डॉ. दीपक अग्रवाल
अमरोहा/उत्तर प्रदेश (सनशाइन न्यूज)
श्रावणी पूर्णिमा का दिन प्राचीन काल से ही भारतीय शिक्षा क्षेत्र में महत्वपूर्ण रहा है । गुरुकुलीय शिक्षा में शैक्षिक सत्र का शुभारंभ इसी दिन से होता है । नवागत विद्यार्थियों का आचार्य उपनयन संस्कार जनेऊ संस्कार करके पठन-पाठन प्रारंभ करते थे। आज भी गुरुकुलों में यह परंपरा कहीं-कहीं आंशिक परिवर्तनों के साथ और कहीं-कहीं यथावत प्रचलन में है इसी संस्कार से द्विजत्व का मार्ग प्रशस्त होता है।
श्रावण पूर्णिमा/संस्कृत दिवस
श्रावण पूर्णिमा के दिन को संस्कृत दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत 1969 ईस्वी में हुई। इस अवसर पर विभिन्न शोध संगोष्ठियां, प्रतियोगिताएं एवं अन्य शैक्षिक कार्यक्रम संस्कृत के प्रचार प्रसार हेतु किए जाते हैं।आयोजनों का यह क्रम सप्ताह भर चलता है और शिक्षण संस्थानों में आधिकारिक रूप से प्रतिवर्ष संस्कृत सप्ताह आयोजन किया जाता है ।
संस्कृत भारोपीय परिवार की भाषाओं में प्रमुख एवं भाषाओं की जननी है । भारत का प्राचीन वांगमय संस्कृत में ही उपलब्ध है। अध्यात्म विज्ञान, दर्शन, चिकित्सा, आयुर्वेद,वास्तुशास्त्र, धर्मशास्त्र आदि का विपुल साहित्य संस्कृत भाषा में ही है। चरक सुश्रुत का आयुर्वेद, आर्यभट्ट, वराहमिहिर और भास्कराचार्य का गणित व खगोल विज्ञान, पाणिनि, कात्यायन एवं पतंजलि की भाषा और व्याकरण, कपिल का तत्वज्ञान, कणाद का परमाणु विज्ञान, मनु, याज्ञवल्क्य और वशिष्ठ आदि ऋषियों की स्मृतियों एवं भारतीय इतिहास व पुरातात्विक सामग्री का ज्ञान संस्कृत के बिना असंभव है। भारत के अतीत का दर्शन संस्कृत के अभाव में नहीं हो सकता और ना केवल प्राचीन भारतीय ज्ञान अपितु आधुनिक युगीन आवश्यकताओं की प्रतिपूर्ति भी संस्कृत से संभव है। जब इसे नासा ने अंतरिक्ष में संदेश प्रेषण हेतु तथा कंप्यूटर प्रोग्रामिंग की सर्वाधिक उपयोगी भाषा स्वीकार किया हो तब इसे जन-जन पहुंचाने में संस्कृतज्ञों की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है।
इसका निर्वहन पौरस्त्य ही नहीं विलियम्स जोन्स के प्रयासों के बाद अनेक पाश्चात्य विद्वानों ने भी किया है। किंतु आज जनमानस का इसके प्रति रुझान अत्यंत
शोचनीय है।
संस्कृत भाषा 22वें पायदान
2011 की गणना के अनुसार संस्कृत भाषा 22वें पायदान पर रही है। यद्यपि दुनियां के लगभग २५० से अधिक और अकेले जर्मनी के १४ से अधिक विश्वविद्यालयों में संस्कृत का पठन पाठन हो रहा है। भारत में तीन केन्द्रीय और १५ राज्यों के संस्कृत विश्वविद्यालय पूर्णतया संस्कृत के विकास हेतु कृत-संकल्प हैं। १२० अन्य विश्वविद्यालय, १००० पारम्परिक संस्कृत विद्यालय, १० संस्कृत अकादमी, १६ ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट्स, लगभग पांच लाख से अधिक संस्कृत शिक्षक और शताधिक गैर सरकारी संस्थायें संस्कृत को समृद्ध करने में प्रयासरत हैं । फिर भी विश्वविद्यालयों में निरंतर संस्कृत विषय की छात्रों की घटती संख्या चिंतनीय है । हमें संस्कृत को कूप जल नहीं,बहता नीर बनाना होगा। जिससे जनसामान्य लाभान्वित हो सके।
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में किए गए कुछ प्रावधान संस्कृत के उत्थान में ही नहीं आठवीं अनुसूची में उल्लिखित अन्य भारतीय भाषाओं के विकास में भी महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकते हैं। जैसे सर्वप्रथम प्राथमिक शिक्षा ही मातृभाषा में होगी त्रिभाषा सूत्र में कहा गया है कि इसमें 2 भाषाएं भारतीय होंगी यहां संस्कृत भी विकल्प होगा । उच्चतर कक्षाओं में भी छात्र एक विषय के रूप में संस्कृत ले सकते हैं । संस्कृत शिक्षण के संबंध में मुख्य बात यह है कि संस्कृत शिक्षण संस्कृत माध्यम में ही होगा इससे प्राथमिक से उच्च कक्षा तक संस्कृत शिक्षकों की आवश्यकता होगी और संस्कृतज्ञों के रोजगार के द्वार भी खुलेंगे। इसमें विविध विधाओं में विस्तृत साहित्य और इसके सांस्कृतिक व वैज्ञानिक महत्व को दृष्टिगत रखते हुए संस्कृत को संस्कृत पाठशाला से बाहर लाकर मुख्यधारा में जोड़ने का प्रयास किया जाएगा।
तीन केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय
तीन केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय का निर्माण भी इस दिशा में उल्लेखनीय प्रयास कहा जा सकता है । आधुनिक समय में प्रासंगिक विज्ञान , गणित, खगोल, दर्शन तथा योग आदि के साथ संस्कृत को जोड़ा जाएगा ऐसी अंतरविषयी व्यवस्था बनने से विज्ञान, तकनीकी, वाणिज्य आदि संकायों के छात्र भी संस्कृत पढ़ सकते हैं और जब संस्कृत विश्वविद्यालय बहुविषयक होंगे तो संस्कृत के छात्र भी अन्य विषय में दक्ष हो सकेंगे और संस्कृत के विद्यार्थियों में व्याप्त होती अनावश्यक हीन भावना क्षीण हो जाएगी। इसके लिए संस्कृत शिक्षकों को तैयार करने हेतु 4 वर्षीय बीएड पाठ्यक्रम के द्वारा व्यवसायिक शिक्षा दी जाएगी यह प्रशिक्षित शिक्षक अन्य विषयों को संस्कृत माध्यम में पढ़ा सकेंगे। संपूर्ण देश के संस्कृत और अन्य भारतीय भाषाओं के विभाग और संस्थाओं का सुदृढ़ीकरण होगा। शिक्षा नीति में प्राचीन भाषा पाली, प्राकृत, फारसी भाषाओं के लिए भी राष्ट्रीय संस्थान स्थापना का प्रस्ताव है। संस्कृत के पास पांडुलिपि,हस्तलेख व अभिलेखों के रूप में अप्रकाशित साहित्य की विपुल धरोहर है । जिनका अनुवाद, व्याख्या एवं शोधपूर्ण प्रकाशन अत्यंत अपेक्षित है। एतदर्थ राष्ट्रीय महत्व के संस्थान की स्थापना का भी प्रावधान है।
एक लाख में मात्र 50 लोग ही शोध करते
राष्ट्रीय शोध संस्थान की स्थापना से संस्कृत के शोधार्थियों की संख्या भी बढ़ेगी और शोध स्तर भी सुधरेगा। वर्तमान में हमारे भारत में प्रति एक लाख लोगों में मात्र 50 लोग ही शोध कार्य करते हैं जबकि अमेरिका में 432, चीन में 111, इजराइल में 825 लोग प्रति एक लाख पर शोध करते हैं। राष्ट्रीय शोध संस्थान की स्थापना से इसमें भी सुधार संभव है और संस्कृत के अनेक अनालोचित विषय, ग्रन्थ और ग्रंथकार मनीषी लोक दृष्टि में आ सकेंगे।
अब देखना होगा कि शिक्षण संस्थान भारत सरकार की इस शिक्षा नीति 2020 का क्रियान्वयन कितनी सफलता पूर्वक करते हैं। इससे संस्कृत और अन्य भारतीय भाषाओं का भविष्य स्वर्णिम अवश्य होगा। हमें इस प्राचीन धरोहर को सगर्व संरक्षित करने को अपनी जिम्मेदारियां समझनी होंगी।
लेखकः डॉ. अरविंद कुमार
असिस्टेंट प्रोफेसर एवं अध्यक्ष संस्कृत विभाग
जे.एस. हिंदू स्नातकोत्तर महाविद्यालय अमरोहा