डॉ. दीपक अग्रवाल
अमरोहा/उत्तर प्रदेश (सनशाइन न्यूज)
उत्तर प्रदेश के जनपद बिजनौर में मयंक मयूर ने करीब 40 साल राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को घर-घर पहुंचाने का काम किया। तमाम लोगांे को संघ से जोड़ा। 17 अगस्त 2023 को उनका असमय चले जाना उनके परिजनों के साथ-साथ मित्रों और स्वयंसेवकों के लिए पीड़ादायक है। किसी के लिए उसके बचपन के साथी का चले जाना बड़ा कष्टकर होता है जैसा मैं महसूस कर रहा हूं।
मयंक मयूर और मेरा बचपन साथ-साथ बीता है। हमने कक्षा 6 से इंटर तक की शिक्षा राजकीय इंटर कालेज बिजनौर से पूरी की। उसके बाद साथ-साथ वर्धमान कालेज बिजनौर से बीएससी की पढ़ाई की। उसके बाद मैं 1995 में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार पीजी डिप्लोमा पत्रकारिता एवं जनसंचार में करने चला गया और मयंक पहले से अधिक प्रखर होकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्य मंे तल्लीन हो गए। वह प्रचारक तो नहीं बने लेकिन जीवन प्रचारकों जैसा ही जीया।
वर्ष 1983 में मयंक संघ के संपर्क में आए उस समय हम कक्षा 8 में पढ़ते थे। उस समय मोहल्ला अचारजान में संघ का कार्यालय था और उसके पास वाले मंदिर के कच्चे प्रांगण मंे शाखा लगती थी। एक दिन मयंक ही मुझे भी संघ कार्यालय ले गए और हम शाखा मेें जाने लगे। उसम समय तो हम खेल की दृष्टि से ही शाखा जाते थे ज्यादा कुछ संघ के बारे में नहीं जानते थे। 1985 मंे राजेश जी बिजनौर के जिला प्रचारक बनकर आए। उसम समय तक हम कक्षा 10 पास कर चुके थे। कक्षा 11 में पढ़ रहे थे उन्होंने संघ की बारीकियों से हमें परिचित कराया। उन दिनों मयंक पर संघ का ऐसा भूत सवार हुआ कि आसपास के गांवों में जाकर भी संघ की शाखा लगानी शुरू कर दी।
हालांकि हम इंटर विज्ञान वर्ग में गणित लेकर कर रहे थे मैंने टयूशन भी लगा लिए थे लेकिन मयंक ने कोई टयूशन नहीं लगाया मानो जैसे उनके लिए पढ़ाई गौण हो गई थी संघ कार्य प्राथमिकता पर था। संघ के कई कार्यक्रमों में हम हिस्सा लेते थे।
वर्ष1987 का यह वह दौर था जब आमजन और सरकारी कर्मचारी आरएसएस के नाम से दूर भागता था। विभिन्न कार्यक्रमों के लिए हम मयंक के साथ मिलकर खाने के पैकेट एकत्रित करते थे। मयंक पूरी तरह संघ के रंग में रंग गए थे। बीएससी की पढ़ाई को भी गंभीरता से नहीं लिया केवल संघ का काम ही लक्ष्य था। कभी भी कैरियर को लेकर बात नहीं होती थी। बहुत सी स्मृतियां मस्तिष्क में उभर रही हैं लेकिन लिखने की भी अपनी सीमा है।
हमने वह दौर भी देखा है जब लोग संघ के नाम से दूर भागते थे और एक दौर आज का भी हर कोई स्वयं को संघ से जुड़ा बताता है।
लेकिन सत्ता के दौर में भी मयंक ने कभी कोई लाभ नहीं लिया। हालांकि वह बिजनौर में आरएसएस के एक मजबूत स्तंभ रहे और विभिन्न पदों पर काम किया। नागपुर से तृतीय वर्ष ओटीसी की थी। उनकी बात में भी दम होता था संघ के अधिकारी उन्हें गंभीरता से लेते थे। सत्ता में भी पकड़ थी। लेकिन उन्होंने कभी भी अपने संबंधों या प्रभाव का दुरुपयोग नहीं किया। वह जीवनभर एक निस्वार्थ भाव वाले स्वयंसेवक रहे। व्यवहारकुशलता और गंभीर से गंभीर विषय को भी सहजता व सरलता से लेना मयंक के व्यक्तित्व की विशेषता थी।
असमय मात्र 53 वर्ष की आयु में ऐसे व्यक्तित्व का चले जाना निसंदेह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लिए ऐसी क्षति है जिसकी पूर्ति संभव नहीं है।