डाॅ. दीपक अग्रवाल
अमरोहा/उत्तर प्रदेश। (सनशाइन न्यूज)
मशहूर शायर राहत इंदौरी हमारे बीच नहीं रहे। अमरोहा में शायरी के शौकीन उनके दिवाने हैं। यही वजह है कि उन्होंने कई बार अमरोहा में शायरी के मंचों को रोशन किया। राहत साहब ने अपनी सांसारिक यात्रा भले ही पूरी कर ली हो लेकिन उनकी शायरी और उनकी यादें हमारे बीच सदा रहेंगी। एक बार वह मुझसे खफा हो गए और बड़ी मन्नत करने के बाद बात करने को राजी हुए।
करीब 12 साल पहले मैं उनसे मिलने अमरोहा के एक होटल में गया। शायर राहत इंदौरी जी एक अखिल भारतीय मुशायरे में शिरकत करने अमरोहा आए थे। मैं उन्हें पहचान नहीं पाया और मैंने जिस कमरे वे ठहरे हुए थे वहां उन्हीं से जाकर पूछ लिया कि आप कौन हैं। उन्होंने मुझसे पूछा आप कौन हैं तो मैंने जवाब दिया मैं अमर उजाला से पत्रकार डाॅ. दीपक अग्रवाल। इस पर वह बोले मैं राहत इंदौरी हूं और आप मुझे नहीं पहचानते हो यह बड़ी अजीब बात है। वह बुरी तरह खफा हो गए। बोले अमर उजाला के प्रधान संपादक अशोक अग्रवाल से अभी बात करता हूं। तभी एक अन्य शायर खुर्शीद वहां आ गए और उन्होंने बात संभाली। तब जाकर बड़ी मुश्किल में वह बात करने को तैयार हुए। तब एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि शायरी वहीं कामयाब है जो जनता को दिशा दे। आज के शायर वो लिखते हैं जिसे जनता पंसद करती है। राहत इंदौरी वह लिखता है जो उसे पसंद हो और जिससे दिल को सुकून मिलता हो। अपने दिल की आवाज सुनकर जो लिखा जाता है उसे जनता पंसद करती है।
उसके बाद तीन बार मेरी मुलाकात अमरोहा में राहत साहब से हुई। अब मैं उन्हें और वह मुझे अच्छी तरह पहचाने लगे थे। तीनों बार वह अमरोहा में आयोजित होने वाले अखिल भारतीय मुशायरे में शिरकत करने आए। जिनके इंटरव्यू मैंने पहले अमर उजाला वर्ष 2011 के बाद हिन्दुस्तान समाचार पत्र में लिखे और प्रकाशित भी हुए।
मैं ईश्वर से उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करता हूं। उनके जाने से शायरी की दुनिया में जो रिक्तता आई है उसकी भरपाई संभव नहीं है।