डाॅं. दीपक अग्रवाल
अमरोहा। (सनशाइन न्यूज)
योग व्यायाम का एक ऐसा प्रभावशाली प्रकार है जिसके माध्यम से ना केवल शरीर के अंगों बल्कि मन मस्तिष्क और आत्मा में संतुलन बनाया जाता है। यही कारण है कि योग से शारीरिक व्याधियों के अलावा मानसिक समस्याओं से भी निजात पाई जाती है।
योग शब्द की उत्पत्ति संस्कृति के युज से हुई है, जिसका मतलब होता है आत्मा का सार्वभौमिक चेतना से मिलन। योग लगभग 10000 से भी अधिक समय से अपनाया जा रहा है। वैदिक संहिता ओं के अनुसार तपस्विआंे के बारे में प्राचीन काल से ही वेदों में उसका उल्लेख मिलता है। सिंधु घाटी सभ्यता में भी योग समाधि को प्रदर्शित करती मूर्तियां प्राप्त हुई है।
हिंदू धर्म में साधु सन्यासियों व योगियों द्वारा योग्य सभ्यता को प्रारंभ से ही अपनाया गया था परंतु आम लोगों ने इस विधा का विस्तार हुए अभी ज्यादा समय नहीं बीता है बावजूद इसके योग की महिमा और महत्व को जानकारी से स्वस्थ जीवन शैली हेतु बड़े पैमाने पर अपनाया जा रहा है जिसका मुख्य कारण व्यस्त, तनावपूर्ण और अस्वस्थ दिनचर्या में इसके सकारात्मक प्रभाव।
योग की प्रमाणित पुस्तकों जैसे शिव संहिता तथा गोरक्षशतक मे योग के चार प्रकारों का वर्णन मिलता है —
1- मंत्र योग– जिसके अंतर्गत वाचिक , मानसिक , उपांशु और आड़प्पा आते हैं।
2– हठयोग
3– लययोग
4– राजयोग , जिसके अंतर्गत ज्ञान योग और कर्म योग आते हैं।
व्यापक रूप से पतंजलि औपचारिक योग दर्शन के संस्थापक माने जाते हैं। पतंजलि के योग , बुद्धि नियंत्रण के लिए एक प्रणाली है, जिसे राज्यों के रूप में जाना जाता है । पतंजलि के अनुसार योग के आठ सूत्र बताए गए जो निम्न प्रकार से हैं —
(1) यम– इसके अंतर्गत सत्य बोलना, अहिंसा, लोभ न करना , विषयाशक्ति न होना और स्वार्थी न होना शामिल हैं ।
(2)नियम– इसके अंतर्गत पवित्रता , संतुष्टि , तपस्या, अध्ययन और ईश्वर को आत्मसमर्पण शामिल है।
(3)– आसन– इस में बैठने का आसन महत्वपूर्ण है।
(4)– प्राणायाम– सास को लेना, छोड़ना और स्थगित रखना इसमें अहम हैं।
(5)– प्रत्याहार — भारी वस्तुओं से, भावना अंगों से प्रत्यहार
(6)– धारणा– इसमें एकाग्रता, अर्था एक ही लक्ष्य पर ध्यान लगाना महत्वपूर्ण है
(7)– ध्यान– ध्यान की वस्तु की प्रकृति का गहन चिंतन इसमें शामिल है।
(8)– समाधि– इसमें ध्यान की वस्तु को चैतन्य के साथ विलय करना शामिल है। इसके दो प्रकार हैं – सविकल्प और अविकल्प
अविकल्प मैं संसार में वापस आने का कोई मार्ग नहीं होता अतः यह योग पद्ति की चरम अवस्था है ।
भगवत गीता में योग के तीन प्रमुख प्रकार बताए गए हैं वह इस प्रकार है–
1– कर्मयोग — इसमें व्यक्ति अपनी स्थिति के उचित और कर्तव्य के अनुसार कर्मों का श्रद्धा पूर्वक निर्वाह करता है।
2– भक्ति योग– इसमें भागवत कीर्तन प्रमुख है, इस भवनात्मक आचरण वाले लोगों को सुझाया जाता है।
3– ज्ञाना योग — इसमें ज्ञान प्राप्त करना अर्थात ज्ञानार्जन करना शामिल हैं।
वर्तमान में योग को शारीरिक, मानसिक व आत्मिक स्वास्थ्य व शांति के लिए बड़े पैमाने पर अपनाया जाता है। 11 दिसंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने पीएम नरेंद्र मोदी के प्रयासों से प्रत्येक वर्ष 21 जून को विश्व योग दिवस के रूप में मान्यता दी, और 21 जून 2015 को प्रथम अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया। प्रथम बार विश्व योग दिवस के अवसर पर 192 देशों में योग का आयोजन किया गया जिसमें 45 मुस्लिम देश भी शामिल थे।
लेखकःगौरव नागर (स.आ.)
प्राथमिक विद्यालय पतई खादर
वि.ख.– गंगेश्वरी
जनपद– अमरोहा