Friday, November 22, 2024
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कोरोना जागरूकताः अनिल, श्योनाथ, रेखा, अरविंद और जगदीश की रचनाओं संग

डाॅं. दीपक अग्रवाल
अमरोहा। (सनशाइन न्यूज)
कोरोना वायरस आज वैश्विक महामारी बन गया है। तमाम वैज्ञानिक और चिकित्सक इसके खात्मे के प्रयास मंे जुटे हैं। विभिन्न देशों की सरकारें अपने अपने नागरिकांे को संरक्षित करने का प्रयास कर रही हैं। भारत सरकार भी पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आमजन की हिफाजत के लिए कार्य कर रही हैं। सन शाइन न्यूज ने टीचरों की रचनाओं के माध्यम से आमजन को जागरूक करने का प्रयास किया है। बड़ी संख्या में रचनाएं प्राप्त हुई प्रस्तुत हैं चयनित रचनाएंः

 

डॉ.अनिल शर्मा अनिल

कोरोना से महायुद्ध में आज हमारे हिंदुस्तान में चिकित्सा जगत से दो बलिदान हुए डॉ वंदना तिवारी और डॉ शत्रुघ्न पंडवानी। जेहादियों के हमले में घायल हुई थी डॉ वंदना तिवारी और डॉ शत्रुघ्न कोरोना के मरीजों का इलाज करते हुए संक्रमण का शिकार हो गए। कर्मपथ पर मानवता की सेवा करते बलिदान हुए इन चिकित्सकों को शत शत नमन।
डॉक्टर वंदना तिवारी और
डॉक्टर शत्रुघ्न पंडवानी।
शत मस्तक तब बलिदानों पर,
हर सच्चा मन हिन्दुस्तानी।।
जीवन देना चाहा जिनको,
तुम उनके हाथों छले गये।
सहकर हमला, करते सेवा,
इस दुनिया से तुम चले गये।।
वंदना, शत्रुघ्न अमर रहे,
हम प्रेरणा तुमसे पाते हैं।
है सजल नयन,श्रद्धानत हम,
सब तुमको शीश झुकाते हैं।।

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श्योनाथ सिंह शिव
राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित
सेवानिवृत्त शिक्षक

रह अकेला, रह अकेला, रह अकेला ।
जीवन संकट पङ सकता है, पाला यदि झमेला।
साधो रह अकेला।
रिश्ते नाते दूरी रख, मिलने का अब छिन गया हक ।
गले मिले या हाथ मिलाया, हो सकता है खेला।।
तू रह अकेला – – – – ।।
मत मजाक में इसको ले, झींक, खांसी झट कपङा ले।
नहीं किया परहेज यदि तो, खङा मौत का ढेला।।
तू रह अकेला – – – – ।।
परिवार को घर में रख, कोरोना हारेगा तब।
बचाव नाम की एक दवाई, मत बन शिव अलवेला ।।
तू रह अकेला – – – – – ।।

मंदिर, मस्जिद बन्द पङे, चर्च, गुरुद्वारे मौन खङे।
पूजा – पाठ अंतरमन कर, प्रात-सांय की बेला।

तू रह अकेला – – – – – – – – – ।।
साधन और साधना तू, परमारथ संवाहक तू।
ढूंढ उसे तू मन-मंदिर अब, जिसने जग में ढेला
तू रह अकेला, रह अकेला, रह अकेला – साधो रह अकेला।
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रेखा रानी, गजरौला

पीड़ा धरती मां की
भारत माता, स्वप्न में आई,
आकर के मुझसे बोली।
सोई नहीं हूं मैं तो तनिक भी ,
तू कैसे? ऐसे सो ली ।
किसने किया यह कृत्य घिनौना,
किसने बदरंग किया चित्र को ,
किसने भंग किया स्वप्न सलोना,
किसने फैलाया कोरोना इत्र को।
किसने साजिश की है मुझसे,
अब तो इसकी हद हो ली।
सोई नहीं हूं मैं तो तनिक भी,
तू ,कैसे ?ऐसे सो ली।
जाति -धर्म और राजनीति पर ,
बाद में बातें कर लेंगे।
अपना -पराया , धन -दौलत पर,
बाद में सारे लड़ लेंगे।
पहले मानवता को समझो,
जहर की क्यों? फसलें बो ली।
सोई नहीं हूं मैं तो तनिक भी ,
तू ,कैसे? ऐसे सो ली।
मैंने कभी क्या कोई भेद,
किया है तुम संतानों में।
अपनी सब सौगातें बांटी ,
निस्वार्थ ही सब इंसानों में।
फिर काहे यूं अंधे हो कर ,
मौत की अब गठरी खोली।
सोई नहीं हूं मैं तो तनिक भी,
तू, कैसे ? ऐसे सो ली।
बहुत हुआ अब तेरा मेरा बाते
घुमा फिरा करना।
जाग जाओ ए राजदुलारे !
कल पछताओगे वरना।।
बंद करो यह दीन- धर्म की
बातें यूं खुलकर करना।
सर्वोपरि है देश, मानवता ,
प्रशासन की सारी हिदायत ,
सामाजिक दूरी रखना ।
रेखा! मुश्किल दौर है धीरज रखना
मुझसे यूं धरती मां रोकर बोली।
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अरविंद गिरि, शिक्षक
पूर्व माध्यमिक विद्यालय कपसुआ
धनौरा, जिला-अमरोहा।

कोरोना-दुश्मन मानवता का
आओ मिलकरे कसम उठायें
कोरोना को जड़ से भगाना है
कई बार धोयें हाथ साबुन से
घर से बाहर बिल्कुल न जाना है
जो घर से बाहर हैं हम सबकी खातिर
उनका भी कुछ ध्यान धरो
संयम संग धैर्य का देकर परिचय
दिल से उनका भी सम्मान करो
जिसने ना देखा ईश्वर अब तक
वो डाक्टर, नर्स, पुलिस को देख लो
समाज हित और देश के हित में
कुछ दिन कदमों को रोक लो
हारेगा कोरोना , जीतेगा भारत
हर भरतवंशी का संकल्प है
हम सुधरेंगे तो सब सुधरेंगे
अब बचा ना कोई विकल्प है
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जगदीश चन्द्र

कितने आसमान छू लें हम,
दोहन करके धरती का।
क्षण भर में मिट जायेगा,
बुर्ज खलीफा पृथ्वी का।
गहराई तक खोद खोद कर,
बाहर निकाला रत्नों को ।
माटी को छलनी कर डाला,
काट-काट कर अंगों को ।
भांति भांति की भाषा सीखी,
निज स्वार्थ भरी अभिलाषा में ।
मतलब सबका एक निकलता,
सब हैं लूट पाट की आशा में ।
जीव धरा का नहीं मचाता,
कोहराम कभी बेमानी का।
मानव है बस एक निशानी,
मतलबपरस्त कहानी का।
जंगल काटे मौज मौज में,
लीले जीवन जीवों के ।
नख से शिख तक काम आ गए,
अंग बेजुबां जीवों के ।
निर्वस्त्र धरा पर आते हैं,
सब ओढ़ बिछा कर चल देते हैं ।
हवा आब सब दूषित करके ,
राख -खाक बन चल देते हैं ।
अब नईं हवाएं जहर मिली हैं,
खुद का जीवन खुद से मुश्किल ।
बड़ी बड़ी तकनीक निकाली,
फिर भी अब कुछ काम न आई ।
आखिर हार गए करनी पर,
खुद ने खुद की मौत बुलाई।
हाहाकार मचा धरती पर,
बेबस मानव तड़प रहा है ।
वायरस खुद ही पैदा करके,
अपनी करनी भुगत रहा है ।
अब शान्त हो चली इच्छा ज्वाला,
बस घर में मिल जाए एक निवाला ।
कल का सूरज शुभ दिन लाए,
इसी आस में है बेचारा ।

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Dr. Deepak Agarwal
Dr. Deepak Agarwal is the founder of SunShineNews. He is also an experienced Journalist and Asst. Professor of mass communication and journalism at the Jagdish Saran Hindu (P.G) College Amroha Uttar Pradesh. He had worked 15 years in Amur Ujala, 8 years in Hindustan,3years in Chingari and Bijnor Times. For news, advertisement and any query contact us on deepakamrohi@gmail.com
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