डाॅं. दीपक अग्रवाल
अमरोहा। (सन शाइन न्यूज)
इन दिनांे जिला अमरोहा में प्राथमिक शिक्षक संघ के चुनाव की सरगरमी चरम पर हैं। एक मार्च को मतदान हैं लिहाजा हर कोई अधिक से अधिक टीचरों को अपने खेमे में करने का प्रयास कर रहा है। यहां तक तो सब ठीक लेकिन गुरुजनों को रंजिश नहीं रखनी है।
समाज निर्माण मंे प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षकों का अतुलनीय योगदान है। मेरा तो यह मानना है कि प्राथमिक शिक्षकों का महत्व अन्य शिक्षकों की तुलना मंे अधिक हैं। वही बच्चे की नींव के टीचर होते हैं।
हम लोकतांत्रिक देश मंे रहते हैं इसीलिए चुनाव से बच नहीं सकते हैं। आम सहमति न बनने के कारण प्राथमिक शिक्षक संघ में चुनाव की नौबत आ गई हैं। सोशल मीडिया पर हर प्रत्याशी अधिक से अधिक टीचरों को अपने खेम में करने मंे जुटा है।
मीटिंगांे का दौर भी चल रहा है। मिल बैठकर दावते भी हो रही हैं। कुछ टीचर जातिवाद का आंकड़ा भी लेकर चल रहे हैं। ऐसी स्थिति कई बार विस्फोटक भी बन जाती है। टीचरों को इस चुनाव को जनप्रतिनिधियों के चुनाव के चश्मे से नहीं देखना चाहिए। आपस में दीवारांे को नहीं खींचना हैं। शिक्षक नेता आम नेता नहीं है।
शिक्षकों का मूल पेशा शिक्षण हैं चुनाव जीतने के बाद भी शिक्षक नेता शिक्षक रहेगा और उसका मूल पेशा भी शिक्षण होगा। इसके साथ साथ वह शिक्षकों की समस्याओं को भी उठाएंेगे।
इसीलिए शिक्षकों को गुटबाजी से बचते हुए सौहार्द के माहौल मंे चुनाव मंे शिरकत करनी चाहिए। जो जीते उसका सभी को स्वागत करना चाहिए। हारने वाले प्रत्याशी को हार का मलाल नहीं होना चाहिए बल्कि उसे चुनाव को खेल समझ कर भूल जाना चाहिए।
चुनाव के बाद गुटबाजी को खत्म कर सभी को एक होकर शिक्षक और शिक्षा के हित में काम करना चाहिए।