डाॅ. दीपक अग्रवाल
अमरोहा/उत्तर प्रदेश। (सनशाइन न्यूज)
मनुष्य द्वारा अतिभौतिकवाद, अति उत्पादनवाद और अति उपभोगवाद को विकास का पर्याय मान लेने से संसार में प्राकृतिक असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हुई है। आज हमारी जीवन शैली प्रकृति से मेल नहीं खाती, जिस कारण आम जीवन में तरह-तरह की समस्याएं पैदा हुईं हैं। जैसा कि हम जानते हैं प्रकृति ही संसार की सबसे बड़ी पोषक है और प्रकृति ही संसार की सबसे बड़ी संहारक है। प्रकृति के संहार से बचाव हेतु प्रकृति से मेल करता हुआ संयमित जीवन जीये जाने तथा जियो और जीने दो के सिद्धान्त को अपनाये जाने की महति आवश्यकता है।
पृथ्वी पर पाये जाने वाले सभी जीव जन्तु, पशु पक्षी, पेड़ पौधे और मानव अपने अस्तित्व के लिए एक दूसरे पर निर्भर हैं। मानव अपने भोजन एवं अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु पूरी तरह से जीवों और वनस्पतियों पर निर्भर है।
मनुष्य के क्रियाकलापों से पर्यावरण असन्तुलित एवं प्रदूषित हो गया है। प्रदूषित पर्यावरण में स्वस्थ एवं सुखपूर्वक जीना एक दुष्कर कार्य हो गया हैै। ऐसी स्थिति में पर्यावरण संतुलन के कार्य को केवल सरकारों एवं देशों के भरोसे छोड़ा जाना मानव जाति के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। ऐसी स्थिति में प्रत्येक मानव को अपने परिवार एवं पर्यावरण विशेषज्ञों के साथ मंथन, स्वचिंतन कर परिवार पर्यावरण योजना बनाया जाना अत्यंत समीचीन हो गया है। इस कार्य योजना को बनाने से पहले हमें पर्यावरण असंतुलन के कारण एवं प्रभावों को जानना होगा, ताकि मंथन एवं स्वचिंतन कर पर्यावरण परिवार योजना प्रत्येक परिवार द्वारा तैयार कर उसको अनुपालित किया जा सके।
पर्यावरण– दो शब्दों से मिलकर बना है -परि$आवरण- परि का अर्थ है, जो हमारे चारों ओर है, आवरण का अर्थ है, जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है। पर्यावरण- उन सभी भौतिक रसायनिक एवं कारकों की समष्टिगत ईकाई है, जो किसी जीवधारी अथवा परितन्त्रीय आबादी को प्रभावित करते हैं तथा उनके रूप, जीवन और जीविता को तय करते हैं। पर्यावरण के जैविक संघटकों में जीवाणु से लेकर कीड़े मकौड़े, सभी जीव जन्तु और पेड़ पौधे आ जाते हैं। पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले विभिन्न कारकों उनके प्रभाव और कारणों पर विचार करते हैं।
वायु प्रदूषण – वाहनों से निकले वाले धुंए, औद्योगिक ईकाइयों से निकलने वाले धुंए, औद्योगिक संयत्रों से निकलने वाली गैसों और धूल कणों, जंगलों में पेड़ पौधों के जलने से, कोयले के जलने से तथा तेल शोधन कारखानों से निकलने वाले धुंए और ज्वालामुखी विस्फोट से फैलता है। वायु प्रदूषण के कारण – हवा में अवांछित गैसों की वजह से मनुष्यों, पशुओं तथा पक्षियों को दमा, सर्दी-खांसी, अंधापन, त्वचा रोग जैसी बीमारियां पैदा होती है। लम्बे समय के बाद इससे जननिक विकृतियाॅं उत्पन्न हो जाती हैं। सर्दियों में कोहरा छाया रहता है इससे प्राकृतिक दृश्यता में कमी आती है तथा आंखों में जलन होती है। वायु प्रदूषण के कारण ओजोन परत का ह्रास होता है। हानिकारक अल्ट्रा वायलैट किरणों के कारण जीन परिवर्तन, अनुवांशकीय तथा त्वचा कैंसर के खतरे बढ़ते हैं। वायु प्रदूषण के कारण पृथ्वी का तापमान बढता है क्योंकि सुर्य से आने वाली गर्मी के कारण पर्यावरण में कार्बन डाई आॅक्साइड, मीथेन और नाइट्रस आॅक्साइड का प्रभाव कम नहीं होता। इस कारण फसल चक्र प्रभावित होता है। ध्रुवों की बर्फ पिघलती है, समुद्र का जलस्तर बढता है। पर्वतों की बर्फ भी अधिक पिघलती है जिससे वर्षभर कृषि हेतु जल आपूर्ति पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
जल प्रदूषण – जल में किसी प्रकार के अवांछनीय, गैसीय, द्रवीय, ठोस पदार्थों का मिलना ही जल प्रदूषण है। जल प्रदूषण के प्राकृतिक कारणों में- जंगलों में पड़ा जैव कचरा जो वर्षा में बहकर जलाशयों में मिल जाता है।, बहते हुए जल में खनिज व बाहर पड़े पदार्थ मिल जाते हैं व जलाशय में पहुंच जाते हैं। जैसे पारा,आर्सेनिक, सीसा, कैडमियम आदि हैं। जल प्रदूषण के मानव जनित स्रोत – अज्ञानता वश नदियों व तालाबों में नहाना व मल का त्याग करना, कपड़ा धोने आदि से अपमार्जक व साबुन जल में मिलने से जल को स्थायी रुप से नुकसान पहुचाते हैं, घरेलू व सार्वजनिक शौचालयों का बहिस्राव, मल आदि का जल में मिलना, मृत पशुओं को जल में निस्तारित करना, उद्योगों से निकले हुए बहिस्रावों को सीधे जल में छोड़ना, कृषि कार्यों में उपयोग किये गये खाद व कीटनाशकों कीे बची हुई मात्रा को सीधे ही जलाशय में छोड़ना है। तैलीय प्रदूषण, उद्योगों से, जहाजों से , समुद्री दुर्घटनाओं से, तेल के परिवहन द्वारा व समुद्र किनारे तेल के कुओं से रिसकर, जल का तापीय प्रदूषण, रेडियो एक्टिव अवशिष्ट किसी नाभकीय विस्फोट द्वारा वायु में फैले बारीक कण धीरे-धीरे जलाशयों में गिरते हैं। औद्योगिक जल प्रदूषण, कचरा युक्त पानी जिसमें क्लोराइड, सल्फाइड , नाइट्रोजन आदि रसायनिक प्रदूषण, सीसा, पारा, जस्ता, तांबा, अधिक धात्विक पदार्थ जल को प्रदूषित करते हैं। जल में फ्लोराइड अधिक होने पर मांस पेशियां व हड्डिया प्रभावित होती है।
जल प्रदूषण से हैजा, टाइफाइड, दस्त, पेचिश आदि बैक्टीरिया जनित रोग, हैपटाइटिस, पीलिया आदि वायरस जनित रोग, पेट दर्द, आंतों व आमाशय में संक्रमण आदि प्रोटोजोआ जनित रोग, कृृमि जनित रोग, चर्म रोग, आंखों के रोग होते हैं। फ्लोराइड के कारण दंत क्षय, हड्डी की विकृतियां होती हैं। नाइट्राइट, पारा, लैड जल को विषैला बनाते हैं। जिससे जलीय जीवों की मृत्यु होती है। प्रदूषित जल में काई की अधिकता से जलीय जीवों में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में कमी आती है।
भूमि प्रदूषण – जमीन पर जहरीले अवांछित और अनुपयोगी पदार्थों के भूमि में विसर्जित करने से भूमि का निम्नीकरण होता है तथा मिट्टी की गुणवत्ता प्रभावित होती है। कृषि में उर्वरकों, रसायनों तथा कीटनाशकांे का अत्यधिक प्रयोग, औद्योगिक ईकाइयों, खानों तथा खादानों से निकले ठोस कचरे का विसर्जन, भवनों, सड़कों आदि के निर्माण के ठोस कचरे का विसर्जन, कागज तथा चीनी मिलों से निकलने वाले पदार्थों का निपटान, जो मिट्टी द्वारा अवशोषित नहीं हो पातें, प्लास्टिक की थैलियों का अत्यधिक उपयोग, जो नष्ट नहीं होती।, घरों, होटलांे, और औद्योगिक ईकाइयों द्वारा निकलने वाले अवशिष्ट पदार्थों का निपटान, जिससे प्लास्टिक कपड़े, लकड़ी, धातु कांच, सेरेमिक, सीमेंट आदि के कारण भूमि प्रदूषण होता है। भूमि प्रदूषण के कारण कृषि योग्य भूमि की कमी, भोज्य पदार्थों के स्रोतों के दूशित होने के कारण स्वास्थ्य को हानि पहुंचती है।
ध्वनि प्रदूषण– अनियमित, अत्याधिक तीव्र एवं असहीनय ध्वनि को ध्वनि प्रदूषण कहते हैं। ध्वनि प्रदूषण शहरों और गांवों में किसी भी त्योहार, उत्सवों, राजनैतिक दलों के चुनाव प्रचार व रैली में लाउडस्पीकरों का अनियमित इस्तेमाल, अनियमित वाहनों के विस्तार के कारण उनमें इंजन एवं प्रेशर हाॅर्न के कारण, औद्योगिक क्षेत्रों में उच्च ध्वनि क्षमता के पावर हाॅर्न तथा मशीनों के द्वारा होने वाले शोर, जेनरेटरों एवं डीजल पम्पों आदि से ध्वनि प्रदूषण होता है। ध्वनि प्रदूषण के कारण श्रवण शक्ति का कमजोर होना, सिर दर्द, चिड़चिड़ापन, उच्च रक्त चाप अथवा मनोवैज्ञानिक दोष उत्पन्न होने लगते हैं। लम्बे समय तक ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव से परेशानियां बढ़ जाती हैं।, ध्वनि प्रदूषण से हृदय गति बढ जाती है जिससे रक्त-चाप, सिर दर्द एवं अनिद्रा जैसे अनेंक रोग उत्पन्न होते हैं।, नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य पर ध्वनि प्रदूषण का बुरा प्रभाव पड़ता हैं तथा इससे कई प्रकार की शारीरिक विकृतियां उत्पन्न होती हैं, गैस्ट्रिक, अल्सर, और दमा जैसे शारीरिक रोग, थकान एवं चिड़चिड़ापन जैसे मनो विकार उत्पन्न होते हैं।
जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण- सौर विकिरण है। सूर्य से उत्सर्जित जो ऊर्जा पृथ्वी तक पहुंचती है और फिर हवाओं और महासागरों द्वारा विश्व के विभिन्न मार्गों में आगे बढ़ती है यह जलवायु परिवर्तन का एक प्रमुख कारण है। मानवीय गतिविधियां- नये युग की तकनीकों का प्रयोग पृथ्वी पर कार्बन उत्सर्जन की दर को बढ़ा रही है इसके आलावा कक्षीय रूपांतरों प्लेट टेक्शेनियम और ज्वाला मुखी विस्फोटों से भी जलवायु में बदलाव हो सकता है। जलवायु परिवर्तन के कारण- वनों और वन्य जीवों पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। कई पौधों और जानवरों की पूरी जनसंरचना विलुप्त हो गयी और कुछ विलुप्त होने के कगार पर हैं।
मानव द्वारा पर्यावरणीय परिवर्तन के कारण पादपों एवं प्राणियों की 100 जातियां प्रतिदिन विलुप्त हो रही हैं, जो स्वाभाविक दर से 1000 गुना अधिक हैं। अगले 20-30 वर्षों में पादपों और प्राणियों की 10 लाख से अधिक प्रजातियां विलुप्त हो सकती हैं। मनुष्य द्वारा उपयोग किये जाने वाले विभिन्न प्रकार के आहार, दवा, ऊर्जा स्रोत और औद्योगिक उत्पाद सभी परिस्थितिकी तत्वों से और पृथ्वी के हर कोने से आते हैं, भविष्य में उपयोग किये जा सकने वाले में सो्रत अगर नष्ट हो जाये तो उससे हमारा जीवन यापन का स्तर प्रभावित होगा और कुछ मामलों में तो मनुष्य का भावी अस्तित्व खतरे में पड़ जायेगा। आज उगायी जा रही अधिकांश फसले किसी भौगोलिक क्षेत्र विषेश के लिए विकसित हुई है। जलवायु बदल जाने अथवा नये रोगों व होने पर इन नस्लों की उत्पादकता शायद पहले जैसी न रह जाये। लिहाजा जैव विविधतता को बचाये रखना और भी आवश्यक हो जाता है।
वायु प्रदूषण रोकथाम हेतु परिवार पर्यावरण योजना – प्रत्येक परिवार के द्वारा यह प्रयास किये जाने की जरुरत है कि वह पैट्रोल-डीजल के वाहनों का प्रयोग न करके मानव चलित वाहनों के प्रयोग की योजना बनाये। यदि परिवार के पास पहले से पाॅवर चलित वाहन है तो उनका आवश्यकता से अधिक प्रयोग न करे तथा उन्हें चलाने हेतु पैट्रोल-डीजल के विकल्पों का प्रयोग करे। साथ ही भोजन पकाने में लकड़ी अथवा उपलों का प्रयोग न कर एलपीजी गैस का प्रयोग करे। फसल अवशेष एवं अन्य प्रकार का कूड़ा करकट जलया न जाये। यदि परिवार कोई उद्योग चलता है तो यह देखे कि उस उद्योग से होने वाले वायु प्रदूषण को किस तरह कम किया जा सकता है। साथ ही वायु शोधन के लिए परिवार वृक्षा रोपण करने का अपना परिवार के अन्य सदस्यों से चिंतन-मनन कर योजना बनाये। इस प्रकार कार्य योजना बनाकर कार्य करे।
जल प्रदूषण रोकथाम हेतु परिवार पर्यावरण योजना – प्रत्येक परिवार जल प्रदूषण रोकने हेतु एक कार्य योजना तैयार करे। जिसमें इस बात पर मनन किया जाये कि परिवार जल प्रदूषण बढ़ाने का कार्य अपनी किन-किन गतिविधियों से कर रहा है। परिवार का प्रत्येक सदस्य सार्वजनिक जल स्त्रोतों में साबुन से न तो स्नान करे, न कपड़े धोए, न पशुओं को मल त्याग करने दे और न ही स्वयं मल त्याग करे। घर के कूड़े कचरे को सार्वजनिक जल स्त्रोतों में न पहुंचने दे। शवों का विसर्जन सार्वजनिक जल स्त्रोतों में न करे। कीटनाशकों का निस्तारण जल स्त्रोतों में न किया जाए। यदि परिवार कोई उद्योग चलाता है तो औद्योगिक कचरा शोधन के उपरान्त ही जल स्त्रोतों में प्रवाहित करने की व्यवस्था करे। साथ ही घर में प्रयोग होने वाले जल को रिसाइकिल अथवा स्वच्छ कर सार्वजनिक जल स्त्रोतों में प्रवाहित होने दे।
भूमि प्रदूषण रोकथाम हेतु परिवार पर्यावरण योजना- प्रत्येक परिवार कृषि कार्य में उर्वरकों, रसायनों एवं कीटनाशकों के प्रयोग को बिल्कुल न करे अथवा हो रहे प्रयोग को यथा संभव न्यूनतम करने की योजना बनाये। घरों, होटलों और औद्योगिक ईकाईयों से निकलने वाले अवशिष्ट पदार्थों यथा प्लास्टिक, लकड़ी, काॅच, धातु, सेरेमिक आदि का निस्तारण इस प्रकार करे जिससे की वे भुमि प्रदूषण का कारण न बने।
ध्वनि प्रदूषण रोकथाम हेतु परिवार पर्यावरण योजना – प्रत्येक परिवार अपने द्वारा फैलाये जा रहे ध्वनि प्रदूषण का अवलोकन कर उसको नियंत्रण करने की योजना बनाये यथा त्योहारों, उत्सवों आदि में लाउडस्पीकर का प्रयोग न करने की शपथ ली जाए। यथा संभव जनरेटर और डीजल पम्पों के प्रयोग को न्युनतम किया जाए। यदि परिवार पाॅवर चलित संसाधनों का प्रयोग करता है तो उनको ध्वनि रहित बनाने की कार्य योजना तैयार की जाए।
जलवायु परिवर्तन रोकथाम हेतु परिवार पर्यावरण योजना – सौर विकिरण जलवायु परिवर्तन के सबसे प्रमुख कारकों में से एक है। सौर विकिरण को बढ़ाने में मानवीय गतिविधियां कैसे रोकी जाए कि कार्बन उत्सर्जन दर की दर कम हो सके। अर्थात प्रत्येक परिवार इस बात पर मंथन करे कि वह परिवार द्वारा किये जा रहे कार्बन उत्सर्जन को कैसे न्युनतम कर सकता है। इसके लिए उसे शीतलन यंत्रों के प्रयोग में कमी लानी होगी और यदि वह इस तरह के उद्योगों को चला रहा है जिनसे कार्बन उत्सर्जन होता है तो कार्बन उत्सर्जन को न्यूनतम करने के उपाय करे।
परिवार द्वारा तैयार पर्यावरण योजना को एक लिखित चार्ट के रुप में परिवार रखे। तथा ग्राम, कस्बा, प्रदेश और प्रत्येक देश परिवार पर्यावरण योजना को सम्मिलित कर अपना-अपना पर्यावरण प्लान तैयार करे और उस प्लान पर लगातार कार्य कर इस गृह को एक शानदार गृह के रुप में कार्य स्थापित करे। मानव जाति एक ही गृह को साझा करती हैै। समान जल स्त्रोतों से पानी पीती है और समान आॅक्सीजन से सांस लेती है। इसलिए प्रत्येक मानव पर यह जिम्मेदारी आयद होती है कि वह भूमि प्रदूषण, वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण एवं अन्य समस्त प्रकार के प्रदूषण को अपने परिवार के साथ मिलकर रोकने की योजना बनाये। जिससे कि पृथ्वी पर मानव जाति, पशु-पक्षी एवं वनस्पतियों का अस्तित्व बचा रह सके और प्रत्येक प्राणी प्रकृति युक्त, आन्नदमयी जीवन जी सके।