डॉ. दीपक अग्रवाल की विशेष वार्ता
अमरोहा। एक बालक टेढ़ मेढ़े रास्तों पर खेतों से गुजरते हुए हर रोज चार किलोमीटर का सफर तय कर स्कूल पहुंचता। घर में आर्थिक तंगी और पिता की छोटी सी नौकरी, बरसात से बचने को छतरी नहीं, ठंड से बचने को पैर में जूते नहीं, खाने को भरपेट नहीं बस थी तो एक पढ़ने की लगन। कठिन संघर्ष के रास्तों से गुजरा यही बालक आज एडीएम बनकर बड़ी शालीनता और निष्ठा के साथ अपने कर्तव्य और जिम्मेदारियां का निवर्हन कर रहा। हम बात कर रहे हैं जिले के अपर जिलाधिकारी श्री महमूद आलम अंसारी की। जिनके लिए बचपन में गेहूं की रोटी सपना थी और किसी मेहमान के आने पर ही घर में चावल बनते थे।
सन शाईन न्यूज के एडिटर डॉ.दीपक अग्रवाल ने एडीएम आवास पर अपर जिलाधिकारी श्री महमूद आलम अंसारी से उनके संघर्ष, परिवार, मौजूदा परिवेश, समाज में हो रहे बदलाव, शिक्षा की स्थिति, बच्चों के बदलते नजरिए और सोशल मीडिया के प्रभाव आदि बिंदुओं पर विस्तार से वार्ता की। आपका मानना है कि अधिक आत्मविश्वास सफलता में बाधक हो सकता है। दृढ़ इच्छा शक्ति से मंजिल अवश्य मिलती है। वार्ता के दौरान वह पुरानी यादों में खो गए और कई बार भावुक भी दिखे। पेश है वर्ता के प्रमुख अंशः
गाजीपुर के गांव महापुर में हुआ जन्म
एडीएम श्री महमूद आलम अंसारी का जन्म 25 जुलाई 1960 को ग्राम महापुर तहसील बथाना सैदपुर जिला गाजीपुर में हुआ। आपके पिता श्री अली मोहम्मद रेलवे में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे और मां श्रीमती बशीरन ग्रहणी थे। दो बड़े भाई अकबाल अहमद और फैयाज अहमद हैं।
आर्थिक तंगी में गुजरा बचपन
श्री अंसारी ने बताया कि पिता की छोटी नौकरी के कारण परिवार को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता था। पिता के चार भाई थे और सभी संयुक्त परिवार में रहते थे। उन्हांने बताया कि बचपन में गेहूं की रोटी उनके लिए सपना थी। कक्षा आठ के बाद गेहूं की रोटी खाने को नसीब हुई। किसी मेहमान के आने पर ही चावल बनते थे।
परिषदीय स्कूल में हासिल की कक्षा 8 तक की शिक्षा
कक्षा 8 तक की पढ़ाई गांव के ही बेसिक शिक्षा परिषद के प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूल से हासिल की। उन्हांने बताया कि गुरुजन बड़े ही मनोयोग और निष्ठा के साथ पढ़ाते थे।
हर रोज 4 किलोमीटर का पैदल सफर
उन्हांने बताया कि कक्षा 9 में उनका एडमिशन उनके गांव से चार किलोमीटर दूर गांव सियावां के आदर्श इंटर कालेज में कराया गया। वह हर रोज टेढ़े-मेढ़े रास्तों से खेतों के बीच से गुजरते हुए कालेज पहुंचते थे। उनके पास छतरी नहीं थी बारिश में बड़ी मुश्किल से भीगते-भागते कालेज पहुंचते थे। सर्दी में पैरों में जूते भी नहीं होते थे।
प्रतिभा को देख गुरुजनों ने सहयोग किया
श्री अंसारी ने बताया कि पढ़ाई में उनकी लगन और व्यवहार को देखकर गुरुजनों श्री रामउग्रह सिंह और श्री उमाशंकर श्रीवास्तव ने प्रोत्साहित किया और आधी फीस भी माफ कराई। परिवार में आर्थिक तंगी होने के कारण फीस जमा करने में कई बार दिक्कत हो जाती थी। संस्कृत विषय उनका प्रिय रहा।
स्कूल के बाद हेडमास्टर निशुल्क पढ़ाते
उन्हांने बताया कि उनके गांव के उच्च प्राथमिक विद्यालय के हेडमास्टर श्री सरजू प्रसाद पांडेय जी का घर स्कूल से 10 किलोमीटर दूर था वह साइकिल से आते थे। गर्मी के दिनों में वह लू से बचने के लिए शाम तक स्कूल में ही ठहरते थे और शाम को चार बजे से हिंदी व गणित कक्षा से अतिरिक्त पढ़ाते थे। किसी से कोई शुल्क नहीं लेते थे।
उच्च शिक्षा को इलाहाबाद विश्वविद्यालय
1975 में हाईस्कूल और 1977 में इंटर की परीक्षा में प्रथम श्रेणी से पास करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। यहां से 1979 में बीए, 1981 में एमए दर्शनशास्त्र और 1984 में एलएलबी की पढ़ाई की।
दर्शनशास्त्री प्रोफेसर डॉ. संगम लाल पांडेय से प्रभावित
श्री अंसारी ने बताया कि वह जब एमए दर्शनशास्त्र के छात्र थे तो ईद के अवकाश पर अपने गांव गए और वहां से विश्वविद्यालय एक दिन लेट पहुंचे जिस वजह से दर्शनशास्त्री प्रोफेसर डॉ. संगम लाल पांडेय जी की एक क्लास मिस हो गई। अगले दिन जब क्लास में पहुंचे तो सर ने नाम नहीं पुकारा कहने पर कोई जवाब नहीं दिया। एमए के बाद एक दिन पांडेय जी ने कहा कि अंसारी बाहर जाने का ख्याल छोड़ दो। उन्हांने संकेत दिया कि छोटी नौकरी के चक्कर में मत पड़ना। तब उन्हांने कहा कि एक दिन क्या अनुपस्थित हुए फिर अनुपस्थित ही नहीं हुए। श्री अंसारी ने बताया कि पांडेय सर की सीख और नियमितता ही उनकी तरक्की में सहायक बने।
1985 में पीसीएस में चयन
श्री अंसारी ने बताया कि 1982 से वह प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुट गए। परिवार की हालत को देखते हुए लक्ष्य कोई भी नौकरी प्राप्त करना था। 1985 में पीसीएस के माध्यम से जेल अधीक्षक के पद पर चयन हो गया था लेकिन नियुक्ति नहीं मिल पाई। पीपीएस में अनफिट अभ्यर्थियां को जेल अधीक्षक का पद दिया गया और उन्हें सीओ का पद दिया गया। जिसके लिए वह मानसिक रूप से तैयार नहीं थे लिहाजा पद छोड़ दिया और हक के लिए कोर्ट भी गए लेकिन पैरवी नहीं कर पाए। 1986 में लखनऊ सचिवालय में प्रवर वर्ग सहायक के रूप में ज्वाइन किया।
1989 को नायब तहसीलदार पद पर नियुक्ति
उन्हांने बताया कि 1983 की पीसीएस लोवर सर्बोडिनेट की परीक्षा में सफलता मिली लेकिन परिणाम 1989 में घोषित हुआ। 4 जुलाई 1989 को लखीमपुर खीरी जिले की मोहम्दी तहसील में नायब तहसीलदार के पद पर ज्वाइन किया।
1994 में तहसीलदार के पद पर पदोन्नति
श्री अंसारी ने बताया कि 1994 में उन्हें तहसीदार के पद पर पदोन्नति मिली। फतेहपुर जिले की बिंदकी तहसील में उन्हें नियुक्ति मिली। वह बलिया की बैरिया रोड और रसड़ा तहसील में भीं रहे।
2001 में एसडीएम पद पर प्रमोशन
उन्हांने बताया कि वर्ष 2001 में उन्हें एसडीएम पद पर प्रमोशन मिला। जनपद उन्नाव की पूर्वा तहसील में एसडीएम पद पर उनकी पहली पोस्टिंग हुई। वह इसी जिले की शफीपुर, हसनगंज, मैनपुरी, रायबरेली, महाराजगंज, सलोन, बलिया, हरदोई, बदायूं, एटा में एसडीएम रहे।
श्री अंसारी ने बताया कि उन्हें 7 अप्रैल 2015 को जनपद अमरोहा में एडीएम वित्त एवं राजस्व पद पर तैनाती दी गई। इससे पहले उन्हें 2104 में फरूखाबाद में सिटी मजिस्ट्रेट और जनवरी 2015 में राज्य संपत्ति निदेशालय में संयुक्त निदेशक के पद पर तैनाती दी गई।
सभी की समस्याओं का समाधान कराने का प्रयास
श्री अंसारी ने बताया कि वह ग्रामीण ग्रामीण पृष्ठभूमि से होने के कारण ग्रामीणों की समस्याओं को बेहतर ढंग से समझते हैं और उनका समाधान कराते हैं। जरूरतमंदों की मदद और उनकी समस्याओं का समाधान उनकी कार्यशैली में शामिल है।