डॉ. दीपक अग्रवाल
अमरोहा/उत्तर प्रदेश (सनशाइन न्यूज)
बाबूजी के साथ मिलकर अम्मा ने बहुत मेहनत की अपने चारों बेटों को कामयाब बनाया। बाबूजी स्वर्गस्थ हो गए तो अम्मा को पेंशन मिलने लगी। लेकिन कामयाब बेटों को लिए आज पेंशनवाली अम्मा भी बोझ हैं। अम्मा कहती हैं कि पेंशन न मिलती तो क्या होता। रोटी भी नहीं मिलती।
जब मैं वर्ष 1995 में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार में पढ़ता तो रोडवेज बस स्टैंड के आगे रानीपुर मोड़ से पहले स्थित बिल्ंिडग मंे स्टूशन पढ़ाने जाता था। वहां एक दंपति के बेटे को पढ़ता था। अभी पिछले दिनों जब मैं हरिद्वार गया तो इस परिवार से मिलने गया। वहां केवल माजी मिली। वह अब अकेली रहती हैं उन्होंने बताया कि चारों बेटे बाहर चले गए हैं बड़े अफसर हो गए हैं। सभी के यहां रहकर देख लिया। किसी के पास मेरे लिए समय नहीं है। उनके यहां अपनेपन का अहसास ही नहीं होता है। उनका व्यवहार अच्छा नहीं लगता है। इसीलिए अपने घर में हरिद्वार में ही रह रही हूं पड़ोसी सहयोग करते हैं।
वो तो भला है कि पंेशन मिलती है जो मेरा खर्चा चल रहा हैं अगर पेंशन न मिलती तो क्या होता। रोटी भी नहीं मिलती।