डॉ.दीपक अग्रवाल/भोलानाथ मिश्र
राजनीति भी क्या गजब का खेल है इसमें राजनेता सब कुछ करते हैं मौका देखकर वो पासा फेंकते हैं। उनका धर्म केवल चुनाव जीतना होता है। गुजरात चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों को आगामी लोकसभा चुनाव का भविष्य दिखाई पड़ रहा है।
गुजरात के चुनावों में मुख्य प्रतिद्वंद्वियों ने सारे चुनावी तीर फेंके और बाद में भगवान के दरबार में जीत की मन्नत मांगने पहुंच गये। इस देश के राजनेताओं की यह खास बात है कि वह वोट के लिए कुछ भी करने में संकोच नहीं करते हैं। गुजरात चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों आमने सामने के प्रतिद्वंद्वी हैं इसीलिए दोनों दलों ने इस चुनाव में साम दाम दंड भेद जैसे सारे हथकंडे अख्तियार किये।
यहीं कारण था कि विपरीत परिस्थितियों को अपने पक्ष में लाने के लिए अपने सारे महारथियों के साथ सारे दाँव फेंकने पड़े।
गुजरात चुनाव इन दोनों दलों के लिए प्रतिष्ठा का सवाल जैसा बन गया है क्योंकि गुजरात चुनाव के दौरान ही राहुल गांधी को कांग्रेस की कमान मिली है। गुजरात चुनाव राहुल गांधी और मोदी अमित शाह दोनों के लिए महत्वपूर्ण हैं और यह तय है कि गुजरात के जनादेश का प्रभाव पूरे देश के मतदाताओं पर पड़ेगा। यहीं कारण है कि तीनों पार्टी हाईकमानों ने वह सब कुछ कहा किया कराया जो चुनाव जीतने के लिए जरुरी था। एक दूसरे पर आरोप लगाये लांछन लगाये और भला बुरा कहा।
एक दूसरे के घरों में सेंधमारी की कोई सफल हो गया तो कोई फेल हो गया। गुजरात चुनाव में दोनों दलों ने शुरुआत और समापन मंदिर से किया। भाजपा ने राहुल गांधी को सोमनाथ मंदिर में गैरहिन्दू रजिस्टर पर हस्ताक्षर करने को लेकर चुनावी लाभ लेने का प्रयास किया गया तो राहुल ने गुजरात विकास और चुनावी लफ्फाजी पर घेरने का प्रयास किया। भाजपा व कांग्रेस के दोनों महारथियों ने चुनाव के अंतिम चरण में प्रचार का समापन भी मंदिर में दर्शन करके और चुनाव में इज्जत बचाने की मन्नत मांगने के साथ किया।
गुजरात चुनाव के अंतिम चरण के मतदान के साथ ही एक्जिट पोल मतगणना के पहले ही अपने पूर्वानुमान से एक बार फिर दोनों दलों की धड़कनें बढ़ाने में जुट गये हैं। मतगणना के बाद क्या होगा यह तो बाद कि बात है लेकिन पहले सामने आये पूर्वानुमान में भाजपा की आंधी बरकरार लगने लगी है। वैसे अब तक अधिकांश चुनावी पूर्वानुमानों का इतिहास कभी भी शत प्रतिशत सही नहीं साबित हुआ है। परिणाम तो भविष्य के गर्त में छिपा है।