डाॅ. दीपक अग्रवाल की विशेष वार्ता
देहरादून/अमरोहा (सनशाइन न्यूज)
उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय देहरादून के कुलपति प्रोफेसर डाॅ. सुनील कुमार जोशी ने मर्म चिकित्सा की खोज कर उसे स्थापित करने मंे तीस साल व्यतीत कर दिए हैं। उनके अभिनव प्रयोग अभी जारी हैं और कुछ नया करने के लिए प्रयत्नशील हैं। उन्होंने अपने शरीर को ही प्रयोगशाला बनाकर मर्म चिकित्सा को मानव कल्याण के लिए स्थापित करने का अद्भुत और असाधारण कार्य किया है। प्रयोग के दौरान एक मर्म उन्हें घाव भी दे गया है जो उनके दाहिने हाथ पर मौजूद है।
मर्म विज्ञान और मर्म चिकित्सा के रहस्य जानने के लिए सन शाइन न्यूज के संपादक डाॅ. दीपक अग्रवाल ने 12 फरवरी को देहरादून के हर्रावाला में स्थित उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलपति सरल और सहज व्यक्तित्व के धनी मर्म चिकित्सा के मूर्धन्य विद्वान डाॅ. सुनील कुमार जोशी से विस्तार से वार्ता की। प्रस्तुत हैं वार्ता के प्रमुख अंशः
दादा लीलाधर महान क्रांतिकारी
डाॅ. सुनील कुमार जोशी का जन्म हरिद्वार में 15 अगस्त 1958 को हुआ। उनके पिता स्व. दुर्गादत्त जोशी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे और माता का नाम श्रीमती भारती जोशी है। उन्होंने बताया कि उनके दादा पंडित लीलाधर जोशी भी आजादी के दीवाने थे और महान क्रांतिकारी थे अंग्रेजों ने उन्हें जिंदा या मुर्दा पकड़ने पर इनाम घोषित किया था। वह 1920 से गायब है। उस समय उनके पिताजी महज 6 साल के थे। डाॅ. जोशी ने बताया कि उनके नाना स्व. कविराज हरिदत्त जोशी ़ऋषिकुल आयुर्वेदिक कालेज में प्राचार्य थे और 1962 में सेवानिवृत्त हुए थे।
डाॅ. जोशी जुलाई 2020 से कुलपति
उन्होंने 1981 में राजकीय आयुर्वेदिक कालेज ऋषिकुल से और पीजी शल्य चिकित्सा में चिकित्सा विज्ञान संस्थान बनारस से 1986 मंे किया। 1986 को उत्तर प्रदेश राजकीय सेवा में चिकित्सा अधिकारी आयुर्वेद के पद पर रायबरेली मंे नियुक्ति मिली। 1987 से 1990 तक राजकीय आयुर्वेदिक कालेज ऋषिकुल से संबद्ध रहे। उसके बाद गुरुकुल कांगड़ी राजकीय आयुर्वेदिक कालेज से भी संबद्ध रहे। फिर यहीं पर 20 अप्रैल 1993 को प्रवक्ता पद पर चयन हो गया। उसके बाद रीडर, प्रोफेसर और डीन रहे। 2017 में राजकीय आयुर्वेदिक कालेज ऋषिकुल के निदेशक बने। 12 सितंबर 2019 से 11 मार्च 2020 तक उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय देहरादून के कुलपति रहे। उसके बाद 14 जुलाई 2020 से पुनः विश्वविद्यालय के कुलपति के दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं। करीब डेढ़ माह उन पर दून विश्वविद्यालय के कुलपति का दायित्व भी रहा। उनकी पत्नी डाॅ. मृदुल जोशी गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय में हिंदी की एसोसिएट प्रोफेसर हैं। पु़त्र डाॅ. प्रांजल जोशी ने एमबीबीएस कर लिया और पीजी के लिए तैयारी कर रहे हैं।
स्वामी निगमानंद से मिली प्रेरणा
डाॅ. जोशी ने बताया कि 1991 में गंगोत्री के पास भूंकप आया। इस भूकंप में सैकड़ों व्यक्ति मर गए और हजारों घायल हो गए। 20 अक्टूबर 1991 को वह अपनी टीम के साथ घायलों के उपचार के लिए गए। जब उनकी टीम लौट रही थी तो उत्तरकाशी में भट्टवाड़ी से पहले मल्ला स्थान पर एक आश्रम में स्वामी निगमानंद जी महाराज मिले। वह भी लोगांे की सेवा करते थे। उन्होंने उपहार स्वरूप डाॅ. जोशी को ओरियंटल मेडिसिन की एक पुस्तक दी। हरिद्वार आकर पुस्तक को पढ़ा तो कुछ नया करने की प्रेरणा मिली।
नहीं मिली मर्मों से उपचार की जानकारी
उन्होंने बताया कि मेडिकल की पढ़ाई के दौरान भी मर्मों के बारे में पढ़ा था लेकिन बहुत कुछ समझ नहीं आया। सर्जरी के दौरान मर्म बिंदुओं को बचाने की बात की गई। लेकिन इनका चिकित्सीय रूप में उपयोग कहीं नहीं मिला। रूद्राभिषेक पूजा के दौरान मर्म कवच/मर्म आच्छादन की जानकारी तो मिली।
वैदिक साहित्य में ओरियंटल मेडिसिन की उत्पत्ति के बारे में खोजना शुरू किया। सुश्रुत संहिता के अलावा अन्य गं्रथों में मर्म विज्ञान का गहन अध्ययन किया। उन्होंने बताया कि अपने आध्यात्मिक गुरु ब्रहमलीन स्वामी निगमानंद पुरी जी महाराज के आशीर्वाद और ईश्वर की कृपा से मर्मों का उपचार के लिए प्रयोग शुरू किया।
निगमानंद जी महाराज मृत्युंजय मिशन के माध्यम से सेवा करते थे और 2007 को उनके ब्रहमलीन होने के बाद वह मिशन के अध्यक्ष के रूप में सेवा कार्य कर रहे हैं।
सुश्रुत संहिता में 107 मर्म स्थानों का उल्लेख
डाॅ. जोशी ने बताया कि सुश्रुत संहिता में 107 मर्म स्थानों का उल्लेख है। मारयन्तीति मर्माणि यानि शरीर के वे विशिष्ट भाग जिन पर आघात करने या चोट लगने से मृत्यु संभव है उन्हें मर्म कहा जाता है। यह प्राण का केंद्र यानि जीवनी ऊर्जा का केंद्र हैं। इन पर आघात होने पर व्यक्ति तुरंत भी मर सकता है और कुछ समय बाद भी मर सकता है और कोई विकृति भी पैदा हो सकती है। इसीलिए मर्मों की रक्षा करनी चाहिए। आचार्य सुश्रुत ने मर्म बिंदुआंे का वर्गीकरण तो किया लेकिन इनका चिकित्सा में उपयोग नहीं बताया। आयुर्वेद के साहित्य में भी कहीं भी चिकित्सा में मर्मों के उपयोग का उल्लेख नहीं किया गया है। मर्म बिंदुआंे पर आघात से अपंगता आ जाती है और मृत्यु भी हो जाती है। मर्मों के दुरुपयोेग के कारण इनका ज्ञान छिपा कर रखा गया और समय के साथ साथ लुप्त हो गया।
आज भी डाॅ. जोशी मर्म चिकित्सा के छात्र
उन्होंने बताया कि शोध करने पर यह साबित हुआ कि यदि मर्म स्थानों पर समुचित चिकित्सा क्रियाविधि का उपयोग किया जाए तो शरीर को निरोगी और चिरायु बनाया जा सकता है। इस दिशा में अभी प्रयोग जारी हैं। डाॅ. जोशी ने बताया कि वह मर्मों के चिकित्सीय उपचार पर 30 साल से काम कर रहे हैं और अच्छी सफलता मिली है। तमाम पोलियो ग्रसितों और पैरालाइसेस के मरीजों को आश्चर्यजनक लाभ मिला है। एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने बताया कि वह आज भी स्वयं को मर्म चिकित्सा का छात्र मानते हैं।
स्वमर्म चिकित्सा बड़ी सफलता
उनका मानना है कि मर्म चिकित्सा का प्रभाव भी और दुष्प्रभाव भी दवा की अपेक्षा कई गुना ज्यादा होता है। उन्होंने देश और विदेश में तमाम असाध्य रोगों से ग्रसित मरीजों को ठीक किया है। उन्होंने बताया कि मर्मों को उपचारित करने की विधि जानकर कोई भी व्यक्ति स्वमर्म चिकित्सा के माध्यम से अपना और दूसरों का इलाज कर सकता है। वह मरीजांे को मर्म चिकित्सा सिखा देते हैं जिससे मरीज स्व अपना उपचार कर लेते हैं।
विदेशों में बजाया मर्म चिकित्सा का डंका
डाॅ. जोशी ने देश के अलावा जापान, नीदरलैंड, पोलैंड, बैंकाक, मारीशस, हटीको समेत अन्य कई देशों में कैंप लगाकर लोगों को मर्म चिकित्सा का ज्ञान दिया है और मरीजों का उपचार किया है।
उन्होंने बताया कि मारीशस के रामायण भवन में मर्म चिकित्सा शिविर का आयोजन किया गया था वहां एक व्यक्ति के पैर पोलियो से ग्रस्ति थे और वह चल नहीं पाता था। उन्होंने उपचारित कर चला दिया था। तब सभी बहुत आश्चर्यचिकत हुए। उन्होंने बताया कि यह कोई जादू नहीं बल्कि विज्ञान सम्यक चिकित्सा पद्धति है। इसका परिमाप, आकार और आवृत्ति सभी को निश्चित किया है। मर्म चिकित्सा को सुबह 5 से 7 बजे, दोपहर 12 से 2 बजे और सांय 5 से 7 बजे करने पर बेहतर रिजल्ट मिलते हैं।
कई पाठ्यक्रमों में मर्म चिकित्सा शामिल
डाॅ. जोशी ने बताया कि उन्होंने तमाम नान मेडिकल और मेडिकल लोगों को मर्म चिकित्सा का ज्ञान देकर जनसेवा के लिए तैयार किया है। विभिन्न विश्वविद्यालयों के योग के पाठ्यक्रम में मर्म चिकित्सा को शामिल किया गया है। भारतीय विद्या भवन के ज्योतिष अलंकार और ज्योतिष आचार्य पाठ्यक्रम, गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार के एमएससी योग, देव संस्कृृति विश्वविद्यालय हरिद्वार के योग व पंचकर्म के पाठ्यक्रम में भी मर्म चिकित्सा को शामिल किया गया है। इसके अलावा सीसीआरएएस और राष्ट्रीय आयुर्वेद विद्यापीठ के मायध्म से भी मर्म चिकित्सा को लेकर कार्ययोजना तैयार की जा रही है।
उन्होंने बताया कि उत्तराखंड के आयुष मेडिकल आफिसरों को मर्म विज्ञान और चिकित्सा का ज्ञान देकर मास्टर ट्रेनर बनाया गया है। इसके अलावा आयुष विभाग के तहत गुजरात, पंजाब और हरियाणा के मेडिकल आफिसरों को भी मर्म चिकित्सा का ज्ञान दिया गया है।
मर्म चिकित्सा पर डाॅ. सुनील जोशी की 6 पुस्तकें
गौरतलब है कि मर्म चिकित्सा को स्थापित करने में अतुलनीय योगदान करने वाले डाॅ. जोशी का स्वयं को मर्म चिकित्सा का छात्र कहना उनके बड़प्पन को दर्शाता है। निःसंदेह वह मर्म चिकित्सा के मूर्धन्य विद्वान और चिकित्सक हैं। मर्म विज्ञान और मर्म चिकित्सा विषय पर डाॅ. जोशी की 6 पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है देश और विदेश के रिसर्च जर्नलों में रिसर्च पेपर और लेखों का प्रकाशन हुआ।
आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि मर्म चिकित्सा की जिस मशाल को डाॅ. जोशी ने प्रज्ज्वलित किया है उससे देश का चिकित्सीय परिदृश्य ही नहीं बदलेगा अपितु मर्म चिकित्सा के क्षेत्र में भारत विश्व का सिरमौर बनेगा। आमजन को असाध्य रोगों से मुक्ति मिलेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वस्थ भारत का सपना साकार होगा।