डाॅ. दीपक अग्रवाल की विशेष वार्ता
देहरादून/अमरोहा (सनशाइन न्यूज)
उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय देहरादून के गुरुकुल कैंपस हरिद्वार के एसोसिएट प्रोफेसर और मर्म चिकित्सा के ख्यातिलब्द्ध विशेषज्ञ डाॅ. शिशिर प्रसाद ने बताया कि सीसीआरएएस (केंद्रीय आयुर्वेदीय विज्ञान अनुसंधान परिषद नई दिल्ली) की ओर से मर्म चिकित्सा का सर्वमान्य प्रोटोकाल तैयार कराने की कवायद शुरू कर दी है। इसके लिए परिषद के निदेशक प्रोफेसर केएस धीमान के निर्देशन में देशभर के 18 विद्वानों की टीम बनाई गई। इस टीम में उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय देहरादून के कुलपति डाॅ. सुनील कुमार जोशी और डाॅ. शिशिर प्रसाद भी शामिल हैं।
सन शाइन न्यूज के एडिटर डाॅ. दीपक अग्रवाल ने मर्म चिकित्सा के महत्व विषय को लेकर डाॅ. शिशिर प्रसाद से देहरादून जागृति विहार में स्थित उनके आवास पर विस्तार से बात की। पेश हैं वार्ता के प्रमुख अंशः
डाॅ. शिशिर प्रसाद ने वर्ष 2003 में बीएएमएस राजकीय आयुर्वेदिक कालेज पटना से किया। पीजी शल्यतंत्र में राजीव गांधी राजकीय आयुर्वेदिक कालेज परौला कांगड़ा हिमाचल प्रदेश से 2008 में किया। वह उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय देहरादून के गुरुकुल कैंपस हरिद्वार में एसोसिएट प्रोफेसर हैं और उनकी पत्नी डाॅ. रेनू प्रसाद भी ऋषिकुल कैंपस हरिद्वार में एसोसिएट प्रोफेसर हैं।
उन्होंने बताया कि मर्म चिकित्सा के मूर्धन्य विद्वान उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय देहरादून के कुलपति डाॅ. सुनील कुमार जोशी जी का मागदर्शन मिलता रहता है। वैसे मेडिकल की पढ़ाई के दौरान भी मर्माें का ज्ञान प्राप्त किया। डाॅ. अनिल दत्त से पेन मैनेजमैंट की बारीकियां जानी।
मर्म बिंदुओं की पहचान जरूरी
उन्होंने बताया कि मर्म चिकित्सा में रोग के अुनसार मर्म को उत्प्रेरित करना पड़ता है। मानव के शरीर में 107 मर्म स्थान हैं। मर्म बिंदुओं की पहचान कर वहां दबाव की तकनीकि से उत्प्रेरण करना होता है। अंगुठे और अंगुलियों से मर्म बिंदुओं को प्रेस और रिलीज करना होता है। न तो प्रेशर बहुत अधिक होना चाहिए और न बहुत हल्का। सामान्य प्रेशर का प्रयोग करना चाहिए। श्वास छोड़ने पर मर्म बिंदु को दबाना चाहिए और श्वास लेने पर दवाब छोड़ना चाहिए।
डाॅ. प्रसाद ने बताया कि पहले मरीज का परीक्षण करना जरूरी होता कि बीमारी के कारण क्या हैं। उसके बाद मर्म बिंदुओं को तय कर इलाज किया जाता है। मर्म चिकित्सा का उपयोग दवाई के साथ भी किया जा सकता है। मरीज के परीक्षण के बाद ही यह तय किया जा सकता है कि उसे केवल मर्म चिकित्सा से लाभ मिल जाएगा या दवा की जरूरत भी है।
विदेश में मर्म चिकित्सा का प्रचार
उन्होंने बताया कि सरवाईकल, फ्रोजन सोल्डर, साइटिका जैसी बीमारियों में मरीज को मर्म चिकित्सा से पहली सीटिंग में ही आराम शुरू हो जाता है। उन्होंने बताया कि देश में कई स्थानों पर शिविरों का आयोजन कर मरीजों की मर्म चिकित्सा की और इसकी ट्रेनिंग भी दी। कई राज्यों में शासन की ओर से आयोजित कार्यक्रमों में सरकारी अफसरों और मेडिकल अफसरों को भी मर्म चिकित्सा के उपचार की टेªनिंग दी है। इसके अलावा इजरायल, पौलेंड, स्पेन, इटली, जर्मनी, यूएस, सिंगापुर, ब्राजील, यूएसए आदि देशों में भी मर्म चिकित्सा की ट्रेनिंग दी।
फिजियोथ्रेरपिस्टों को भी मर्म चिकित्सा सिखलाई
उन्होंने बताया कि फिजियोथ्रेरपिस्टों को भी मर्म चिकित्सा सिखलाई। अब उनसे फीडबैक मिलता है कि फिजियोथैरपी के साथ-साथ मर्म बिंदुओं को उत्प्रेरित करने पर बहुत अच्छे रिजल्ट मिलते हैं। उन्होंने बताया कि नेत्र रोगांे में भी मर्म चिकित्सा के आश्चर्यजनक रिजल्ट मिले हैं।
डाॅ. प्रसाद ने बताया कि सीसीआरएएस नई दिल्ली के निदेशक प्रोफेसर केएस धीमान के निर्देशन में 18 चिकित्सकों की टीम का गठन किया गया है। इस टीम में दक्षिण भारत, उत्तरी भारत के मर्म चिकित्सा विद्वानों के अलावा अन्य विद्वानों को शामिल किया गया है। इस टीम में डाॅ. सुनील कुमार जोशी और वह भी शामिल है। इस टीम का काम मर्म चिकित्सा के सर्वमान्य प्रोटोकाल तैयार करना है।