डॉ. दीपक अग्रवाल/भोलानाथ मिश्र
दोस्ती या मित्रता करने और उसे निभाने की परम्परा कोई दो चार सौ साल से नहीं आदिकाल से चली आ रही है। मित्र का स्थान अपने घर परिवार के लोगों से भी बड़ा माना गया है। लेकिन आजकल दोस्ती के मायने ही बदलते जा रहें हैं और लोग इस पावन पवित्र रिश्ते को कंलकित करने लगें हैं। आज सच्चा मित्र मिलना बड़ा दुश्कर है। अब तो व्हाट्अप और फेसबुक पर ही मित्रता परवान चढ़ रही है।
इंटरनेट और संचार क्रांति के इस दौर में मित्र और मित्रता दोनों हाईटेक हो गए। फेसबुक मित्रों को जोड़ने का सशक्त माध्यम बनी है। आज मित्र अपने विभिन्न यादगार पलों को सभी से शेयर कर रहे हैं।
मित्रता सिर्फ सुख में नही बल्कि सुख और दुख दोनों समय में होती है। मित्र का स्थान माता पिता भाई बंधु से भी ऊंचा होता है। परिजन तो मुसीबत में साथ छोड़ सकते हैं लेकिन मित्र जरूरत पड़ने पर अपने प्राण तक न्यौछावर कर देता है। मित्रता भगवान राम हनुमान सुग्रीव और विभीषण ने और भगवान कृष्ण सुदामा अर्जुन ने निभाई।
भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता तो अजर अमर हो गयी है क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण ने साबित कर दिया कि मित्रता के आगे भगवान को साधारण इंसान बनना पड़ जाता है। इतना ही नहीं भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता बताती है कि मित्र को सुखी देखने के लिए सब कुछ मित्र पर न्यौछावर कर देना पड़ता है।
मित्रता में मित्र की मां बाप भाई बहन मामा मामी सब अपने सगे से भी बढ़कर हो जाते हैं। मित्रता में गरीब अमीर का कोई बंधन नही रह जाता है। इधर कलियुग में मित्रता का स्वरूप तेजी से बदल रहा है और मित्र ही मित्र का हत्यारा होने लगा है।
आजकल दोस्ती के मायने ही बदलते जा रहें हैं और लोग इस पावन पवित्र रिश्ते को कंलकित करने लगें हैं। समय के साथ साथ मित्रता का युग भी जैसे समापन की ओर बढ़ रहा है। लोग हर जन्म में अच्छे मित्रों का साथ होने की ईश्वर से कामना करते हैं क्योंकि मित्रता भी ईश्वर का एक स्वरूप होता है। इस समय ऐसा नहीं है कि यह धरा पर मित्रता करने और निभाने वाले नहीं हैं बल्कि अभी भी बहुत मित्र मौका पड़ने पर अपना सर्वस्व न्यौछावर करने में संकोच नहीं करते हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया के माध्यम दोस्तों को करीब ला रहे हैं। वरना आज की भागभाग की जिंदगी में समय ही कहां हैं।