डाॅं. दीपक अग्रवाल
अमरोहा। (सन शाइन न्यूज)
एक समय वह भी था जब लोगांे को घर से बुलाकर और उनसे अनुरोध कर बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में शिक्षक बनाया जाता था। जी हां यह 100 फीसदी सच है। मेरे पिताजी स्व. श्यामलाल अग्रवाल जी के साथ भी ऐसा ही हुआ था। उनकी पुण्य तिथि पर अनायास उनकी बाते स्मृति पटल पर उभर आई।
आज जब शिक्षक बनने के लिए मारा मारी मची है बीएड के बाद बीटीसी फिर टीईटी और उसके बाद भर्ती परीक्षा। तब जाकर बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में नौकरी मिल रही है।
1944 में मिडिल पास किया
एक जमाना पिताजी का था। जो जिला बिजनौर के कस्बा झालू में रहते थे। पिताजी ने 1944 में कक्षा 8 की परीक्षा पास की थी और उनके (जिला बिजनौर ) कस्बे में परीक्षा पास करने पर उनका बड़ा सम्मान किया गया था। उस समय कक्षा आठ पास को मिडिल पास कहा जाता था और बड़ा सम्मान होता था। देश की आजादी के बाद उनके पास कई विभागांे से नौकरी के आॅफर आए लेकिन उन्होंने नौकरी नहीं की। दादा जी जमीदार थे और वह नौकरी को गुलामी मानते थे। इसीलिए उन्होंने पिताजी को नौकरी नहीं करने दी।
डिप्टी साहब ने जबरन शिक्षक बनाया
पिताजी ने बताया कि 1950 में डिप्टी साहब घर पर आए और उन्होंने स्कूल में शिक्षक की नौकरी के लिए अनुरोध किया। मना करने पर भी जबरन खारी के स्कूल मंे नियुक्त कर गए। उस समय बिना बीटीसी के भी शिक्षकों को नियुक्त किया जाता था और उन्हें आशावान शिक्षक कहा जाता था। उसके बाद पिताजी ने नार्मल (आज की बीटीसी) की परीक्षा पास की। उस समय शिक्षकों की योग्यता कक्षा 8 और नार्मल यानि बीटीसी होती थी।
36 वर्ष 8 माह और 19 दिन नौकरी की
उसके बाद 11 जनवरी 1954 को उन्हें स्थायी नियुक्ति मिली। 30 जून 1991 को वह प्राथमिक विद्यालय आदमपुर विकास क्षेत्र मोहम्मदपुर देवमल से हेडमास्टर के पद से सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने शिक्षक के रूप में 36 वर्ष 8 माह और 19 दिन नौकरी की।
2016 की पूर्णिमा को हमारे बीच से विदा
वर्ष 2016 की पूर्णिमा को वह हमारे बीच से विदा हो गए। उनकी पुण्य तिथि पर उनकी बाते याद आ गईं। जिन्हें साझा किया जा रहा है। ईश्वर से उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना।