प्रदीप गर्ग हरिद्वार से ( सन शाइन न्यूज )
आखिर नापाक इरादे वाले पाकिस्तान से आप उम्मीद ही क्या कर सकते हैं! पाकिस्तान एक खोखली बुनियाद पर खड़ा है।
मानवता और नैतिकता का चोला पहनकर आतंक की खेती करने वाले पाकिस्तान की खोखली जम्हूरियत का खेल क्या रहा है, इतिहास के पन्नों में झांककर जरा ये जान लीजिये……
11 सितंबर 1948 के दिन, पाकिस्तान के जनक जिन्ना गम्भीर हालात में कराची लाये गए। उनके साथ अंतिम समय में उनका एक सैन्य सहायक और बहन फातिमा थी। असहनीय गर्मी में एक खराब एम्बुलेंस में जिन्ना अपनी मौत करीब देख रहे थे। पाक के प्रधानमंत्री लियाकत अली ने कभी उनका हाल तक जानने की जरूरत नही समझी। इन्ही लियाकत अली की बाद में हत्या कर दी गई।
राष्ट्रपति रहे गुलाम मोहम्मद ने जिन्ना के करीबी रहे इस्कंदर मिर्जा को रक्षा मंत्री बनाया और इन्ही मिर्जा ने सेना के सहयोग से गुलाम मोहम्मद को इस्तीफा देने को मजबूर कर दिया। ये वही गुलाम मोहम्मद थे जिन्होंने पाकिस्तान की राजनीति में सेनाधिकारियों के दखल की जमीन तैयार करवाई। खुद वे इसी का शिकार हुए।
1955 से 58 तक राष्ट्रपति रहे इस्कंदर मिर्जा का बुरा हाल हुआ। उन्होंने 27 अक्टूबर 1958 को नई सरकार की घोषणा की और अपने चेहते जनरल अयूब खान को प्रधानमंत्री बनाया। अयूब खान ने उसी रात को दस बजे सोते हुए इस्कंदर मिर्जा को तख्ता पलट करते हुए बंदूक की नोक पर राष्ट्रपति भवन से बाहर ले जाकर देश निकाला दे दिया। उनकी सारी संपत्ति छीनकर पाक सेना के अधिकारियों में बांट दी गयी। वे 1969 में लंदन में भुखमरी की हालत में मृत्यु को प्राप्त हुए। उन्हें पाकिस्तान वापस नहीं आने आने दिया गया। ईरान के शाह ने तेहरान में उनका अंतिम संस्कार किया, लेकिन पाकिस्तान सरकार ने उन्हें श्रद्धांजलि तक नही दी। और तो और उनके परिजनों को भी जाने की इजाजत नही दी।
पहले दिन दोपहर में प्रधानमंत्री बने अयूब खान रात में पाकिस्तान के राष्ट्रपति हो गए। 1965 के युद्ध मे जुल्फिकार अली भुट्टो की सलाह पर अयूब खान ने भारत के खिलाफ जंग छेड़ दी। जिसमें उसे हार मिली। उनकी छवि धूमिल कर भुट्टो ने तब के कमांडर इन चीफ याह्या खान के साथ मिलकर उन्हें राष्ट्रपति पद से बेदखल कर दिया। उनसे जबरिया राष्ट्रपति भवन खाली करवाया गया। उन्हें आधिकारिक विदाई तक नहीं दी गई। ये वही अयूब खान थे जिन्हें भुट्टो इतिहास पुरुष बताते थे। तानाशाही प्रवत्ति के अयूब खान ने अपनी पूरी जिंदगी सत्ता के डर के साये में तन्हा इस्लामाबाद में गुजारी।
राष्ट्रपति अब याह्यखान थे। जो जुल्फिकार अली भुट्टोे के सहयोग से इस पद पर पहुंचे थे। उन्हीं के शासन में 25 मार्च 1971 को एक होटल में भुट्टो को मारने की साजिश रची गयी, बाद में जिसका इल्जाम राजनेता मुजीब पर लगना तय था। लेकिन तब वे बच गए।
बाद में भुट्टो ने जनरल जिया उल हक के साथ मिलकर राष्ट्रपति पद कब्जा लिया। याह्यखान कैद कर लिए गए। भुट्टो ने जिया उल हक का इस्तेमाल अपने फायदे और विरोधियों को ठिकाने लगाने के लिए किया। जिया उल हक भुट्टो को सर कहते थे। इन्ही जनरल जिया उल हक ने जून 1977 में भुट्टो सरकार का तख्तापलट कर दिया। पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के जनक भुट्टो को कोट लखपत जेल भेज दिया गया। उन्हें उस हत्याकांड में जबरन फांसी दिलवा दी, जिसमे उनका दोष सिद्ध नहीं किया जा सका था, और 1975 में इस केस को लाहौर हाइकोर्ट ने बंद कर दिया था। जिया उल हक ने अपने पूर्व राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री रहे भुट्टो को दर्दनाक मौत दी।
11 साल राज करने के बाद जिया उल हक भी 1988 में एक विमान दुर्घटना में मारे गए। बाद में जनरल मुशर्रफ ने भी अपने पूर्ववर्तियों की भांति तख्तापलट कर पाकिस्तान की सत्ता हथियाई।
बेनजीर भुट्टो को भारी सभा मे गोली मार दी गयी। दबी जबान पाकिस्तानी लोग इस घटना के लिए मुशर्रफ पर इशारा करते हैं।
सनक की हद तक जाने वाले पाकिस्तानी हुक्मरानों का ये इतिहास बताता है कि पाकिस्तान एक खोखली बुनियाद पर खड़ा है। जिसमें न तो मानवतावादी दृष्टिकोण है और न ही अपनों के प्रति किसी कृतज्ञता का भाव ही रहा। पाकिस्तान आतंक का अड्डा है जहां न संस्कृति बची है, ना ही कोई नैतिक मूल्य। नफरत की बुनियाद पर टिका ये देश कबायली हैवानियत का अड्डा बनकर रह गया, जहां सिर्फ हथियार और आतंक है। जो जन्नत का दिवास्वप्न दिखाकर अपनी व पड़ोसी मुल्कों की युवा पीढ़ी को बर्बादी की ओर धकेलकर धरती के स्वर्ग को नरक बनाने पर तुला है। हैरत है कि गधे और पुरानी कारें बेचकर देश चलाने वाले पाकिस्तानी हुक्मरान क्यों इतिहास से सबक नहीं लेते। शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन, विज्ञान, कला और जनसुविधाओं को भूल नापाक पाक आतंक और जेहाद में खुद को गर्क कर चुका है। उसे हिंदुस्तान से ही सीख लेना था जहां सबका साथ सबका विकास लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत बनाये हुए है। और जहाँ पक्ष विपक्ष को एक तरफ रखकर अपने पूर्वजों का सम्मान आशीर्वाद से देश विकास की नई इबारत ही नहीं लिख रहा बल्कि किसी भी हालात का सामना डटकर करने के लिए हमेशा तैयार है।