डाॅ. दीपक अग्रवाल
अमरोहा/उत्तर प्रदेश। (सनशाइन न्यूज)
शिक्षकों की समाज निर्माण में अहम भूमिका होती हैं। तमाम टीचर्स अपने मूल कार्य शिक्षण के साथ-साथ काव्य के क्षेत्र में भी दस्तक दे रहे हैं। टीचर्स को मंच प्रदान करने के लिए सनशाइन मंच का गठन किया गया है। प्रस्तुत हैं शिक्षिकाओं की रचनाएंः
श्वेता सक्सेना
शिक्षिका,पूर्व मा वि तिगरिया खादर,
गजरौला।
रौनकें है गुल
स्कूल तो गए हैं खुल
रौनकें मगर है गुल
वो घंटी की टन- टन
वो प्रार्थना सभा का गान
वो योग , नैतिक शिक्षा का ज्ञान
वो दिन कब लौटेंगे ,है अनजान
स्कूल तो गए हैं खुल
रौनकें मगर है गुल
वो बच्चों का चहचहाना
वो मेरा एक को बुलाना
वो उन सबका दौड़े आना
वो उनका हर बात में जी मैडम कहना
वो आज सूना पड़ा है स्कूल का हर कोना
स्कूल तो गए हैं खुल
रौनकें मगर है गुल
हे ईश्वर जल्द खत्म हो यह महामारी
गूंज उठे बच्चों का कलरव मनोहारी
विद्या का मंदिर बिन बच्चों है अधूरा
जल्द ही हो खुशहाली, कामना है बस यही पूरी
स्कूल तो गए हैं खुल
रौनकें मगर है गुल
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रेखा रानी
ब्लॉक मंत्री, प्राशिसं गजरौला।
विश्वास का दामन थामकर रखना,
जब चटकी है कली कोई ,
तो गुल बन महकेगी अवश्य।
अन्तिम सांस तक बुन डोरी आस की।
बस तू उस आस की डोरी को थामकर रखना।
आज गुल हैं गुल भले ही चमन से,
मगर माली सींच तो रहा है यत्न से।
बेमौसम की आंधी में
उम्मीदों के दीए सम्भाल कर रखना।
जहां सेनेटाइजर की महक थी फिजाओं में,
धीरे -धीरे सौंधी सी किताबों की महक का असर है।
चहुं ओर खाद्यान्न वितरण ,
ड्रेस के कुटेशन टेंडर का जिक्र है।
बस जल्द ही उगेगा रुपहला सूरज ,
तू दिल में उजाला सहेजकर रखना।
रेखा राष्ट्र निर्माता सृजन रत है,
जग उन्नति की तू राह तकना।
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सीमा रानी
प्रधानाध्यापिका ईएमपीएस पचोकरा
जोया।
मन की व्यथा
जब बढ जाती है
तो सोचना पड़ता है
ये खोखले रिश्ते
ये दोगले नाते
इन्हें बेमन से
ढोना पड़ता है
मन की व्यथा
जब बढ जाती है
तो सोचना पड़ता है
आँखों की नमी छिपाकर
चेहरे पर मुस्कान चढाकर
दिल में दर्द को दबाकर
जग से कदम मिलाकर
हँसकर चलना पड़ता है
मन की व्यथा
जब बढ जाती है
तो सोचना पड़ता है द्य
सच बता नहीं सकते
झूठ छिपा नहीं सकते
खुलकर रो नहीं सकते
बस चुप रहना पड़ता है
मन की व्यथा
जब बढ जाती है
तो सोचना पड़ता है
सच बता दिया तो
दुनिया गिरा देगी
झूठ छिपा लिया
तो चोट हिला देगी
चुप चलना पड़ता है
मन की व्यथा
जब बढ जाती है
तो सोचना पड़ता है,
मन की व्यथा
जब बढ जाती है
तो सोचना पड़ता है