Thursday, November 21, 2024
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बहुत पुराना है बापू का शान्ति और अहिंसा का संदेश

अशोक मधुप/सनशाइन न्यूज
आज गांधी जयन्ती है। महात्मा गांधी का जन्मदिन। वही महात्मा गांधी ,जिनका देश को आजादी दिलाने में बड़ा योगदान माना जाता है। आजादी के इस आंदोलन के साथ उन्होंने शांति और अहिंसा का संदेश दिया।कोशिश कि की अंग्रेज अहिँसा की शक्ति को पहचाने।
अंग्रेज जो खुद ईसाई थे। वे प्रभु यीशु के अनुयायी थे ।प्रभु यीशु जो अपने शत्रुओं को भी क्षमा करने की बात करते थे।अपने को नुकसान पहुंचाने वालों को माफ करने में जिनका यकीन था।
शांति अहिंसा का संदेश महात्मा गांधी का संदेश नहीं था। यह भारत का युगों -युगों का संदेश है। उन्होंने भारत के प्राचीन शान्ति और अहिंसा के आदेश को आगे बढ़ाया।

प्रारंभ से भारतवासी शांति और अहिंसा के पुजारी रहे हैं। उन्होंने कभी अपनी ओर से युद्ध नहीं छेड़ा। अपने आप तलवार नहीं उठाई। उनकी कोशिश रही कि सब शांति से निपट जाए। पर जब सामने वाले ने शांति और अहिंसा को मानने वाले की कायरता समझी तो मजबूरी में उन्हें युद्ध करना पड़ा।
महात्मा बुध और महावीर स्वामी दोनों का युग एक था। दोनों युद्ध के विपरीत थे। दोनों ने शांति की बात की।
ऐसा नहीं है कि यह भगवान बुद्ध और भगवान महावीर के समय में हुआ हो। ये तो आदि काल से चला आया है।यह तो
आर्यवृत की संस्कृति है।विरासत है।
महाभारत काल में भी कौरव पांडव के बीच युद्ध ना हो। इसके लिए बार-बार प्रयास हुए। युद्ध टालने के लिए समझौते के प्रस्ताव लेकर दूत गए। महाभारत काल में तो भगवान कृष्ण पांडव के दूत बनकर स्वयं कौरवों के पास पहुंचे।किसी भी प्रस्ताव पर तैयार न होने पर उन्होंने दुर्याेधन से पांडवों को सिर्फ पांच गांव देने का ही प्रस्ताव किया। इस प्रस्ताव को स्वीकार न करने के बाद ही पांडवों को युद्ध का निर्णय लेना पड़ा। कौरवों ने भगवान कृष्ण का पांच गांव देने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया होता तो महा भारत जैसा विनाशकारी युद्ध ना होता। एक ही परिवार वाले एक दूसरे के खून के प्यासे ना बनते । महाभारत काल में अनगिन महाबली योद्धा थे।ये सब कुरुक्षेत्र के मैदान की भेंट चढ़ गए। यदि दुर्याेधन ने शान्ति का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया होता तो कुरुक्षेत्र के मैदान में लाशों के ढेर न लगते । और सब शांति के साथ में निपट गया होता। एक महाविनाश बच जाता।

ऐसे ही भगवान राम ने महाबली रावण के पास शांति का प्रस्ताव भेजा। सीता का पता लगाने के नाम पर पहले हनुमान श्रीलंका गए। रावण को समझाया। ना मानने पर लंका जलाकर यह भी बता दिया कि भगवान राम की सेना का एक ही वीर श्रीलंका को जला सकता है तो वह श्रीराम और उनकी सेना तो उनके महाविनाश करने में भी पूरी तरह सक्षम है। पर रावण नहीं माना।

इसके बाद भी युद्ध की शुरुआत से पूर्व भगवान राम ने रावण के पास अंगद को शांति का प्रस्ताव लेकर भेजा। भगवान राम चाहते थे कि किसी तरह रावण को सद्बुद्धि आ जाए। वह माता सीता को ससम्मान वापस कर दें और महाविनाश बच जाए। अंगद ने भरपूर कोशिश की। सब प्रकार से महाबली रावण को समझाना चाहा। हठी स्वभाव के कारण शांति का प्रस्ताव स्वीकार न करने पर भगवान राम और रावण का महा भीषण युद्ध हुआ। दोनों पक्षों को क्षति तो हुई पर श्रीलंका के मेघनाथ कुंभकरण जैसे महाबली इस युद्ध की भेंट चढ़ गया।एक राक्षस संस्कृति इस विनाश की भेंट चढ़ गई।
(लेखक श्री अशोक मधुप वरिष्ठ पत्रकार/स्तम्भ्कार हैं। लंबे समय तक अमर उजाला बिजनौर में ब्यूरो चीफ रहे हैं)

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Dr. Deepak Agarwal
Dr. Deepak Agarwal is the founder of SunShineNews. He is also an experienced Journalist and Asst. Professor of mass communication and journalism at the Jagdish Saran Hindu (P.G) College Amroha Uttar Pradesh. He had worked 15 years in Amur Ujala, 8 years in Hindustan,3years in Chingari and Bijnor Times. For news, advertisement and any query contact us on deepakamrohi@gmail.com
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