डॉ. दीपक अग्रवाल
अमरोहा/उत्तर प्रदेश (सनशाइन न्यूज)
आदरणीय मुख्यमंत्री जी!
जिस समय बेसिक शिक्षा बेपटरी थी तब शिक्षामित्र ने ही उसे प्रोत्साहन दिया जब विद्यालय में ताले पढ़ने की नौबत थी तब उसे शिक्षामित्र ने ही संभाल अपने छोटे-छोटे बच्चों को छोड़कर देश के नौनिहालों के भविष्य को संभाला तब ना कोई कोर्ट का कानून था न सरकार की मनचाही।
क्यों ? वह इसलिए कि शिक्षा व्यवस्था संवर गई आज शिक्षामित्र कम से कम 40 45 की उम्र के दौर में है तो कानून भी है और सरकार की मनचाही भी रातों-रात समायोजन के फैसले लिए जाते हैं रात को फैसले होते हैं और सुबह को रोजी-रोटी छीन ली जाती है। न जाने कितने हमारे शिक्षामित्र भाई बहन अपनी जान गवा चुके हैं पर कोर्ट और हमारी मान्य सरकार चुप्पी साधे हैं आज के ही दिन 7 वर्ष पूर्व शिक्षामित्र को मान्य कोर्ट में मान्य सरकार ने भुखमरी में बदल जिंदगी जीने को मजबूर किया था । हम सरकार में कोर्ट से एक बात जानना चाहेंगे कि हम शिक्षा विभाग से जुड़ा हर कार्य करने को तो योग्य है पर जब वेतन की बात आती है तब हम अयोग्य हैं। आखिर आप किस बात की सजा दे रहे हैं आप कहते हैं कि हमने मानदेय 3500 से बढ़कर 10000 रुपए कर दिया पर आप यह क्यों नहीं कहते कि हमने 30000 से 10000 रुपए कर दिया । कोर्ट में गीता पर हाथ रखकर क्यों झूठी कसमें खाई जाती हैं क्या गीता झूठी है नहीं आप जैसों ने गलत नियमों व फसलों से झूठ किया है। जज की कुर्सी पर बैठे न्यायाधीश का न्याय भगवान का न्याय होता है । जब शिक्षा का एक समान अधिकार है तो शिक्षामित्र को भी न्याय मिलना चाहिए सभी के साथ समान व्यवहार होना चाहिए। आखिर उत्तर प्रदेश के शिक्षामित्र के साथ ही अन्याय क्यों? आशा है न्याय होगा।
7 वर्ष से मैं अपनी व्यथा को लिखने की हिम्मत नहीं जुटा पाई । परंतु आज फिर ब्लैक डे के दिन अपनी अश्रुपूरित आंखों से मृतक शिक्षा मित्र साथियों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद लिख रही हूं । अगर कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूं ।
राधा अग्रवाल शिक्षा मित्र
प्राथमिक विद्यालय रहरा
ब्लाक गंगेश्वरी
जनपद अमरोहा उत्तर प्रदेश ।