डॉ.दीपक अग्रवाल/भोलानाथ मिश्र
जिस उज्जवला गैस योजना का लाभ सरकार को पिछले विधानसभा चुनावों में मिला है लेकिन जबसे गैस सिलन्डरों के दाम बढ़ने लगे हैं तबसे लाभार्थियों का मोह इस योजना से भंग होने लगा है। गैस के मूल्यों होने वाली मासिक वृद्धि पर रोक लगाना स्वागत योग्य कदम है।
अधिकांश लाभार्थियों ने एजेंसी से एक बार ले जाने के बाद दूबारा गैस ही नही भराया है और दूबारा गैस एजेंसी का मुंह तक देखने नही गये हैं। जो हिम्मत करके दो चार बार गये भी थे वह भी अब घर बैठकर चूल्हें में खाना बनाने लगे हैं।
योजना को लागू करने के बाद एलपीजी गैस सिलेंडरों के दामों में हुयी भारी वृद्धि ने योजना को गरीबों से दूर करती जा रही है। गैस अनुदान बैंक खातों में नियमित नहीं जा पा रहा और इसमें भी खेल और घालमेल दोनों होने लगा है। सरकार को होश तो आता है लेकिन झटका अहसास होने के बाद होता है।
इधर सरकार ने किरोसिन के मूल्यों में हो रही लगातार वृद्धि और कटौती को फिलहाल रोक दिया है। साथ ही हर महीने गैस.सिलन्डर के दाम बढ़ाने की योजना को भी बंद कर दिया है। ऐसा निर्णय संभवतः राजनैतिक हानि लाभ को ध्यान में रखकर किया गया है। भविष्य को भाँपकर सरकार ने पिछले महीने ही हर महीने गैस मूल्यवृद्धि करने की योजना को वापस ले लिया है।
हर माह एलपीजी गैस के मूल्यों में वृद्धि करने का निर्णय जून सोलह में लिया गया था जिसे सत्तरह महीने बाद वापस लिया गया है। भ्रष्टाचार मिटाने के नाम पर गरीब को मिटाना उचित नहीं है क्योंकि उसी के बल इतना प्रबल बहुमत मिला है। कभी कभी जनता को सुख देने की योजना ही उसी जनता के लिए सिरदर्द बन जाती हैं और दुख पहुंचाने लगती है।
सरकार की बैंक के जरिये अनुदान देने की योजना जनता के लिए दुखदाई बनती जा रही है और अनुदान बैंक खातों में नही पहुंच पा रहा है। लोग जाते हैं और नकद पूरे दाम देकर बिना रसीद लिये ही गैस सिलन्डर उठा लाते हैं । पहले छूट काटकर एजेंसी पर पैसे लिये जाते थे और लेकिन अब पूरा मूल्य चुकाना पड़ता है।
पहले भी वितरक अपने लोगों के नाम गैस की किताब बनवाये थे आज भी बनवाये हुये हैं। सरकार हरामखोरों की हरामखोरी तो रोक नहीं पा रही है लेकिन हरामखोरों से बचाने के नाम पर जनता की दुश्मन जरूर बनती जा रही है जो उचित नहीं है।
सभी जानते हैं कि इस देश के अपराधी हर कानून बनने से पहले ही उसका काट ढूंढ लेते हैं। इसीलिए योजनाओं का खामियाजा अपराधियों को नही बल्कि जिसके हित में बनती हैं उन्हें भुगतना पड़ता है। भ्रष्टाचार मिटाने के नाम पर गाँव गरीब जनता को बहुत परेशान करना घातक सिद्ध हो सकता है।