डाॅ. दीपक अग्रवाल
अमरोहा/उत्तर प्रदेश (सनशाइन न्यूज)
सनशाइन न्यूज का सनशाइन मंच शिक्षकों के भीतर छिपी लेखन प्रतिभा को उभारने का मौका प्रदान करने के लिए बनाया गया है। पेश हैं शिक्षक शिवम के महिलाओं की समाज में स्थिति पर विचारः
कहते हैं कि एक शिक्षित महिला सात पीढ़ियां सुधार सकती है। फिर क्यों यह समाज महिला शिक्षा को एक पंगु विषय मानकर चला है। समय के साथ महिला की शिक्षा में भागीदारी तो बढ़ी है किंतु उनकी स्वतंत्रता तथा उसका समाज में प्रतिनिधित्व अब भी पहरे में ही है।
क्या अवसर की समानता यथार्थ है? अवसर की समानता विषय को तो यह समाज धर्म तथा जातियों के बंधन,लैंगिक भेद आदि में जकड़ कर बैठा है तथा वहीं तक ही सीमित किए हुए हैं। इसका आरंभ यदि हम लोकतंत्र के मंदिर से ही करें, जहां आधी आबादी का प्रतिनिधित्व आधा होना चाहिए। वह भी चंद सीटों तक ही सीमित कर रह जाता है। उनमें भी अधिकांश राजनीतिक परिवारों की प्रतिनिधि होती हैं,जो स्वयं में मर्यादाओं के मकड़जाल में जकड़ी होती हैं।
हम अक्सर वार्तालाप में समाज के पिछड़ेपन की चर्चा करते हैं और चर्चा करते हुए राजनीति को दोष देते हैं। किंतु क्या कभी इस पिछड़ेपन की जड़ तक देखने की कोशिश की गई? अगर नींव मजबूत न हो, तो क्या भवन, क्या देश मजबूत भविष्य संशयमय ही होता है। किंतु क्या यह मजबूत भविष्य पितृसत्ता के रास्ते से ही प्राप्त हो सकता है?
यदि इन समस्याओं के समाधान तलाशने का प्रयास किया जाए तो शायद पितृसत्ता को अपनी सत्ता गंवाने का भय है। महिला को उसके जीवन के आरंभ से ही यह बोध करा देना कि उसका जन्म मात्र परिवारआगे बढ़ाने, रसोई तक ही सीमित हैयकहां का न्याय है। किंतु पितृसत्ता की जीत तब हो जाती है जब परिवार की बुजुर्ग महिलाएं भी बच्चियों के हौसलों के पर काटने का प्रयास करती हैं। 21वीं सदी में यह समझना अत्यंत आवश्यक है कि यदि आधी आबादी को उनका सम्मान उचित मात्रा में नहीं दिया गया, तो जिस विकास की आशा हम राजनीति के माध्यम से कर रहे हैं वह एक दिवास्वप्न बनकर ही सीमित रह जाएगा। महिला को तर्कशील बनाना होगा। समाज को एक मत में होकर उनका मत भी स्वीकार करना होगा। तभी वह हर स्वप्न पूरा होगा जो समाज के मार्ग से विकास की राह पर जाता है।
शिवम कुमार पाराशर
सहायक अध्यापक
प्राथमिक विद्यालय रामपुर तगा प्रथम
विकास क्षेत्र धनौरा
जिला अमरोहा।