डॉ.दीपक अग्रवाल
अमरोहा/उत्तर प्रदेश (सनशाइन न्यूज)
सम्भल-माहात्य एक ऐसा ग्रंथ है जो सम्भल क्षेत्र के सांस्कृतिक, आध्यात्मिक व ऐतिहासिक महत्व को पौराणिक आधार पर परिभाषित व निरूपित करता है। कथ्यात्मक के स्थान पर यह तथ्यात्मक रूप से इस नगर को भारत के प्राचीनतम धर्मक्षेत्र के रूप में व्याख्यायित करता है।
यह हमारे लिए अत्यंत सौभाग्य का विषय है कि हम उस कुल में उत्पन्न हुए हैं जिसने इस क्षेत्र की वास्तविक महत्ता से वर्तमान समाज का परिचय कराया। हमारे पूर्वज स्वनाम धन्य श्री सुदर्शनाचार्य जी (संन्यासोपरांत श्री सुखबोधाश्रम जी महाराज) ने पुराणों से सम्भल-माहात्य का संकलन किया एवं उनके पुत्र विद्वत शिरोमणि श्री वाणीशरण शर्मा जी ने उसका सरल हिन्दी अनुवाद कर उसे सुधी पाठकों के पढ़ने व रसास्वादन करने हेतु संभव बनाया।
यद्यपि सम्भल-माहात्म्य के दो संस्करण पूर्व में प्रकाशित हो चुके हैं तथापि पाठकों की रूचि व इस ग्रंथ की बढ़ती लोकप्रियता ने इसे प्रायः अप्राप्य ही बना दिया। स्वामी जी एवं पिताजी की सदैव आकांक्षा थी कि यह पुस्तक पुनः मुद्रित हो, जिससे वर्तमान पीढ़ी अपनी धार्मिक धरोहर को जान सके। हमारे पिता स्व.वाणीशरण शर्मा जी ने इस विषय में प्रयास भी किया किन्तु कतिपय कारणों वश उनका यह स्वप्न पूर्ण नहीं हो सका। पिताजी की मृत्यु के उपरान्त हम सभी भाई-बहिनों का भी यह विनम्र प्रयास रहा कि हम इस कार्य को आगे बढ़ायें एवं ग्रंथ का पुनः मुद्रण कराकर अपने पूर्वजों के श्री चरणों में श्रद्धांजलि अर्पित करें।
निष्कलंक भगवान कल्कि की महती कृपा से जिलाधिकारी सम्भल के प्रेमाग्रह, हरिहर मंदिर के पैरोकार प्राचीन मां कैलादेवी के महंत ऋषिराज गिरी जी के आदेश से एवं माता जी की सतत प्रेरणा से आज यह ग्रंथ एक नये कलेवर में पाठकों के पठन, मनन व चिंतन हेतु समर्पित है। यदि हमारे इस प्रयास में कोई त्रुटि रह गई हो तो हम सभी भाई-बहिन हृदय से क्षमा प्रार्थी हैं।
(परिवार)
अवनीश शर्मा
डॉ अर्चना शर्मा
अचिंत्य शर्मा
अभिषेक शर्मा
मोक्ष वशिष्ठ
अध्ययन वशिष्ठ
अन्य सम्मानित सुहृद
महंत श्रीबाल योगीदीनानाथ जी (नैमिषारण्य तीर्थ सम्भल)
श्री विष्णु शरण रस्तौगी
श्री सुमंत शुक्ला
श्री पूनम शुक्ला
श्री वेंकटेश्वर शर्मा।
संदेश
सम्भल के इतिहास में प्रथम साहसिक प्रयास करने वाले हरिहर मंदिर के पैरोकार प्राचीन मां कैलादेवी के महंत ऋषिराज गिरी जी अंतरराष्ट्रीय हरिहर सेना के महायज्ञ के लिए गुजरात से बहु उपयोगी सामग्री लेने स्वयं गए हैं। अतएव उन्होंने अपनी अनुपस्थिति में संदेश भिजवाया है कि सम्भल महात्मय संभल के 68 तीर्थों 19 कूपों की खोज के लिए परम आवश्यक है। इस पुस्तक के स्वाध्याय से सम्भल के तथ्यात्मक, सत्यात्मक ऐतिहासिकता के बारे में पूर्ण जानकारी मिलेगी।
महाराज जी की पुण्य प्रेरणा से और आदेश से हम इस पुस्तक को जनमानस के लाभ के लिए प्रकाशित करने में समर्थ हुए है।