डाॅ. दीपक अग्रवाल
अमरोहा। ( सन शाइन न्यूज)
हिंदी पत्रकारिता के भीष्म पितामह कह जाने वाले बाबूराव विष्णु पराड़कर जी मानते थे कि- चाहे लाख आंधी आए या तूफान। चाहे कोई संगा संबंधी बीमार पड़े या मरे। हमें तो समय पर समाचार पत्र निकालना ही होगा। इन पंक्तियों को बिजनौर से प्रकाशित होने वाले प्रमुख सांध्य दैनिक चिंगारी के संपादक श्री सूर्यमणि रघुवंशी चरितार्थ कर रहे हैं। सड़क दुर्घटना में वह गंभीर रूप से घायल हो गए और रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर हो गया। लेकिन होनी को स्वीकार कर उन्होंने अस्पताल में भर्ती होने के दो दिन बाद से ही संपादकीय लिखना शुरू कर दिया और चिंगारी का संपादन भी लेटे लेटे ही कर रहे हैं।
26 अक्टूबर को हुआ रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर
26 अक्टूबर यानि दीपावली से एक दिन पहले वह अपने बेटे शुभ के साथ बिजनौर के एसडीएस सदर ब्रजेश कुमार के आवास पर उनसे मिलने जा रहे थे और डाक बंगले के सामने हुए हादसे मंे उनकी रीढ़ की हड्डी मंे हेयर लाइन फैक्चर हो गया। एसडीएम सदर ब्रजेश कुमार ने उन्हें बिजनौर के पुलकित मैमोरियल हाॅस्पिटल मंे भर्ती कराया। यहां वह 9 दिन रहे और उसके बाद अपने आवास पर आ गए। उन्होंने बताया कि दो दिन बाद से हीे लेटकर चिंगारी का संपादन शुरू कर दिया था। साथ ही संपादकीय भी लगातार लिख रहे हैं।
हर अखबार का अपना अपना पाठक
उनकी इस करनी से मुझे पूज्य स्वर्गीय बाबू सिंह चैहान जी की वह बात याद आ गई जो उन्होंने 30 साल पहले मेरी एक खबर पढ़ने के बाद कही थी। उन्होंने कहा था कि हर अखबार का अपना अपना पाठक होता है। अच्छी खबर लिखने के लिए जिस अखबार के लिए खबर लिख रहे हो उसके पाठकों के टेस्ट का ध्यान रखना चाहिए। मैंने पत्रकारिता की तमाम किताबे पढ़ी और पढ़ा भी रहा हूं। लेकिन पत्रकारिता का यह व्यवहारिक गूढ़ रहस्य कहीं पढ़ने को नहीं मिला है।
शोध का हिस्सा बनते चिंगारी के संपादकीय
सूर्यमणि जी अपने पाठकों के टेस्ट से भलीभांति परिचित हैं इसीलिए संपादन की जो कला उनके पास है उस काम को दूसरा कोई व्यक्ति नहीं कर सकता है। पाठकों की खातिर ही वह लेटे लेटे ही अपनी पीड़ा को भूलकर नियमित लेखन और संपादन में जुटे हैं। इसमें कोई अतिशायोक्ति नहीं कि चिंगारी के संपादकीय और लेख विभिन्न शोधों का हिस्सा बनते हैं।
परेशान होने की जरूरत नहीं
उनके साथ हुए हादसे की जानकारी मुझे देर से मिली। जानकारी मिलने पर 10 दिन पहले मैंने उनसे बात की उस समय मैं लखनऊ में था। मैंने उनसे कहा कि आप से मिलने आता हूं। बोले अगर बिजनौर कोई काम हो तो आना वरना परेशान होने की जरूरत नहीं है। उनके चरित्र की इस विशेषता ने ही हमें उनका कायल बनाया है। मेरा मन उनसे मिलने के लिए लगातार प्रेरित करता रहा। 8 दिसंबर को अमरोहा पहुंचने पर 9 दिसंबर को बिजनौर उनसे मिलने गया।
मैंने करीब 30 साल पहले आदरणीय सूर्यमणि जी के सानिध्य मंे ही पत्रकारिता के गुर सीखे थे। मुझे आज भी याद है जब पहली बार मैंने हत्या की एक खबर में लिखा था चाकू मारकर हत्या। तब उन्होंने मुझे बताया था कि चाकू घोपकर हत्या लिखो।
उन्होंने बताया कि जिस दिन से एक्सीडेंट हुआ उसी दिन से अस्पताल मंे मिलने वालों का तांता लग गया दो बार व्यस्वथा बनाने के लिए पुलिस का सहारा लेना पड़ा। तमाम जनप्रतिनिधियांे, मंत्रियांे, अधिकारियांे, सामाजिक कार्यकर्ताओ,ं बुद्धिजीवियांे ने उनसे मुलाकात की। सरल व्यक्तित्व के धनी सूर्यमणि जी सभी के सहयोग के लिए तत्पर रहते हैं यही वजह है कि उनसे मिलने वालों की भीड़ लगी है।
आनंद भाई से मुलाकात न हो पाने की पीड़ा
सूर्यमणि जी ने बिजनौर मंे अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन की अगुवाई करने वाले महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आनंद प्रकाश गुप्ता उर्फ आनंद भाई 94 वर्ष से मुलाकात न होने पाने की पीड़ा व्यक्त की। उन्होंने बताया कि गुप्ता जी 26 अक्टूबर से अब तक तीन बार रिक्शा में बैठकर उनसे मिलने आ चुके हैं और घर के बाहर खड़े होकर ही आवाज लगाते हैं उनकी मजबूरी है कि वह चल कर अंदर नहीं आ सकते हैं। सूर्यमणि जी ने बताया कि वह बहार नहीं जा सकते हैं। इसीलिए गुप्ता जी बाहर से हालचाल जानकर लौट जाते हैं।
स्वभाव में नहीं झलकता दर्द
9 दिसंबर को मैं दोपहर एक बजे श्री सूर्यमणि जी से मिलने पहुंचा लेकिन उनके स्वभाव में मुझे कोई फर्क नजर नहीं आया। उनके पलंग के सामने दो सज्जन और बैठे थे। जिस उत्साह और उमंग के साथ वह पहले मिलते थे वैसे ही अब मिले। उनके स्वाभाव में किसी भी प्रकार का दर्द नहीं झलक रहा था। करीब दो घंटे मेरी उनसे बात हुई। उनकी इस जीवटता को सैल्यूट।
मेहमाननवाजी भी नहीं भूल रहे
श्री सूर्यमणि जी अपनी पीड़ा के इन दिनों में भी मेहमाननवाजी नहीं भूल रहे हैं। पहले उन्होंने पानी पिलवाया और फिर चाय मंगाई। नौकर के किसी काम से घर से बाहर जाने के कारण उनकी पत्नी डाॅ. शशिप्रभा जी जो कि वर्द्धमान पीजी कालेज बिजनौर मंे हिंदी विभाग की अध्यक्ष और एसो.प्रोफेसर हैं चाय लेकर आईं। उसके बाद उन्होंने मुझसे खाने के लिए भी पूछा। मैंने बताया कि मैं खाना खाकर ही आया हूं। इस तरह का व्यवहार आम आदमी तो नहीं कर सकता हैं। अपनी पीड़ा को भूलकर दूसरो का ख्याल, इस तरह का व्यवहार फरिश्ते ही करते हैं। उनके व्यवहार को बयां करने के लिए मुझे शब्दों की कमी महसूस हो रही है।
ईश्वर से प्रार्थना है कि वह शीघ्र स्वस्थ हों और समाज को दिशा प्रदान करते रहें।