डॉ.दीपक अग्रवाल
अमरोहा। जिलाधिकारी बिजनौर-अपने चैंबर में सामने खड़े व्यक्ति से पूछते हैं क्या करते हैं आप? सामने कुर्ता व पायजामा पहने खड़े करीब छह फुट लंबे और रोबिले व्यक्ति ने बड़ी शालीनता के साथ जवाब दिया श्रीमान जी मैं कलेक्टर बनाता हूं। डीएम चौक कर बोले क्या मतलब ? फिर जवाब मिला मैं बेसिक शिक्षा परिषद के प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक हूं।
यह घटना हाल ही की नहीं है बल्कि 37 साल पहले की है। जिसका मैं गवाह हूं। वह शिक्षक मेरे पूज्य पिताजी स्व. श्यामलाल अग्रवाल थे। जो दो साल पहले आज ही की तिथि में हमें छोड़कर ब्रहमलीन हो गए। उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए उक्त प्रकरण लिखने का मन बन गया। जो कि शिक्षकों की गरिमा को स्थापित करता है।
बात 1980 की है उन दिनों हम जिला बिजनौर में रहते थे मेरे पिताजी बिजनौर के पास के ही गांव आदमपुर के प्राथमिक विद्यालय में हेडमास्टर थे। जो कि 1991 में सेवानिवृत्त हो गए थे। वह एक मुकदमे के सिलसिले में जिलाधिकारी से मिलने गए थे और मैं उनके साथ था। डीएम उनके जवाब को सुनकर बहुत प्रभावित हुए और उन्हें सामने पड़ी कुर्सी पर बैठने का इशारा करते हुए बोले हकीकत में गुरुजन ही बालक को काबिल बनाते है। उसमें भी प्राथमिक स्कूलों के शिक्षकों का बड़ा योगदान होता है।
यह लघु कहानी लिखने के पीछे मेरी मंशा भी यही बताना है कि प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षक समाज की रीढ़ होते हैं। बच्चे इनका मन से सम्मान करते हैं।