डाॅ. दीपक अग्रवाल
अमरोहा/उत्तर प्रदेश (सनशाइन न्यूज)
पर्यावरण जीवन का आधार है और आधार से छेड़खानी पूरी ईमारत को हिलाती ही नहीं है बल्कि नास्तेनबूत भी कर देती है।
हालांकि पूंजीवाद ने सुविधाएं दी है जिस से समय रहते पर्यावरण आपदाओं की सूचना मिल जाती है समय रहते आपदाओं से नुकसान को कम भी किया जा सकता है लेकिन पर्यावरण आपदाओं का असली कारण भी तो असन्तुलित पूंजीवादी सोच ही रही है।
हालांकि हमारा दृष्टिकोण ये भी कह सकता है कि कल हुई आपदा कोई अंतिम आपदा नहीं है। अगर दूरगामी प्रभाव देखे तो इस तरह की आपदा और अधिक होती जाएगी यहाँ तक कि मानव सभ्यता को भी समाप्त कर देगी। ये दृष्टिकोण निराशावादी दृष्टिकोण नहीं है बल्कि ये एक चेतावनी है एक कड़वी सच्चाई है एक खतरों का संकेत है।
हाँ इस खतरे से इनकार नहीं किया जा सकता किंतु इससे भयभीत होने की अपेक्षा इसको समाप्त या कम करने की आवश्यकता है और इसी तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए वर्तमान में जिस विचारधारा पर कार्य होना चाहिए वो है – पर्यावरण प्रबंधन
उचित प्रबंध जिससे पर्यावरण अधिक से अधिक मानवोपयोगी हो तथा कम से कम प्रदूषित हो और पारिस्थितिक चक्र सदैव चलता रहे ।
हम केदारनाथ को भूल नहीं थे कि चमौली के रैणि गाँव से हुए हिमस्खलन के बाद उत्तराखण्ड में एक बार फिर से तबाही का मंजर है। सैंकड़ो लोगांे की जान जा चुकी है , रेस्क्यू अभियान लगातार जारी हैं।
हिमालय के इस क्षेत्र में सैकड़ों ग्लेशियर बताए जाते हैं और कुछ ग्लेशियर झीलें भी है, जो वक्त के साथ बनती बिगड़ती रहती है। हाल ही में धरती पर तापमान की वृद्धि के कारण ग्लेशियरों का पिघलना शुरू हुआ है और बहुत सारी नई झीले बनी है। तो कल आई बाढ़ के पीछे के कारण में यह संभव है कि ऐसे कोई झील में जलभराव का जलस्तर बढ़ा हो और पानी अपने अवरोध को तोड़कर आगे बढ़ गया हो जब इस तरह कोई पानी आगे बढ़ता है तो वह भीषण तबाही मचाता है।
बाकी कसर नदियों के रास्ते में लगे पावर प्लांट और दूसरी योजनाएं पूरी कर देती है जो नदियों के रास्ते में अवरोध पैदा करती है ऐसे में जब भारी मात्रा में पानी पीछे से आता है तो इस तरह के सारी अवरोध को तोड़ देता है और नदी के रास्ते में आने वाले और आसपास के सब इलाकों का सफाया कर देता है।
यह अंतिम आपदा नहीं है अगर हमने धरती के बढ़ते तापमान को कंट्रोल नहीं किया तो भविष्य में इससे भी बड़ी और डरावनी घटनाएं होगी।
दुनिया में औद्योगिक क्रांति के बाद से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड में 47 फीसदी की वृद्धि हुई है जिससे धरती के औसत तापमान में लगभग 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो गई है।
अगर अब मानव जाति ने इस पर काम नहीं किया तो यह धरती इंसान और बाकी जीवों के रहने के लायक नहीं रह जाएगी अगर कार्बन उत्सर्जन इसी तरह बढ़ता रहा तो आने वाले वक्त में सामान्य से ज्यादा बारिश,मैदानी इलाकों में बाढ़, तटीय इलाकों का डूब जाना, और उष्णकटिबंधीय इलाकों में गर्म हवाओं का चलना इस धरती पर जीवन की सभी संभावनाओं को खत्म कर देंगे।
उत्तराखंड में आई कल की भीषण तबाही से हमें और हमारी सरकार को तात्कालिक प्रभाव से सीख लेने की जरूरत है, हमें बिना देर किए से कदम उठाने होंगे जिससे हम सुनिश्चित कर सके कि भविष्य में ऐसी तबाही ना हो।
जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर काम कर रही संस्था स्टैंड विद नेचर के संयोजक लोकेश भिवानी ने इसपर दुःख जताते हुए कहा कि इस तरह की आपदाओं से हर साल हजारों लोग अकाल मृत्यु का शिकार हो रहें है , इसके कारण भी मानव जनित ही है , अगर हम केदारनाथ को याद करें तो उस घटना के बाद एक कमेटी गठित हुई थी जिसे उत्तराखंड में नए पावर प्लांट व इस तरह के उद्योगों पर एक रिपोर्ट पेश करनी थी जो प्राकृतिक संसाधनों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर हानि पहुँचा रहे थे , उत्तराखंड में सैंकड़ो बिजली प्रॉजेक्ट ऐसे है जिनसे वहाँ की जलवायु सीधे तौर पर बड़ी तेजी से प्रभावित हुई है। आजतक सरकारों की तरफ से ना इसपर कोई रिपोर्ट आई है और ना ही लोगो ने दोबारा इसपर जानने की कोशिश की , हमें सब तब ही याद आता है जब नुकसान हो जाता है।
महात्मा गांधी कहते थे – प्रकृति अपने हर जीव की जरूरत पूरी कर सकती है , लेकिन हवश की पूर्ति सम्भव नहीं।
जितनी तेजी से हम अपने प्राकृतिक संसाधनों का क्षरण कर रहे है हमें आने वाले समय में इससे भी भीषण विपदाओं का सामना करने के लिए तैयार रहना पड़ेगा ।
जलवायु परिवर्तन पर ध्यान देना ही एकमात्र विकल्प है । हमें समय रहते खराब हो चुकी व्यवस्थाओ को ठीक करना होगा ।
हम याद करें 2004 में आई सुनामी को जिसमे लगभग 14 देशो के 4 लाख से ज्यादा लोग मृत्यु के शिकार हुए थे।
2014 में झेलम नदी का पानी एकाएक इतना बढ़ गया कि कश्मीर में सैंकड़ो लोग बाढ़ से हताहत हुए।
2007 में बिहार में जो बाढ़ आई उसका कारण भी 30 साल के मासिक औसत से 5 गुना ज्यादा बारिश का होना था। इससे 10 मिलियन लोग प्रभावित हुए थे,
दुनिया की भी बात करें तो पिछले 5 साल में ही दुनिया को 200 साल में आई आपदाओं से भी ज्यादा आपदाओं का सामना करना पड़ा है। इनका सीधा कारण है जलवायु का तेजी से परिवर्तित होना और ये सभी कारण मानव जनित है ।
उत्तराखण्ड में हुई इस त्रासदी की जिम्मेदारी सीधे तौर पर पॉवर प्लांट लगाने वाली कम्पनियों व इन्हें अनुमति देने वाली सरकार के साथ हमारी भी है।
विकास निश्चित तौर पर मानव जाति की जरूरत है लेकिन इसमें अंधापन और प्रकृति को नजरअंदाज करने का रवैया नही होना चाहिए।
लोगो को चाहिए कि जलवायु परिवर्तन के विषय पर उचित जानकारी लें व उसपर काम करें। पैसे कमाने की अंधी दौड़ में पर्यावरण को नुकसान न पहुँचाएं इसके परिणाम गम्भीर होंगे।