डॉ. दीपक अग्रवाल
अमरोहा/उत्तर प्रदेश (सनशाइन न्यूज)
जितनी दुर्गति इन दिनों बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों के शिक्षकों की देखने को मिल रही है। ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया। मैं करीब 50 साल से बेसिक स्कूलों से जुड़ा हूं।
इस स्थिति पर नीति निर्धारकों को विचार करना चाहिए। यह भी विचारणीय है कि स्कूल में पढ़ने आने वाले छात्रों के सम्मान की नौबत क्यों आई? गुरुजनों ने छात्रों का सम्मान किया तो गुरुजनों का सम्मान कौन करेगा।
कबीर दास का यह दोहा- गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागूं पांय। बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय।। इस दोहे के माध्यम से कबीर दास ने शिक्षा दी है कि जब गुरु और गोविंद दोनांे साथ खड़े हो तो गुरु को प्रणाम करना चाहिए वही गुरु ही गोविंद यानि भगवान से मिलने का माध्यम बताता है यानि गुरु ही शिक्षा देता है।
कबीर दास की इस विचारधारा के विपरीत 28 जून को बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में गुरुजनों ने स्कूल आने वाले छात्रों का अभिनंदन किया। गुरुजनों ने स्वतः ही यह अभिनंदन नहीं किया बल्कि दबाव में कराया गया। नौकरी की हिस्सा बना दिया गया।
ऐसी नौबत क्यों आई? यह एक शोधपरक विषय है। इस तरह से स्कूलों में छात्रों की संख्या नहीं बढे़गी। बल्कि शिक्षकों के सम्मान मंे ही कमी आएगी।