Friday, November 22, 2024
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लखीमपुर खीरी घटना वीआईपी दम्भ की देन तो नहीं…..

 

अशोक मधुप/सनशाइन न्यूज………
समसामयिक
आमतौर पर देखने में आया है कि परिवार के किसी सदस्य को राजनैतिक दल में पद मिलने के बाद संबंधित महानुभाव और उनके परिवार जन अपने को समाज और कानून से ऊपर समझने लगते हैं। उनमें ये भावना घर कर जाती है कि वे सुपर पावर हैं।
लखीमपुर खीरी प्रकरण में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी के पुत्र आशीष मिश्र आखिर गिरफ्तार हो ही गए। उनके द्वारा एकत्र किये गए बेगुनाही के सबूत काम नहीं आए। इस लखीमपुर खीरी प्रकरण में बहुत सी चीजें निकल कर आ रही हैं। प्रदर्शनकारी किसान कह रहे हैं कि मंत्री के बेटे ने उन पर उस समय कार चढ़ाई, जब वह प्रदर्शन कर रहे थे। जबकि ये भी बात निकल करके आ रही है कि प्रदर्शनकारी किसानों ने कार पर हमला किया और घबराहट में जान बचाने के लिए ड्राइवर ने कार भगा दी। दोनों पक्ष के अलग-अलग तर्क हैं। यह तो जांच से ही पता लगेगा कि वस्तु स्थिति क्या हैॽ

ऐसी घटना एक पंजाब में हुई है। पंजाब के एक भाजपा विधायक की कार से टकराकर एक व्यक्ति घायल हो गया। घटनाओं के बारे में दावे प्रतिदावे कुछ भी हों पर इनका कारण कुछ और भी हो सकता है। हो सकता है कि इन दुर्घटनाओं का कारण इनके कार चालक का अपने को वीआईपी से भी बड़ा समझना हो। उसी जैसा आचरण करना हो। ये घटनाएं कहीं वीआईपी दम्भ की देन तो नहीं हैं। दरअसल झंडा लगी कार, विशेषकर सत्ताधारी पार्टी के नेता की झंडा लगी कार का चालक अपने को सुपर पावर समझता है। वह अपने को नियम−कायदे से ऊपर मानने लगता है। उसी की तरह वह आचरण भी करने लगता है। मनमर्जी से कार का हूटर और हॉर्न बजाना, पहुंच की जगह पर जाकर पूरी ताकत से ब्रेक लगाना उसकी आदत में आ जाता है।
लखीमपुर में जिस कार गाड़ी से दुर्घटना होने की बात आ रही है, उसके बारे में जानकारी मिली है कि 2018 से गाड़ी का इंश्योरेंस भी नहीं कराया गया था। यह वीआईपी गाड़ी थी। गाड़ी केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी के नाम थी, इसलिए बिना इंश्योरेंस के सड़कों पर दौड़ती रही, आम आदमी की कार का तो कई बार चालान हो चुका होता। इस कार को तो देखकर चालान करने वाले सैल्यूट और मारते होंगे।
आमतौर पर देखने में आया है कि परिवार के किसी सदस्य को राजनैतिक दल में पद मिलने के बाद संबंधित महानुभाव और उनके परिवार जन अपने को समाज और कानून से ऊपर समझने लगते हैं। उनमें ये भावना घर कर जाती है कि वे सुपर पावर हैं। विधायक के परिवार वालों को भी लोग−बाग विधायक जी या एमपी के परिवार वालों को एमपी साहब कहने लगते हैं। बारदृबार अपने को विधायक जी और एमपी साहब पुकारे जाने पर उनका आचरण भी धीरे-धीरे विधायक और एमपी साहब जैसा होने लगता है। वीआईपी का दम्भ उन्हें सोचने समझने नहीं देता।
नेता जी की कार के ऊपर झंडा लगते ही उसका चालक अपने को वीआईपी समझने लगता है। हूटर लगने के बाद तो इस गाड़ी का चालक आमतौर पर ट्रैफिक के नियम कायदे इग्नोर करने लगता है। राजनीतिक दल की गाड़ी समझकर, गलत देखकर भी ट्रैफिक पुलिस वाले और अन्य प्रशासनिक अधिकारी नजर अंदाज करने लगते हैं। धीरे−धीरे उसके वाहन की स्पीड बढ़ने लगती है। हूटर ऑन करने के बाद वह मानने लगता है कि अब सड़क खुद खाली हो जाएगी। अब बचने की जिम्मेदारी खुद रास्ता चलने वालों की है। प्रायः अन्य वाहन चालक निर्धारित स्थान से पहले से वाहन धीमा कर लेते हैं ताकि ब्रेक कम लगाने पड़ें, पर वीआईपी कार का चालक निर्धारित स्थान पर पहुंचते ही जोर से ब्रेक लगाकर अपने को वीवीआईपी सिद्ध करता है।

एक बार मुझे ड्राइवर की जरूरत थी। एक महानुभाव आए। बताया कई साल से एक राज्यमंत्री की गाड़ी पर चालक रहे हैं। कुछ विवाद हुआ तो नौकरी छोड़ दी। मुझे चालक की जरूरत थी। मैंने उन्हें अनुभवी चालक समझकर रख लिया। महानुभाव की हालत यह थी कि जंगल में भी सूनसान रास्ते पर और रात में भी वह जंगल में हॉर्न बजाते चलते थे। एक बार रेलवे क्रॉसिंग पर गाड़ी पहुंची। क्रॉसिंग बंद था। वाहनों की लंबी लाइन लगी हुई थी। चालक महोदय ने गाड़ी स्टार्ट रखी और हॉर्न पर हॉर्न बजाना शुरू कर दिया। मैंने उनसे कहा− भाई साहब रेलवे क्रॉसिंग बंद है। तुम्हारे हॉर्न बजाने से अगली गाड़ी वाले फाटक से गाड़ी कुदाकर ले जाएंगे क्याॽ आगे वाली गाड़ी क्रॉसिंग बंद होने पर रुकी है। तुम भी इंजिन बंद कर इंतजार करो। क्योंकि उनकी आदत पड़ गई थी, आदत छूटना बहुत कठिन होता है। मजबूरन मुझे उन्हें हटाना पड़ा। हो सकता है कि लखीमपुर खीरी प्रकरण में भी कुछ ऐसा ही हुआ हो। चालक मंत्री जी की गाड़ी, महंगी गाड़ी का हूटर आनकर, हॉर्न बजाता गाड़ी भगा रहा हो, उसके दिमाग में रही हो कि वीवीआईपी गाड़ी को देख भीड़ अपने आप सड़क से हट जाएगी। बिल्कुल नजदीक पहुंचने और भीड़ के सड़क से नहीं हटने पर जब तक वह ब्रेक लगाने की सोचता तब तक गाड़ी प्रदर्शनकारियों से जा टकराई हो। जब गाड़ी भीड़ से टकरा गई तो चालक महोदय को लगा होगा कि भीड़ उसे मारेगी। अपनी जान बचाने के लिए वह गाड़ी भगाने लगा हो। या वह गाड़ी पर नियंत्रण खो बैठा हो…खैर सब तथ्य जाँच से सामने आ ही जाएंगे।
(लेखक अशोक मधुप वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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Dr. Deepak Agarwal
Dr. Deepak Agarwal is the founder of SunShineNews. He is also an experienced Journalist and Asst. Professor of mass communication and journalism at the Jagdish Saran Hindu (P.G) College Amroha Uttar Pradesh. He had worked 15 years in Amur Ujala, 8 years in Hindustan,3years in Chingari and Bijnor Times. For news, advertisement and any query contact us on deepakamrohi@gmail.com
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