डाॅ. दीपक अग्रवाल
लखनऊ/अमरोहा/उत्तर प्रदेश (सनशाइन न्यूज)
बेसिक शिक्षा से जुडे़ शिक्षक संगठनों में पंचायत चुनाव के बाद कोरोना की चपेट में आकर काल का ग्रास बने शिक्षकों को मुआवजे को लेकर तकरार देखने को मिल रही है। यह समय तकरार का नहीं एकजुटता का है।
मुझे दो दशक से अधिक समय की प्राथमिक शिक्षक संघ के कद्दावर नेता अभिमन्यु तिवारी की ऋषिकेश/बिजनौर में आयोजित सम्मेलन की वह बाते याद आ रही हैं जब उन्होंने कहा था कि हमारे पास क्या है जो सरकार हिल जाती हैं केवल शिक्षकों की एकजुटता की ताकत। जब तक सभी एक जुट हैं सरकार हमारी बात सुनेगी और मानेगी। कुछ इस तरह का ही विचार माध्यमिक शिक्षक संघ के कद्दावर नेता पंचानन राय ने व्यक्त किए थे। मैंने लखनऊ और इलाहाबाद में इन दोनों नेताओं का जलवा देखा है। दोनों का वजूद ऐसा था कि मंत्री और सचिव इनके पहुंचने पर खड़े होकर सम्मान देते थे।
जब शिक्षक संगठनों ने एकजुट होकर आवाज बुलंद की तो पंचायत चुनाव के बाद कोरोना की चपेट में आकर काल का ग्रास बने शिक्षकों व कर्मचारियों को सरकार नियम बदल कर नौकरी व मुआवजा देने के लिए तैयार हुई।
लेकिन तीन चार दिन से शिक्षक संगठनों में वेतन से कटौती कर काल का ग्रास बने शिक्षकों के परिजनों को अनुदान देने के मुददे पर टकराव नजर आ रहा है। यह उचित प्रतीत नहीं होता है। इससे पीड़ित शिक्षकों के परिजनों को क्या संदेश मिलेगा। विभिन्न शिक्षक संगठनों के पदाधिकारी मेरे भी मित्र हैं। मेरी मंशा हमेशा यही रही है शिक्षकों की समस्या का समाधान हो और शिक्षक संगठन आपसे मंे टकराव से बचे।
कोई भी निर्णय सभी संगठनों को साथ लेकर करना उचित होगा। यह समय किसी को नीचा दिखाने और राजनीति करने का नहीं हैं। नियमांे के दयारे में रहकर अपनी मांग को रखना अनुचित भी नहीं है।