डॉ. दीपक अग्रवाल
अमरोहा/उत्तर प्रदेश (सनशाइन न्यूज)
सौ करोड़ का जश्न
सौ करोड़ का जश्न मनाएं कैसे।
अश्रुधारा निरंतर बह रही,
खुशियां मनाएं कैसे।
इस महामारी के काल में,
बिछुड गए जो मेरे अपने,
उन्हें वापस लाएं कैसे।
विधि का विधान यही,
खुद को समझाएं कैसे।
सौ करोड़ की खुशी में,
देश हो रहा जगमग रोशन।
इस बनावटी रोशनी में,
खुशियां मनाएं कैसे।
घरों में हो गया अंधेरा,
जिनके हमेशा के लिए।
वो अपने आंगन में,
अब दीप जलाएं कैसे।
सौ करोड़ का जश्न मनाएं कैसे।
खोया है जिन्होंने अपनों को,
सहमे रहते हैं उस घर के लोग।
बंद हैं दरवाजे घर के,
उन्हें बाहर बुलाएं कैसे।
खुशियों के गुलदस्ते,
उनके घर दे आएं कैसे।
चाहकर भी शलभ
उन्हें आवाज़ लगाए कैसे।
उम्र भर के लिए हो गई,
अमावस जिनकी ज़िंदगी में,
वो अब दीवाली मनाएं कैसे।
सौ करोड़ का जश्न मनाएं कैसे।
शलभ गुप्ता
कवि/लेखक
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मुरादाबाद -244001 (उत्तर प्रदेश)
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