डॉ. दीपक अग्रवाल की पुस्तक ‘प्रेरणा-पुंज‘ से
अमरोहा/उत्तर प्रदेश (सनशाइन न्यूज)
वे शुरुआत से ही मेधावी छात्र रहे और पहले ही प्रयास में आई.पी.एस. बन गए। धुन आई.पी.एस. बने की ही थी, इसीलिए जो विकल्प चुना, वही बन गए। यही दृढ़ संकल्प और मजबूत इच्छाशक्ति का परिणाम होता है। अब वे पीड़ितांे के लिए मित्र पुलिस और अपराधियों के मन में पुलिस का खौफ पैदा करने का काम लगन और निष्ठा से कर रहे हैं। उनकी-‘जुबाने पुलिस जुबानी पुलिस‘ पुस्तक पुलिस की व्यावसायिक दक्षता में वृद्धि करने के साथ-साथ नवागंतुक पुलिसकर्मियांे में अभिलेख लेखन समझ विकसित करने में कारगर साबित हो रही है। इस पुस्तक को उ.प्र. हिंदी संस्थान की ओर से विधि एवं विधिशास्त्र में वर्ष 2021 का डॉ. भीमराव अंबेडकर पुरस्कार प्रदान किया गया है।
कुछ इसी तरह की कहानी अमरोहा के पुलिस अधीक्षक कुँवर अनुपम सिंह की है। उनका जन्म इलाहाबाद (अब प्रयागराज) 25 दिसंबर 1989 को हुआ। पिता श्री राधेश्याम जल संस्थान (अब जल निगम) में सर्वेयर और माता श्रीमती शीला स्वास्थ्य विभाग में नर्स थी। परिवार की आर्थिक स्थिति सामान्य ही थी। उनकी प्रारंभिक शिक्षा इलाहाबाद के ही स्थानीय स्कूल से हुई। कक्षा 6 से 12 तक की शिक्षा राजकीय इंटर कॉलेज इलाहाबाद से पूरी की। वर्ष 2003 मंे हाईस्कूल 77 प्रतिशत अंकों से और वर्ष 2005 में इंटर 75 प्रतिशत अंकों से पास किया। उसके बाद आई.आई.आई.टी. इलाहाबाद से ही बी.टेक. इंफोरमेशन टैक्नोलॉजी मंे किया।
उन्होंने बताया कि इंटर की पढ़ाई तक नौकरी के बारे में ज्यादा समझ पैदा नहीं हो पाती है। स्नातक में जाने के बाद रोजगार के प्रति अधिक सजगता विकसित होती है। ऐसा ही उनके साथ हुआ। बी.टेक. करने के दौरान ही प्रशासनिक सेवा में जाने का मन बनाया। उन्होंने आई.पी.एस. बनने का निश्चय किया। उन्होंने पहले ही प्रयास में वर्ष 2012 मंे आई.ए.एस की परीक्षा में सफलता हासिल की। उनके मुख्य विषय हिंदी साहित्य और इतिहास रहे। अपने पहले विकल्प के आधार पर उन्हें आई.पी.एस. मिल गया। वर्ष 2013 में चार माह का आधारभूत प्रशिक्षण लाल बहादुर शास्त्री प्रशासनिक एकेडमी, मसूरी में पूरा किया। उसके बाद एक साल भारतीय पुलिस सेवा के प्रशिक्षण के लिए नेशनल पुलिस एकेडमी, हैदराबाद से प्रशिक्षण लिया। वर्ष 2015 में सहायक पुलिस अधीक्षक (प्रशिक्षणाधीन) बुलदंशहर रहे।
उसके बाद सहायक पुलिस अधीक्षक मुज़फ्फ़नगर व मथुरा, पुलिस अधीक्षक नगर आगरा, आतंकवाद निरोधक दस्ता उ.प्र., पुलिस अधीक्षक महोबा, सेनानायक 23 वीं वाहिनी पी.ए.सी. मुरादाबाद, एसपी बिजिलेंस मेरठ/लखनऊ, पुलिस अधीक्षक कन्नौज भी रहे। 31 जुलाई 2023 से अमरोहा मंे पुलिस अधीक्षक हैं। उनकी पत्नी श्रीमती प्रिया दुबे गृहिणी हैं। उनका मानना है कि पुलिस पीड़ितों की मित्र और अपराधी के प्रति कठोर होनी चाहिए। पुलिस के इस चरित्र को ही विकसित करने का काम किया जा रहा है। पहले की तुलना में अब पुलिस के व्यवहार और कार्यप्रणाली में बदलाव आ रहा है।
ट्रेनिंग के दौरान तीसरी भाषा के रूप में उर्दू को सीखा। उन्होंने ‘ज़ुबाने पुलिस ज़ुबानी पुलिस‘ पुस्तक लिखकर सराहनीय कार्य किया है। उनकी यह पुस्तक 2021 में प्रकाशित हुई। उल्लेखनीय है कि आज भी थानों पर सामान्य बोलचाल की भाषा मंे उर्दू व फारसी के तमाम ऐसे शब्दों का प्रयोग होता है जिससे नवागंतुक पुलिस कर्मी और अधिकारी अपरिचित होते हैं। जिससे उन्हें परेशानी होती है। उन शब्दों का अर्थ समझने में यह पुस्तक मील का पत्थर साबित हो रही है। पुस्तक मंे पुलिस विभाग से संबंधित प्रयोग किए जाने वाले शब्दों का संग्रह करके बड़ी सजगता के साथ हिंदी में उनका अर्थ समझाया गया है। उन्होंने बताया कि इस पुस्तक से मिल रही रायल्टी को उ.प्र.पुलिस के कर्मचारियों के कल्याण हेतु समर्पित किया गया है।