डॉ. दीपक अग्रवाल
अमरोहा/उत्तर प्रदेश (सनशाइन न्यूज)
बचपन से ही मेरा मां से झगड़ा रहा है, एक प्यार के हिस्से लड़ाई रही है। मेरे हिसाब से वे अपने स्कूल के बच्चों की हद से ज्यादा ही चिंता करती रही हैं। ये सिर्फ एक नहीं और भी कई शिकायतें, कभी कपड़े गुमा देने की तो कभी गुस्से में कुछ भी कह जाने की।
समय के साथ जब काम पर जाना शुरू किया तो धीरे धीरे कुछ बदल गया। समझ आया कि सुबह चार बजे उठकर खाना बनाकर लंच पैक करना, हर रोज समय से यूनिफॉर्म पर कड़क इस्त्री मारकर तैयार रखना और फिर नाखूनों से आटा चुनते हुए, खुद दिन भर के लिए काम पर निकालना, आसान तो नहीं है। काम से घर लौटकर भी जब काम शुरू ही हो तो कैसे मांओं का मन नहीं करता कामचोरी का, ये मेरी समझ से बाहर है।
लोगों को बोलते सुना है कि नारी का पहला कर्तव्य गृहस्थी है और उसके लिए नौकरी छोड़नी हो तो संकोच का कोई सवाल नहीं। लगता भी है कि कहीं न कहीं एक बच्चे को बहुत ध्यान और समय चाहिए, ऐसे में कैसे इसे तराजू से संतुलित किया जाए यह मुझे भी नहीं पता। पर मैं इतना जरूर जानती हूं कि मां की नौकरी ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है। मैंने बचपन से एक सशक्त नारी को अपने खुद के रास्ते बनाते देखा है और पापा को हमेशा उनके साथ खड़ा पाया है। मां की नौकरी ने हमें सिखाया कि झाड़ू पोंछा घर का काम है सिर्फ औरतों का नहीं। मां की नौकरी ने हमें सिखाया कि घर पर राशन लाने की जिम्मेदारी सिर्फ पापा की नहीं है। मां की नौकरी ने ही घर पर खुलकर बोलने का माहौल दिया।
तो हां मुझे अनगिनत शिकायतें हैं मां से, क्योंकि वेे खुलकर बोलती हैं, किसी से दबती नहीं, कभी कभी तो कुछ भी बोल देती हैं। पर मैं खुशकिस्मत हूं, क्योंकि उन्होंने ही मुझे बोलना सिखाया है, हक के लिए लड़ना सिखाया है, और फर्ज़ के लिए काम करना भी। तो आज जब उन्हें यह राज्य पुरस्कार मिला है, मैं काफी खुश हूं, क्योंकि उन्होंने अपने काम को हमेशा महत्व दिया है। वो सिर्फ एक शिक्षिका नहीं, वो हमारी शान हैं और साथ ही मेरे व्यक्तित्व का स्त्रोत भी हैं।
शुभांगी
पुत्री रेखा रानी
राज्य शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित
संविलियन विद्यालय, गजरौला
जनपदः अमरोहा