डॉ. दीपक अग्रवाल
अमरोहा/उत्तर प्रदेश (सनशाइन न्यूज)
बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में नौकरी करने वाली तमाम शिक्षिकाएं अपनो के प्यार में हर रोज 200 से 250 किलोमीटर का सफर तय कर अपनी नौकरी को अंजाम दे रही हैं। यह हाल सूबे के अधिकतर जिलांे का है। नौकरी के बाद शिक्षिकाओं को बच्चों की परवरिश का जिम्मा भी उठाना पड़ता हैं। घर के काम भी करने पड़ते हैं।
अगर बात अमरोहा जनपद की करें तो यहां मेरठ, बिजनौर, बुलंदशहर, गाजियाबाद, हापुड़ आदि जनपदों से हर रोज तमाम शिक्षिकाएं स्कूलों मंे पढ़ाने आती हैं।
पिछले दिनों मैं बस से अमरोहा से बिजनौर जा रहा था। अतरासी चौराहे से दो महिलाएं बस में चढ़ी। मेरे पास वाली सीट खाली थी लिहाजा वह मेरे पास बैठ गई। अपने पत्रिकारिता के स्वभाव के मुताबिक मैंने करीब बैठी महिला से पूछा कि शायद आप टीचर हैं। वह बोली जी। फिर वह बोली आप सनशाइन न्यूज वाले डॉ. दीपक अग्रवाल हैं क्या। मैंने कहा जी। यह सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगा कि वह मुझे पहचानती हैं।
फिर तो बात का सिलसिला शुरू हो गया। उन्होंने बताया कि वह नौगावां सादात के पास स्कूल में जाएंगी। सुबह को 5 बजे मेरठ से चली थीं और शाम को भी घर पहुंचते-पहुंचते पांच से 6 बजे जाते हैं। पति मेरठ नौकरी करते हैं और दो बच्चे हैं। शिक्षिका की हिम्मत को मैंने दाद दी। अब ऐसे पति और परिवार को क्या कहा जाए जो महिलाओं से इतना बलिदान करा रहा है।
दूसरी बानगी देखिएः एक शिक्षिका ने बताया कि पति गाजियाबाद में नौकरी करते हैं हम 6 शिक्षिकाएं हर रोज कैब से जोया व गजरौला क्षेत्र के स्कूलों में आते हैं। 2 से 3 घंटे आने में और इतना समय ही जाने में लगता है। अब तो आदत पड़ गई है। अमरोहा से गाजियाबाद की दूरी करीब 130 किलोमीटर एक साइड से है। कुल 260 किलोमीटर हुआ। धन्य है ऐसे पति और परिवार।
तीसरी बानगीः अमरोहा के एक बैंक में प्रबंधक हैं। वह गजरौला रहते हैं और उनकी पत्नी बुलंदशहर में बेसिक स्कूल में टीचर हैं। प्रबंधक गजरौला से अमरोहा आते हैं और पत्नी हर रोज बुलंदशहर जाती हैं।
चौथी बानगीः डाइट एआरजी के नाते मैं एक बार जोया ब्लाक के गांव सरकड़ी अजीज के प्राथमिक विद्यालय गया। वहां एक शिक्षिका ने बताया कि वह हर रोज बिजनौर से आती हैं। उस स्कूल से बिजनौर की एक साइड की दूरी 90 किलोमीटर है। सीधी बस भी नहीं है।
हालांकि तमाम शिक्षक भी इसी तरह दौड़ कर नौकरी कर रहे हैं।
मैं ऐसी शिक्षिकाओं की हिम्मत की दाद देता हूं। जो दौड़ रही हैं नौकरी कर रही हैं और घर जाकर काम व बच्चों की परवरिश कर रही हैं। नमन मातृशक्ति।