अशोक मधुप/सनशाइन न्यूज……
दुनिया के देश आधुनिक युद्धास्त्र बनाने में लगे हैं।परमाणु बम, हाइड्रोजन बम के आगे के विनाशक बम पर काम चल रहा है। सुपर सोनिक मिशाइल बन रही हैं, किंतु लगता है कि आधुनिक युद्ध इन सबसे अलग तरह के अस्त्र− शस्त्रों के लड़ा जाएगा। अलग तरह के युद्ध होंगे। आने वाले युद्ध सीमा पर नहीं, शहरों में लड़े जाएगे।घरों में लड़े जाएगे। गली मुहल्लों में लड़े जाएंगे ।अभी से हमें इसके लिए सोचना और तैयार होना होगा।
पुणे इंटरनेशनल सेंटर द्वारा आयोजित ‘पुणे डॉयलॉग’ में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने कहा कि भविष्य में खतरनाक जैविक हथियार दुनिया के लिए गंभीर परिणाम साबित हो सकता है। दुनिया के लिए किसी भी जानलेवा वायरस को हथियार बनाकर इस्तेमाल करना गंभीर बात है। एनएसए डोभाल ने अपने बयान में कोरोना वायरस का उदाहरण देते हुए जैविक हथियारों का मुद्दा उठाया। ‘आपदा एवं महामारी के युग में राष्ट्रीय सुरक्षा की तैयारियों ’ पर बोलते हुए अजीत डोभाल ने कहा कि आपदा और महामारी का खतरा किसी सीमा के अंदर तक सीमित नहीं रहता और उससे अकेले नहीं निपटा जा सकता । इससे होने वाले नुकसान को घटाने की जरूरत है।
अभी तक पूरी दुनिया इस खतरे से जूझ रही है कि परमाणु बम किसी आंतकवादी संगठन के हाथ न लग जाए। उनके हाथ में जाने से इसे किस तरह रोका जाएॽ उधर आतंकवादी नए तरह के हथियार प्रयोग कर रहे हैं। शिक्षा बढ़ी है तो सबका सोच बढ़ा है।
दुनिया के सुरक्षा संगठन समाज का सुरक्षित माहौल देने का प्रयास कर रहे हैं।आंतकवादी घटनाएं कैसे रोकी जांए, ये योजनांए बना रहे हैं। आंतकवादी इनमें से निकलने के रास्ते खोज रहे हैं। वे नए−नए हथियार बना रहे हैं। अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सैंटर पर हमले से पहले कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि विमान को भी घातक हथियार के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। इसमें विमानों को बम की तरह इस्तेमाल किया गया।माचिस की तिल्ली आग जलाने के लिए काम आती है ।
बिजनौर में कुछ आंतकवादी इन माचिस की तिल्लियों का मसाला उतार कर उसे गैस के सिलेंडर में भर कर बम बनाते विस्फोट हो जाने से घायल हुए।
हम विज्ञान और कम्यूटर की ओर गए। हमारे युद्धास्त्र कम्यूटरीकृत हो रहे हैं।उधर शत्रु इस सिस्टम को हैक करने के उपाए खोज रहा है। लैसर बम बन रहे हैं। हो सकता है कि हैकर शस्त्रों के सिस्टम हैक करके उनका प्रयोग मानवता के विनाश के लिए कर बैठे। बनाने वालों के निर्देश छोड़ के बने बनाए शस्त्र हैकर के इशारे पर चलने लगें।
रोगों के निदान के लिए वैज्ञानिक रोगों के वायरस पर खोज रहे हैं। उनके टीके बना रहे हैं। दवा विकसित कर रहे हैं,तो कुछ वैज्ञानिक इस वायरस को शस्त्र के रूप में प्रयोग कर रहे हैं।
साल 1763 में ब्रिटिश सेना ने अमेरिकियों पर चेचक के वायरस का इस्तेमाल हथियार की तरह किया । 1940 में जापान की वायुसेना ने चीन के एक क्षेत्र में बम के जरिये प्लेग फैलाया था। 1942 में जापान के 10 हजार सैनिक अपने ही जैविक हथियारों का शिकार हो गए थे। हाल ही के दिनों में आतंकी गतिविधियों के लिए जैविक हथियार के इस्तेमाल की बात सामने आई है। इससे हमें सचेत रहना होगा। सीमाओं की सुरक्षा के साथ इन जैविक शास्त्रों से निपटने के उपाए खोजने होंगे। चीन की लेब में विकसित हो रहा कोरोना का वायरस अगर लीक न होता तो आने वाले समय में उसके किस विरोधी देश में फैलता यह नहीं समझा जासकता, क्योंकि आज चीन की एक दो देश छोड़ पूरी दुनिया से लड़ाई है।
लगता है कि आधुनिक युद्ध कोरोना की तरह शहरों में , गलियों में और भीड वाली जगह में लड़ा जाएगा। किसी विषाक्त वाररस से हमें कारोना के बचाव की तरह जूझना होगा।
बुजुर्ग कहते आए हैं कि ईश्वर जो करता है, अच्छा करता है।हर मुसीबत में कोई संदेश, कोई भविष्य के लिए तैयारी होती है । ऐसा ही शायद कोरोना महामारी के बारे में माना और समझा जा सकता है। जब यह महामारी फैली तो इसके लिए पूरा विश्व तैयार नहीं था। इसके फैलने पर सब आश्चर्यचकित से हो गए किसी की समझ नहीं आया। आज डेढ़ साल से ज्यादा हो गया, इसकी दुष्ट छाया से हमें मुक्ति नही मिली।आंकड़ों के अनुसार इस दौरान पूरी दुनिया में 50 लाख से ज्यादा मौत हुईं है।
जब यह महामारी आई तो किसी को न इसके बारे में पता था, न ही इसके लिए कोई तैयार था।आज डेढ़ साल के समय में दुनिया ने इसके अनुरूप अपने को तैयार कर लिया। वैक्सीन बनाई ही नहीं, तेजी से लगाई भी जा रही है।ये सब जानते है कि कोराना अभी गया नही,फिर भी अधिकतर लोग लापरवाह हो गए।इसके प्रति बरते जाने वाले सुरक्षा उपाए करने छोड़ दिए। हमने इसके साथ जीना सीखा लिया।
आज पूरी दुनिया कोरोना वायरस की मार झेल रही है। भविष्य के जैविक हथियारों के खिलाफ सुरक्षा रणनीति को लेकर अजीत डोभाल ने कहा कि देश को अब नई रणनीति बनाने की जरूरत है। चीन का नाम लिए बिना अजीत डोभाल ने कहा कि बायोलॉजिकल रिसर्च करना बेहद जरूरी है। लेकिन इसकी आड़ में इसका दुरुपयोग किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि ऐसी रणनीति बनाई जाए जो हमारे मकसद को पूरा करे और हमारा नुकसान कम से कम हो।
कोरोना से युद्ध के बाद देश चिकित्सा सुविधा का विस्तार कर रहा है।कोरोना की दूसरी लहर में आक्सीजन की मारामारी मची। आज हम जिला स्तर पर सरकारी अस्पताल में अक्सीजन बनाने के संयत्र लगा चुके हैं। जिला स्तर तक मेडिकल कॉलेज बनाना शायद इसी रणनीति का भाग है। जगह जगह आधुनिक अस्पताल बन रहे हैं। वैक्सीन विकास का काम भी इसी की कड़ी का एक हिस्सा है। प्रकृति के दौहान के दुष्परिणाम से होने वाली आपदाएं हमें झेलनी होंगी। उसके लिए तैयार होना होगा। और काम करना होगा।
चिकित्सा सुविधाएं गांव− गांव तक पंहुचानी होंगी। स्वास्थ्य वर्कर गांव गांव तक तैयार करने होंगे। आपदा नियंत्रण के लिए जन चेतना पैदा करने के लिए गांव− गांव तक वालियंटर बनाने और उन्हें प्रशिक्षित करना होगा। हमला किस तरह का होगा, उसका रूप क्या होगा, नहीं कहा जा सकता। बस नए हालात और परिस्थिति के लिए हम अपने और अपने समाज को तैयार कर सकतें हैं।
(लेखक अशोक मधुप वरिष्ठ पत्रकार हैं)