डाॅ. दीपक अग्रवाल
अमरोहा। ( सन शाइन न्यूज)
भाई और बहन के अटूट प्रेम का त्योहार भैया दूज उत्साह और उमंग के साथ मनाया गया। बहनों ने भाई की टीका किया और भाई ने बहन को उपहार दिए। मुझे भी आज बुआ के घर की मिठाई का स्वाद याद आ गया। अब वैसी मिठाई कहीं नहीं मिलती हैं। बड़े-बड़े ब्रांड की मिठाई में भी वो स्वाद नहीं है।
40 से 45 साल पुरानी यादें
आज न हमारे पिताजी हैं और न बुआ हैं बस उनकी यादे ही रह गई हैं। तकरीबन 40 से 45 साल पहले यानि 1975 से 1980 तक मैं पहले हल्दौर और बाद में बिजनौर से पिताजी के साथ साइकिल पर बैठकर बुआ के घर गंज जाता था। गंज जिला बिजनौर के मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर स्थित है।
पिताजी प्राथमिक विद्यालय में गरीब हेडमास्टर थे
पिताजी प्राथमिक विद्यालय में हेडमास्टर थे और मामूली वेतन होने के कारण हमेशा पैसों तंगी रहती थी। हमारी माता जी आटे और चीनी की पंचरी बनाकर बुआ के लिए देती थी जो बुआजी के घर सब पसंद करते थे। हालांकि हमारी बुआ संपन्न परिवार में थी। उस समय उनके घर पर बायोगैस का प्लांट था। उस समय बायोगैस प्लांट और एलपीजी का होना संपन्नता का सूचक था।
बुआजी की मिठाई और खीर लाजवाब
बुआजी के बाग में गाय और भैंसे भी पलती थी और वह स्वयं मावा बनाकर मिठाई तैयार करती थीं। मावे के लड्डू, लौकी की लौज, तिल के लड्डू और गाजर का हलवा वह अकसर बनाती थीं। दूध की खीर भी लाजवाब होती थी। बुआ की मिठाई का स्वाद अब कहीं नहीं मिलता है।
ब्रांडेड मिठाइयां भी स्वादहीन
इन दिनांे मेरे घर पर हल्दीराम को सोहनपाड़ी, लड्डू, दिल्ली के साउथ एक्सटेंशन स्थित बंगाली स्वीट की काजू कतली, डोडा बरफी, रसगुल्ले, चंदौसी की फेमस मंगलसेन की गजक, सुगंध की मिठाई, नंदन की मिठाई आदि ब्रांडेड मिठाइयां रखी हैं लेकिन इनमें से किसी मंे भी बुआ के हाथ से बनी मिठाई का स्वाद और प्यार नजर नहीं आता है।