डॉ.दीपक अग्रवाल/भोलानाथ मिश्र
मनुष्य जीवन में जीवनसाथी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जिसका बड़ा भाग्य होता है उसे सच्चा जीवन साथी मिलता है और जिसे यह अनमोल हीरा मिल जाता है। उसका मनुष्य जीवन सार्थक और धन्य हो जाता है।
जीवनसाथी जीवन में बहार ले आता है जीवनशैली में बदलाव लाकर जीवन को मदमस्त रंगीन बना देता है तो जीवन में पतझड़ भी ले आता है। जीवनसाथी के मिलन से तुलसी तुलसीदास बन गये और अत्रि मुनि ब्रह्मा विष्णु महेश के धर्मपिता बन गये गये। जीवनसाथी ने ही महा कंगाल दरिद्र ईश्वर प्रिय सुदामा जी को जबरदस्ती हठ करके द्वारिकापुरी पहुंचाकर भगवान का मेहमान बनवाकर दो लोको का स्वामी और सदाबहार रहने का सौभाग्य प्रदान कराया। जीवनसाथी के रूप में प्रायः लोगों धर्मपत्नी को मानते हैं किन्तु जीवनसाथी अर्द्धगिनी ही नही बल्कि जीवनसाथी कोई भी किसी भी रूप में हो सकता है।
कुछ लोगों को जीवन साथी के रूप में ऐसे लोग मिल जाते हैं जो फकीर से राजा बना देते हैं और एक सच्चे साथी की भूमिका अदा करते हैं। कुछ लोग संत महात्मा फकीर को गुरु के रूप में अपना जीवनसाथी बना लेते हैं जो आत्मा का परमात्मा से मिलन करा देता है।
कुछ लोग जीवनसाथी का चयन करने में धोखा जाते हैं और उसका दुष्परिणाम जीवन भर भुगतना पड़ता है।धर्मपत्नी के रूप में जीवनसाथी की भूमिका जीवन भविष्य, चरित्र, परिवार एवं व्यक्तित्व निर्माण में महत्वपूर्ण होती है। धर्मपत्नी रूपी जीवनसाथी मनुष्य की जीवनशैली को आनंदित व्यवहारिक संसारिक अध्यात्मिक धार्मिक प्रवृत्ति की बना देता है तो जीवन को कलह एवं नरकपूर्ण बना कर आत्महत्या तक करने पर विवश कर देता है।इसीलिए धर्मपत्नी रूपी जीवनसाथी कुल तारक और कुलनाशक दोनों कहा गया है।
जीवनसाथी को गृहस्थ जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिया भी माना गया है जो समानता एकरूपता के बल पर जीवन में लगातार गति प्रदान करते रहते हैं। दोनों एकरूपता के बल पर जिस तरह गाडी़ अपने गनतव्य तक पहुंच जाती है उसी तरह मनुष्य जीवन भी अपने अंतिम लक्ष्य पर पहुंच जाता है।