डॉ. दीपक अग्रवाल की पुस्तक ‘प्रेरणा-पुंज‘ से
अमरोहा/उत्तर प्रदेश (सनशाइन न्यूज)
माँं पिताजी के प्यार में कहीं कोई कमी नहीं थी। खिलाने पहनाने में पिताजी बहुत ही शौकीन और माँ गजब की दस्तकार पाक कला में माहिर रहीं । बस कमज़ोरी थी तो केवल माँं के स्वास्थ्य की रात-रात भर जाग कर घरेलू काम निबटाकर पढ़ाई करते हुए स्वप्न को साकार करने के लिए रसोई घर में भी छोटे छोटे सूत्र चक्र आदि लटके रहते थे। इंटर के बाद फ्रेंड्स आगे की पढ़ाई के लिए बाहर चली गईं । उन्हीं में से एक इंदु जिसने सी.पी.एम.टी. की कोचिंग ली वो अपने सारे नोट्स उन्हें देती थी । काफ़ी अच्छी मेरिट आई लेकिन काउंसलिंग में नहीं शामिल हुई डर था कि यदि डॉक्टर बन गई तो गुर्जरों में लड़का नहीं मिलेगा या फिर लव मैरिज न कर ले। उनके बिना मन के बी.टी.सी. करा दी गई।
कुछ इस प्रकार के संघर्ष से गुजरी हैं जनपद अमरोहा के विकास क्षेत्र गजरौला के कंपोजिट विद्यालय गजरौला की राज्य पुरस्कार 2023 के लिए चयनित प्रधानाध्यापिका श्रीमती रेखा रानी। उनकी आंखों में बचपन से एक ही खवाब सजा था और वो था एक डॉक्टर बनने का, मगर परिस्थिति और समाज का संकीर्ण दायरा उसमें भी आड़े आया। बिजनौर जिले के दो मंझरों के गाँव हल्दुआ माफ़ी में एक संयुक्त परिवार में जन्मी अपने माता पिता की ज्येष्ठ संतान हैं।
उनके पिताजी का जीवन भी संघर्ष से भरा रहा। उन्होंने अपने परिश्रम के दम पर पुलिस में दो बार नौकरी प्राप्त की प्रथम बार में तो लाड प्यार में फंसकर ट्रेनिंग के बाद छोड़ दी लेकिन बाद में वक्त की ठोकरों से सीख लेकर पुनः आरक्षी पद पर भर्ती हुए। आजकल सेवानिवृत्त होकर एक सफल जीवन जी रहे हैं। गजरौला में विजयनगर मोहल्ला उन्हीं के नाम पर है। पिताजी और मां से ही संघर्ष की प्रेरणा मिली। घर में दादा जी का कड़ा अनुशासन रहा। घर में उनसे छोटा भाई होने पर भी दादीजी को संतुष्टि नहीं मिली जिस कारण वे पाँच बहनें हो गईं। माँ का स्वास्थ्य लगभग ख़राब सा ही रहता था। पिताजी ने विद्रोह करके उन्हें साथ रखने का फैंसला कर लिया लेकिन समय समय पर बुजुर्गों की सीख और आशीर्वाद का साया रहा।
जब जब भी गाँव जाना या आना होता था काफ़ी उपदेश मिलते थे जैसे ’पाँच लड़कियां हैं मत पढ़ा इन्हें फिर लड़के भी पढ़े लिखे ढूँढ़ने होंगे।’ माँ के स्वास्थ्य के चलते बहुत ही छोटी आयु में घर का काम करना शुरू कर दिया था। घर में मेहमानों का आना जाना भी बहुत अधिक था। पिताजी ड्यूटी से कई बार तीन- तीन दिन में वापस आते थे। माँ पिताजी के प्यार में कहीं कोई कमी नहीं थी। खिलाने पहनाने में पिताजी बहुत ही शौकीन और माँ गजब की दस्तकार पाक कला में माहिर रही ।
बी.टी.सी. के बाद बी.ए.। बी.ए. थर्ड ईयर में शादी हो गई। पति देवेंद्र सिंह जो हाफ मैराथन के राष्ट्रीय चैंपियन रहे रेलवे में भी स्पोर्ट्स कोटे से जॉब प्राप्त कर उनके हर कदम हर पल सहयोगी बने दोनों परिवारों में बड़े होने के कारण संपूर्ण दायित्व उनका ही रहा। अथक परिश्रम के चलते उनकी पाँच बहन बेसिक शिक्षा विभाग में शिक्षिका हैं चौथे नंबर की बहन डॉक्टर भी है और शिक्षिका भी भाई ए.डी.आ.े पंचायत सतेंद्र कुमार वर्तमान में बुलंदशहर में नियुक्त है। कविताओं का जुनून और मन में एक दृढ़ निश्चय कि जो उनके साथ हुआ छोटी बहनों के साथ नहीं होने देंगीं। जहां भी दिया अपना एकदम सौ फ़ीसदी इसी के चलते 1997 से बेसिक शिक्षा विभाग में शिक्षिका के पद पर नियुक्त होकर एक बेमिसाल शानदार कर्तव्य निर्वहन कर रही हैं। सबसे पहले जिस स्कूल में रहीं शहबाजपुर डोर जहां के निवासी आज़ भी उनसे जुड़ाव महसूस करते हैं। उनके पढ़ाए बच्चे कई सम्मानित पदों पर नियुक्त हैं।
जिले और प्रदेश स्तर पर भी कई सम्मान प्राप्त हुए हैं। घर गृहस्थ में पूर्ण रूप से संतुष्ट होकर एक सक्रिय भागीदारी निभा रही हैं। 2015 से प्रधानाध्यापक पद पर नियुक्त है। मेरा विद्यालय मेरी पहचान । उनके विद्यालय में 525 छात्र छात्रा अध्ययनरत हैं। प्रत्येक का जन्मदिन , नवरात्रि में कन्या पूजन, से लेकर प्रत्येक पर्व धूमधाम से शानदार अनूठे अंदाज में मनाया जाता है। उनके कार्य करने की शैली अपने आप में अलग है । वे अपने छात्र छात्राओं से दिल से जुड़ी है, क्योंकि वे उन्हें पढ़ाने के साथ साथ पढ़ने का प्रयास कर रही हैं। उनकी बगिया में हम दोनों माली दो प्यारे फूल एक बेटी एक बेटे के रूप में शोभित हैं जिनकी महक से गुलशन में महक है। बिटिया बेंगलुरु में आई.टी. कंपनी में बेटा तैयारी में है। उनका मानना है कि ’उनका जूनून उनका कार्य उन्हें पूर्ण संतुष्टि के साथ हर सुबह नई ऊर्जा प्रदान करता है। उन्होंने बताया कि अब उन्हें जो राज्य स्तरीय पुरस्कार मिलने जा रहा है उसमें उनके परिवार का भी बड़ा योगदान है। उन्हांेने विभाग, स्टाफ और अभिभावकों का भी आभार व्यक्त किया।