डॉ. दीपक अग्रवाल
अमरोहा/उत्तर प्रदेश (सनशाइन न्यूज)
जनपद अमरोहा के ही नहीं सूबे के तमाम स्कूलों में ऐसी शिक्षिकाएं हैं जो अपनी ससुराल या मायके से 100 से 150 किलोमीटर का सफर कर स्कूलों में पढ़ाने जाती हैं। इसे शिक्षिकाओं का सशक्तिकरण कहेंगे या शोषण कहेंगे या परिवार के लिए समर्पण।
अगर हम बात जनपद अमरोहा की करें तो जिले के बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में तकरीबन 200 से अधिक शिक्षिकाएं ऐसी हैं जो अपने गाजियाबाद, हापुड़, मेरठ, बिजनौर, मुरादाबाद, रामपुर आदि जनपदों से यहां आती हैं। यह तस्वीर केवल अमरोहा की ही नहीं है बल्कि सूबे के अनूमन सभी जिलों में ऐसा ही है।
बच्चों और घर की जिम्मेदारी के साथ स्कूल की जिम्मेदारी निभाना लोहे के चने चबाने के समान है। ऐसी स्थिति में इसे शिक्षिकाओं का सशक्तिकरण या शोषण या परिवार के लिए समर्णण क्या कहेंगे।
मेरा सुझाव है कि सरकार को ऐसी शिक्षिकाओं का स्थानांतरण उनकी जरूरत के मुताबिक साल में दो बार ग्रीष्मकालीन व शीतकालीन अवकाश में करने की व्यवस्था बनानी चाहिए।