डॉ. दीपक अग्रवाल
अमरोहा/उत्तर प्रदेश (सनशाइन न्यूज)
सूचना का अधिकार अधिनियम समय की मांग और विभागों में पारदर्शिता व जवाबदेही सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बनाया गया था। लेकिन 16 वर्ष बाद भी यह सशक्त कानून अफसरशाही और अधिकारियों के आगे नतमस्तक होता दिखाई दे रहा है ।
12 अक्टूबर 2005 को लागू हुआ आरटीआई
12 अक्टूबर को जनपद न्यायालय परिसर में दिनेश सिंह एडवोकेट के चेंबर पर मीटिंग को संबोधित करते हुए आरटीआई एक्टिविस्ट मनु शर्मा एडवोकेट ने कहा कि सरकार ने विभागों में भ्रष्टाचार दूर करने और उसे अधिक सशक्त, प्रभावी एवं जवाबदेह बनाने के उद्देश्य से 12 अक्टूबर वर्ष 2005 को सूचना का अधिकार अधिनियम देश में लागू हुआ था। उन्होंने कहा कि 16 वर्ष बीत जाने के बाद भी अभी तक यह कानून सही तौर पर प्रभावी नहीं हो पाया है । इसका कारण प्रमुखता अफसरशाही का बेतुका रवैया और कानून को अपने ढंग से व्याख्यित किया जाना है । जबकि सरकार ने इस कानून को सभी विभागों में जवाबदेही तय करने और पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से इसे बनाया था।
अफसर कर रहे प्रभावहीन
उन्होंने आगे कहा कि एक या दो मामलों को छोड़कर व्यवहार में देखा जाए तो इस कानून को सर्वाधिक सरकारी विभागों के अधिकारियों ने अपने अपने हिसाब से परिभाषित करके इसे प्रभावहीन करने का पूरा प्रयास किया है । संजीव जिंदल एडवोकेट ने कहा कि यह कानून जनता का हथियार है । इसका प्रयोग विभागीय भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए और उसे उजागर करने के लिए किया जाता है । लेकिन अफसरशाही इस कानून को प्रभावहीन करने पर तुली हुई है । सरकारी संरक्षण में अफसरशाही इतने सशक्त कानून को बेअसर करने पर तुली हुई हैं । ऐसे में आवश्यकता है मजबूत इच्छाशक्ति से इस कानून का सदुपयोग करने की।
उचित मुकाम हासिल नहीं कर पाया
दिनेश सिंह एडवोकेट ने कहा कि सूचना का अधिकार अधिनियम बने हुए इतने वर्ष बीत गए लेकिन यह कानून उचित मुकाम हासिल नहीं कर पाया है । भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों ने इस कानून को अपने अपने हिसाब से तोड़ मरोड़ कर सूचनाएं देने की परिपाटी कायम कर ली है । इस मौके पर मनु शर्मा, संजीव जिंदल, अशोक शर्मा, दिनेश सिंह, अखिलेश शर्मा, सचिन गुप्ता, कविंद्र सिंह, ईश्वर सिंह बॉबी, राजीव भोले, शैलेंद्र सिंह सोनू, अर्शी आरोजी, कुं जीनत, जगदीश पाल सिंह, दलपत सिंह राणा आदि अधिवक्ता उपस्थित रहे ।