डाॅ. दीपक अग्रवाल
अमरोहा/उत्तर प्रदेश। (सनशाइन न्यूज)
प्रकृति पर मानव अत्याचार करेगा तो प्रकृति उस अत्याचार का बदला किसी न किसी रूप से लेगी यथा ऊर्जा का अभाव, अनावृष्टि, अकाल, वांशिक संघर्ष, नैति अद्यपतन भीषण रोगों का प्रादुर्भाव और अन्त में महायुद्ध मानव जाति के विनाश का कारण बनेंगे। मानव जाति द्वारा जल, जंगल, जमीन और वायु को जो हानि पहुंचाई जा रही है। उसके कारण मानव, अन्य जीवित प्राणी एवं वनस्पतियां काल के गाल में समाती जा रही है। अर्थात प्रकृति का शिकार करने वाला शिकारी मानव खुद ही शिकार हो रहा है।
ईश्वर ने मानव की रचना करते समय शायद यह सोचा होगा की मेरी यह रचना अपने बुद्धि विवेक से पृथ्वी ग्रह पर सभी जीवित प्राणियों एवं वनस्पतियों का जीवन आसान करने में प्राकृतिक स्रोतों को सहयोग प्रदान करेगी। लेकिन मानव जाति ने ईश्वर प्रदत्त जल, जंगल, जमीन एवं वायु का आनन्द पूर्ण प्रयोग करते-करते अपने कुनबे में अत्याधिक बढ़ोत्तरी की और सबसे दुखद बात यह रही कि मानव प्रजाति ने अपनी जरुरतों को अत्यधिक लालच में परिवर्तित कर लिया।
मनुष्य अपनी आवश्यकताओं से अधिक पाने के लालच में अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिये बिना किसी रोक टोक के ईश्वर की सुन्दर रचनाओं को नष्ट कर रहा है और यह महसूस भी नहीं कर पा रहा है कि उसके इस कृत्य से जैव विविधता प्रभावित हो रही है, जो पृथ्वी के पर्यावरण में असन्तुलन पैदा कर रही है।
मानव ने अपने लालच की पूर्ति हेतु जंगलो का कटान आरम्भ कर रखा है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार बीसवीं सदी के दौरान पूरी दुनिया में लगभग एक करोड़ वर्ग किमी क्षेत्र के वनों को नष्ट किया गया है। वर्ष 2018 में फूड एण्ड एग्रीकल्चर आॅर्गेनाईजेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में प्रति सैकेंड एक फुटबाल के मैदान के बराबर जंगल काटा जा रहा है। जंगलों की कटाई मुख्य रुप से हमारी जलवायु और जैव विविधता को प्रभावित करती है। पौधों और जानवरों की प्रजातियां बड़ी संख्या में विलुप्त हो रही हैं, क्योंकि उनके आवास और खाद्य श्रृंखला दोनों नष्ट हो रहे है। लेकिन जंगलों की अत्यधिक कटाई होने के कारण वायुमण्डल में मिथेन और कार्बन जैसी जहरीली गैसों की मात्रा बढ़ रही है, जिस कारण ग्लोबल वार्मिग बढ़ती है।
ग्लोबल वार्मिंग मानव, जीव जन्तुओं एवं वनस्पतियों को बुरी तरह प्रभावित करती है। शोधकर्ताओं का दावा है की जानवरों की सौ से अधिक प्रजातियों हर दिन विलुप्त हो रही है और अगले दो दशकों में जानवरों की दस प्रतिशत प्रजातियां विलुप्त हो जायेगी।
मानव जाति द्वारा किये गये औद्योगिककरण से बनने वाले कचरे का शिकार हमारी भूमि हो रही है। औद्योगिककरण के कारण पर्यावरण प्रदूषण एक अन्तर्राष्ट्रीय समस्या बन चुका है। प्रदूषण एक ऐसी अबाॅछनीय व असामान्य स्थिति है, जिसमें भौतिक, रसायनिक तथा जैविक परिवर्तनों के फलस्वरुप वायु, जल, मृदा अपनी गुणवत्ता खो देते है तथा जीव जगत के लिये हानिकारक सिद्ध होने लगते है। सल्फर डाई आॅक्साइड (कोयले और तेल के जलने से), नाइट्रोजन आॅक्साइड, ओजोन और कार्बन मोनो आॅक्साइड आदि के कारण वायु प्रदूषण फैलता है। कृषि प्रक्रिया से उत्सर्जित अमोनिया सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाली गैस है। ग्लोबल बर्डन आॅफ डिसीज के अनुसार वर्ष 2017 में प्रति लाख की आबादी से वायु प्रदूषण के कारण सबसे ज्यादा मौत (68.85 प्रतिशत) के लिये प्रदूषण के तीन कारण सबसे ज्यादा जिम्मेदार रहे।
सबसे ज्यादा मौत (38.15प्रतिशत) आउट डोर प्रदूषण यानि चिमनी, वाहनों एवम् आग से निकलने वाले धुंए से फैलने वाले प्रदूषण के कारण हुई। इसके बाद घर से निकलने वाले प्रदूषण के कारण (21.47 प्रतिशत) और ओजोन के कारण (6.23 प्रतिशत) मौतें हुई। अपशिष्ट पदार्थ एवं कृषि रसायन मृदा प्रदूषण के प्रमुख कारणों में से हैं, जिससे भूमि की गुणवत्ता में कमी आती है। वर्षा की मात्रा एवं तीव्रता, तापमान, हवा, मृदा, खनन तथा जैविक कारणों से भी भूमि की गुणवत्ता में कमी आती है। कृषि योग्य भूमि में लगातार कमी अन्न एवम् जैव विविधता के विनाश का कारण बनती जा रही है। भारत सरकार के वन मंत्रालय की रिर्पोट के अनुसार भारत वर्ष की कुल भूमि का लगभग 57 प्रतिशत भाग किसी न किसी प्रकार से क्षरित हो चुका है।
क्रिया के विरुद्ध प्रतिक्रिया, यह विज्ञान का एक अटल नियम है। मानव जाति की प्रकृति के प्रति पाश्विक क्रूरता प्रकृति को प्रतिशोध लेने के लिये बाध्य कर रही है। मानव प्रकृति का अविभाज्य अंग है। अतः उसका प्रकृति पर आक्रमण करना स्वयं के लिये आफत को न्यौता देना है। प्रकृति से छेड़छाड का परिणाम, जैसा कि रिर्पोट कहती है कि जल प्रदूषण के कारण संसार में प्रतिदिन 14000 लोगों की मौते हो रही है, जिसमें 580 लोग भारत के है। अमेरिका के हैल्थ इम्पैक्ट इंस्टीटयूट की ओर से जारी स्टेट आॅफ ग्लोबल एअर की वर्ष 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक हर साल सूक्ष्मकणों से वायु प्रदूषण के कारण दुनिया में 42 लाख से अधिक लोग असमय मौत के शिकार हो रहे है।
स्टेट आॅफ ग्लोबल एअर वर्ष 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में वायु प्रदूषण से मौत का आकंड़ा स्वास्थ्य सम्बन्धी मौतों को लेकर सड़क हादसों व मलेरिया के बाद तीसरा सबसे बड़ा कारण है। भारत में जीवन प्रत्याशा में वायु प्रदूषण के कारण 5.3 वर्ष कमी हो गयी है। दिल्ली से सटे हापुड़ व बुलदशहर में एक रिपोर्ट के अनुसार जीवन प्रत्याशा में 12 साल की कमी आ गयी, जो दुनिया के किसी भी शहर की तुलना में सबसे ज्यादा कमी है।
एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण के कारण वर्ष 2017 में स्ट्रोक, शुगर, हार्ट अटैक, फेफड़ों के कैंसर या पुरानी बीमारियों के कारण वैश्विक स्तर पर 50 लाख लोगों की मौत हुई है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 30 लाख मौत सीधे तौर पर पार्टिकल पाल्युशन (पीएम 2.5) से जुड़ी है।
(लेखक माँगेराम चैहान (पीसीएस) पर्यावरण प्रेमी अमरोहा जनपद मुख्यालय पर डिप्टी कलेक्टर हैं। आप वृक्षारोपण के लिए विशेष प्रयास कर रहे हैं और आमजन को भी प्रेरित कर रहे हैं। उनके प्रयास से जिले में कई स्थानों पर बड़ी संख्या में वृक्षारोपण किया गया और आमजन ने पेड़ांे के संरक्षण का संकल्प भी लिया है)