डॉ. दीपक अग्रवाल
अमरोहा/उत्तर प्रदेश (सनशाइन न्यूज)
‘‘मायका‘‘
आरती बहुत खुश थी आखिर वर्षों के बाद गर्मी की छुट्टियों में वह अपने घर एक सप्ताह के लिए जो जा रही थी। बच्चों की पढ़ाई, नौकरी इन सब के कारण वर्षों से रुकना ही नहीं हुआ। समय से पूर्व ही भाई स्टेशन पहुंच गया था।
ट्रेन से उतरते ही आरती के पैर छूकर झट भाई ने अटैची थाम ली। घर पहुंचते ही भाभी व भतीजे ने ससम्मान स्वागत किया ।मां- पापा से मिलने आरती दौड़कर उनके कमरे में पहुंची, मां ने उसे गले लगा लिया। उम्र के साथ मां-पिताजी काफी कमजोर लग रहे थे। पिताजी जिन्हें कभी आराम करते नहीं देखा था आज कम ही बिस्तर से उठ पाते ,कम सुनते व कम ही देख पाते। आरती का हृदय द्रवित हो गया यह तो विधाता का लेख है सोचकर अपने को संभाला आरती ने।
मां -पिताजी भैया- भाभी के स्नेह व प्रेम के सानिध्य में एक सप्ताह कैसे बीत गया पता ही नहीं चला ।वापसी का दिन भी आ गया भाभी ने पूछा दीदी मायके कब आना होगा? जल्दी ही कह कर आरती अपने आंसुओं को छुपाते हुए गाड़ी में बैठ गई ।वास्तव में मायका माता-पिता का घर ,माता-पिता की ममता की छांव में जहां हम बेटियां अपना बचपन दोबारा जी लेती हैं । ऐसा होता है मायका। यह अनुभूति शब्दों में नहीं व्यक्त हो सकती है ।बस अनमोल है ‘मायका‘
श्वेता सक्सेना शिक्षिका,
संविलियन विद्यालय तिगरिया खादर
गजरौला, जिला अमरोहा।