डाॅ. दीपक अग्रवाल
अमरोहा/उत्तर प्रदेश। (सनशाइन न्यूज)
इस तथ्य को नहीं झुठलाया जा सकता है कि समाज के निर्माण में महिलाओं का अतुलनीय योगदान है। मेरा मानना है कि कामकाजी महिलाएं दोहरी मार झेलती हैं परिवार की जिम्मेदारियों के साथ-साथ उन्हें अपने कार्यस्थल पर भी योगदान करना होता है। हमारे बीच तमाम शिक्षिकाएं ऐसी हैं जो काव्य सृजन में भी रुचि रखती हैं उन्हें मंच प्रदान करने का कार्य सन शाइन न्यूज पोर्टल के माध्यम से किया जा रहा है। पेश हैं शिक्षिकाओं की रचनाएंः
अंशु, शिक्षिका।
मजदूर क्यों कहते हो उसे,
सबकी तरह वो भी एक इंसान है।
शहर में झुग्गी झोपड़ी थी तो क्या,
गांव में उसका भी मकान है।
उसने हमेशा से ही खून पसीना बहाया,
उसके सामने कामचोरों की क्या औकात है।
वो रात दिन मेहनत करता है,
थोड़ी गलती होने पर मिलती सजा।
तुमने उसे क्या दिया,
चंद रुपयों के सिवा।
वह भी समझदार इंसान है,
फिर क्यों नहीं सम्मान का हकदार है।
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श्वेता सक्सेना, शिक्षिका
पूर्व मावि तिगरिया खादर
गजरौला।
नित्य हों ज्ञान से प्रेरित
नित्य करें औरों को प्रेरित
आज की मेहनत, सुंदर होगा कल,
प्रयत्नों का मिलेगा अवश्य फल,
भविष्य बनेगा उज्जवल,
जीवन हो जाए रे सफल।
नित्य…………
चाहे हजार बार गिरना, फिर उठना,
उठकर चलना, फिर दौड़ना,
मत रूकना,हार न मानना
जब तक जीत का ना हो सामना
नित्य……..
बनाना एक अलगअपनी पहचान
मां बाबा का तुम बढ़ाना मान
जीवन में मिलेगा भरपूर सम्मान
यकीनन पूरे होंगे सारे अरमान
दुनिया में गुंजित होगा आपका नाम
ठीक उस प्रकार
सूरज को उदय का न देना
पड़ता कोई प्रमाण।
उसका उजाला स्वतःही
करता गली-गली में प्रकाश।।
नित्य हों ज्ञान से प्रेरित
नित्य करें औरों को प्रेरित।
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प्रीति चैधरी(शिक्षिका)
राजकीय बालिका इण्टर कालेज
हसनपुर।
आओ आत्मनिर्भर भारत त्योहार मनाए
धानी रंग से इसके चोले को सजाए
जो चमके पूरे विश्व में जगमग
ईमानदारी,निष्ठा ,समर्पण के
इसको आभूषण पहनाए
हर भेदभाव भूलकर
इसमें प्यार के रंग भर आए
इस पवित्र महायज्ञ अग्नि में
सब अपनी अपनी आहुति दे आए
कर अपने देश पर अभिमान
वस्तु स्वदेशी को अपनी पसंद बनाए
दिखावे के आवरण को उतार
अपने देश की मिट्टी को मस्तक से लगाए
देख अचम्भित हो विश्व सारा
ऐसा आत्मनिर्भर भारत त्योहार मनाये
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सीमा रानी, शिक्षिका
अमरोहा।
दो वक्त की रोटी
को मजबूर हूँ मैं
हाँ मजदूर हूँ मैं
हाँ मजदूर हूँ मैं
बड़ी बड़ी अटटालिकाएं
सजी संवरी भवन मालाएं
मुझे केवल देंगीं लाचारी,
जैसे हूँ मै कोई भिखारी
मैंने ही तपती दोपहरी भर ,
खून पसीना लगातार बहाकर
आपको आन्नद सुख दिया
बदले में आप धनिकों ने मुझे
सड़कों पर लाचार छोड़ दिया
मीलों मील पैदल चलकर,
भूख धूप बीमारी से लड़कर
मानों कोई अक्षम्य गुनाह कर
मैं लाचार दिन रात दौड़ रहा हू
कभी पैदल कभी साईकिल पर
छोटे छोटे बच्चों को लेकर ,
दो रोटी की आस सहेजकर
चल रहा हूँ सड़क पर
मिट रहा हूँ सड़कपर,
क्योकि मै मजदूर हूँ
और बेहद मजबूर हूँ
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रेखा रानी
ब्लॉक मंत्रीः प्राथमिक शिक्षक संघ
गजरौला।
जनपद अमरोहा।
जिस दिन एक मां बेटी की तरह बेटे को संस्कार सिखाएगी।
सचमुच मेरे देश की बेटी उस दिन महफूज हो जाएगी।
मां को ही सिखाना होगा कि वह जो दुल्हन लेकर आया है।
किसी के कलेजे का टुकड़ा, उसमें धड़कती धड़कन लेकर आया है।
अब उसी से बंध गई है तेरी सांसों की डोर।
तुम्हें संग साथ मिलकर पकड़नी है गृहस्थ जीवन की डोर।
तुम्हें हमसे पहले उसकी प्रत्येक जिम्मेदारी निभानी है।
उतार कर चोला सास या ननद का वह केवल जब स्त्री रह जाएगी।
सचमुच मेरे देश की बेटी उस दिन महफूज हो जाएगी।
मां ही अपने बेटे को अहसास कराए।
स्त्री की वास्तविकता मां ही समझाए।
कि कैसे सहकर पर्वत सी प्रसव पीड़ा,
सहज भाव से मुस्कुराए।
किंतु तेरा तनिक भी तिरस्कार ,
वह क्षण भर न सहन कर पाए।
थक गई होगी जा कुछ हाथ बंटा दे,
कहकर उसका हौसला बढ़ाए।
जिस दिन केवल एक मां बनकर बेटी सा,
सिर वो सहलाएगी।
सचमुच मेरे देश की बेटी उस दिन महफूज हो जाएगी।
बेटे को खुशहाल जीवन की परिभाषा समझाए।
कामयाब इंसान के पीछे स्त्री का हाथ होना समझाए।
तेरी अर्धांगिनी है वह ही तेरा भाग्य चमकाए।
तेरी कामयाबी पर घृत दीप जला,
वह फूली न समाए।
दोनों का जीवन एक दूसरे का पूरक होना समझाए।
जिस दिन मायके जाती हुई बहू के लिए सास आंसू बहाएगी।
सचमुच मेरे देश की बेटी उस दिन महफूज हो जाएगी।
तब कोई बाप बेटी की विदाई पर आंसू क्यों बहाए।
क्यों मां अचेत हो कर सुध बुध गंवाए।
बहू के अभिशाप से मुक्त हो बेटी नवजीवन की ओर जाए।
इस तरह से रेखाएक खूबसरत सा दोस्त मिल जाए।
और मिलजुलकर गृहस्थ जीवन की बगिया महकाए।
जिस दिन स्त्री ही स्त्री का मान बढ़ा ,
मां कहकर बहू सास को गले लगाएगी।
सचमुच मेरे देश की बेटी उस दिन महफूज हो जाएगी।
जिस दिन एक मां बेटी की तरह बेटे को संस्कार सिखाएगी।