने के बाद मोक्ष नही मिलता है और वहीं पिण्ड दान देकर भटकती आत्मा को शांति प्रदान करने वाला होता हैं। लेकिन यह मान्यता अब बदलने लगी है।
पुत्र के कुछ धर्म होते हैं और जो पुत्र अपने धर्म का पालन करता है वह भगवान राम तुल्य हो जाता है और जो नहीं पूरा करता है वह रावण तुल्य हो जाता है। पुत्र भी कई तरह के होते हैं और उनमें उस पुत्र को महान कहा जाता है जो पिता की आज्ञा को मानता है और पिता को परमेश्वर की तरह मानता है।
सुबह उठकर माता पिता का आशीर्वाद लेकर अपनी दिनचर्या की शुरुआत करने वाले पुत्र का कोई बाल बाँका नही कर सकता है क्योंकि पिता को परमात्मा का लघु और प्रत्यक्ष स्वरूप माना जाता है।
पिता को दुखी करके पुत्र कभी सुखी आनन्दित नहीं हो सकता है। पुत्र जब पथभ्रष्ट हो जाता है तो उसका पतन हो जाता है माता पिता का सम्मान करने वाला पुत्र भक्त श्रवणकुमार बनकर अमर हो जाता है और आने वाली पीढ़ी उसका गुणानुवाद करती हैं।
पुत्र माता पिता की कीर्ति को अमर करने वाला है और धूल में मिलाने वाला होता है। माता पिता के बताए मार्ग पर चलने वाले पुत्र को ही असली पुत्र माना जाता है। पुत्र माता पिता की जान होता है और जान लेने वाला भी होता है। पुत्रधर्म का निर्वहन करने वाले के जीवन में कोई तकलीफ नहीं होती है क्योंकि उसका रक्षक सीधे परमात्मा होता है। अब इस धर्म को बेटियां भी निभाने लगी है।