डॉ. दीपक अग्रवाल
अमरोहा/उत्तर प्रदेश (सनशाइन न्यूज)
फरवरी की रेशमी चमकती धूप चटक चमकीला नीला आकाश उस आकाश में शोर मचाती
नाचती खेलती हस्ती सी चटकीली रंगो वाली पतंगे
आंगन के बीच में खड़ा हरे पत्तों वाला कदम का पेड़ उसकी साफ पत्तियों से आती निर्मल धूप
कदम के पास उसके तने पर सिर रखती मैं
बंद आंखें सोंधी हवा और शांत सा होता मेरा मन
बंद आंखों से देखीं जीवन की रिवर्स घटनाएं वह बातें जिससे बदली जीवन की दिशा और दशा
अनुभव करती फास्ट फॉरवार्ड मोड सी हुई जिंदगी को
भीतर की शांति के लिए आ जाती हूं कदम्ब की छांव में मैं और महसूस करती हूं अपने उस आँगन को जिनकी मिट्टी की खुशबू, आंगन में रखा तुलसी का वह पेड़ उसपय रखा जलता दीपक रात के जुगनू,आकाश के चमकते, टिमटिमाते,उजले तारे, काश वह आंगन वह पेड़ वह तारे आज भी मेरे हिस्से में होते बसंत के महीने में अपने घर का छोटा सा वह बगीचा जहां मिलते थे सूरजमुखी गुलाब चमेली गेंदा सरसों उनके रंगों से रंगीन हो जाती थी मैं मेरी सांसे और मेरे सारे सपने काश वह मेरे हिस्से में रहते ना ओढती जिम्मेदारी की चादर बस जीवन में रहता मेरा बसंत और मैं मानती हूं जिम्मेदारी जरूरी है उसके बिना जीवन निरर्थक है पर बसंत का अपना अलग ही महत्व है जो रहना जरूरी है अपने मन में क्योंकि यही वह उसे ऊर्जा देता है जीवन को जीने की यह खिलखिलाते चमकते सुंदर फूल और उनकी खुशबू से शराब और हूं मैं वही कदम का पेड़ और वही मैं।
डॉ. शुचि शर्मा
इंदिरा विहार कॉलोनी
मेरठ रोड, बिजनौर।
शिक्षिका डॉ. शुचि शर्मा की कविता रेशमी चमकती धूप
