डॉ. दीपक अग्रवाल
अमरोहा/उत्तर प्रदेश (सनशाइन न्यूज)
त्योहार हमारी संस्कृति और परंपराओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं, जो हमें एक-दूसरे के करीब लाते हैं। ये न केवल खुशी और उल्लास का संचार करते हैं, बल्कि समाज में एकता, सद्भावना और प्रेम को भी बढ़ावा देते हैं। त्योहारों के माध्यम से हम अपने परिवार, दोस्तों और समाज के अन्य लोगों के साथ समय बिताते हैं, जिससे हमारे रिश्ते और अधिक मजबूत होते हैं।
ईद आपसी प्यार, मोहब्बत और भाईचारे का त्योहार है। यह न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है बल्कि समाज में एकता, सहानुभूति और सहयोग को भी बढ़ावा देता है। ईद के दिन लोग गिले-शिकवे भुलाकर एक-दूसरे को गले लगाते हैं और मुबारकबाद देते हैं। इस दिन विशेष रूप से जरूरतमंदों और गरीबों की मदद की जाती है, जिससे समाज में समरसता और समानता बनी रहती है। ईद हमें सिखाती है कि प्यार, शांति और भाईचारे से बढ़कर कुछ नहीं। ईद का असली मतलब सिर्फ अपने लिए खुशियाँ मनाना नहीं, बल्कि उन लोगों को भी अपनी खुशियों में शामिल करना है जो आर्थिक तंगी या किसी अन्य कारण से ईद की खुशियाँ नहीं मना पाते। इस खास मौके पर जरूरतमंदों की मदद करना, उन्हें नए कपड़े, खाना और ज़रूरी सामान देना ईद की रूहानी खूबसूरती को और बढ़ा देता है। यह त्यौहार हमें सिखाता है कि हम एक-दूसरे के दर्द को समझें और समाज में भाईचारे और प्रेम की मिसाल कायम करें। अगर हम अपनी ईद की खुशियों में किसी जरूरतमंद का हाथ थाम लें, तो न सिर्फ उनका दिन रोशन होगा बल्कि हमारे दिल को भी सुकून और खुशी मिलेगी। ईद का त्यौहार सिर्फ इबादत और खुशियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह इंसानियत और आपसी सहयोग का भी संदेश देता है। जब हम अपनी ईद की खुशियों में उन लोगों को शामिल करते हैं जो आर्थिक या सामाजिक कारणों से इसे मनाने में असमर्थ होते हैं, तो हम इस त्यौहार के असली मकसद को पूरा करते हैं। इस्लाम में ज़कात और फित्रा देने का मकसद ही यही है कि समाज के गरीब और जरूरतमंद लोग भी ईद की खुशियों में शामिल हो सकें।
बुजुर्गों का आदर करना, उनके पास बैठकर दुआएँ लेना और उनका ख्याल रखना हमारी जिम्मेदारी है। उनके तजुर्बे और रहनुमाई से हमें जिंदगी में सही राह पर चलने की सीख मिलती है। ईद पर उन्हें खास महसूस कराना, उनके लिए तोहफे लाना या उनकी जरूरतों का ख्याल रखना हमारी संस्कृति और इस्लामी तालीम का हिस्सा है। ईद बच्चों के लिए खास होती है। जब हम छोटे बच्चों को प्यार और दुलार देते हैं, उन्हें ईदी (तोहफे या पैसे) देते हैं, उनके साथ हंसी-मजाक करते हैं, तो इससे उनके दिल में खुशी भर जाती है। बच्चों के लिए ईद सिर्फ नए कपड़े पहनने और मिठाइयाँ खाने का नाम नहीं, बल्कि अपने बड़ों के स्नेह और दुलार को महसूस करने का मौका भी होता है।
ईद का सही जश्न तभी पूरा होता है जब हम अपने आसपास के हर इंसान को खुशी देने की कोशिश करते हैं। जो लोग हालात की तंगी के कारण ईद नहीं मना सकते, अगर हम उन्हें अपना समझकर उनकी मदद करें, तो यही ईद का सबसे बड़ा तोहफा होगा।
अमरोहाः शिक्षक/शायर सैयद शीबान कादरीःईद आपसी प्यार मोहब्बत का त्योहर
