डाॅ. दीपक अग्रवाल का विश्लेषण
अमरोहा/उत्तर प्रदेश। (सनशाइन न्यूज)
विभिन्न आरोपों और प्रत्यारोपों के बीच मुझे यह कहने में कतई संकोच नहीं है कि हिंदी पत्रकारिता आज भी समाज की संजीवनी है। वह समाज की दशा और दिशा दोनों बदलने का कार्य कर रही है।
हिंदी पत्रकारिता दिवस 30 मई को मनाए जाने के पीछे 30 मई 1826 को कलकत्ता से प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक समाचाार पत्र उदंत मार्तण्ड का इतिहास छिपा है। यह पत्र अहिंदी भाषी प्रदेश से हिंदी भाषी प्रदेश उत्तर प्रदेश के कानुपर निवासी पंडित जुगल किशोर शुक्ल निकालते थे जो उसके संपादक थे। इस दुर्लभ पत्र की कुछ प्रतियां आज भी माधवराव स्प्रे स्मृति संग्रहाल भोपाल में संरक्षित कर सुरक्षित रखी गई हैं। जब मैं गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार की ओर वर्ष 1996 मंे भोपाल शैक्षणिक टूर पर गया था तब मैंने उनका अवलोकन किया था। उन दिनों मैं पीजी डिप्लोमा पत्रकारिता का विश्वविद्यालय में छात्र था।
इस समाचार पत्र समेत हिंदी पत्रकारिता का जन्म ही भारत को अंग्रेजों की दासता से मुक्ति दिलाने के लिए हुआ था। देश की आजादी में हिंदी समाचार पत्रों का बड़ा योगदान हैं। इसी विषय पर मैंने पीएचडी भी की है। बहरहाल देश आजाद हुआ और हिंदी पत्रकारिता ने भी स्वतंत्र देश में खुली सास ली।
देश की आजादी के बाद पत्रकारिता पर व्यवसायिकता हावी हो गई और पत्रकारिता सेठों की तिजोरी भरने का माध्यम बन गई। अब पत्रकारिता प्रिंट मीडिया से निकल कर इलेक्ट्रोनिक मीडिया और सोशल मीडिया तक छा गई है। पत्रकारिता और पत्रकारों के चरित्र को लेकर तमाम सवाल उठते रहते हैं साथ ही पत्रकारों की योग्यता भी सवालों के घेरे में रहती है।
फिलहाल मैं बहुत अधिक लिखना उचित नहीं समझता हूं लेकिन जिंदगी का 30 साल से अधिक का समय हिंदी पत्रकारिता को समर्पित रहा है। 18 साल से पत्रकारिता के शिणक्ष से भी जुड़ा हूॅं। तमाम शार्गिंद पत्रकारिता में मुझसे भी आगे निकल गए हैं यह मेरे लिए गर्व की बात है।
निष्कर्षतः मैं यही कहना चाहंूगा कि हिंदी पत्रकारिता निसंदेह आज भी समाज के लिए संजीवनी का काम कर रही है। वह कमजोर वर्ग की आवाज बनकर उभर रही है। अपवाद तो हर जगह होते हैं इसीलिए पत्रकारों को हिंदी पत्रकारिता दिवस पर समाज हित में बेहतर करने का संकल्प ही लेना चाहिए।